By – राजेश खण्डेलवाल/साधना सोलंकी
17 October 2024
भरतपुर के अपनाघर से जुड़ी बबीता गुलाटी (Babita Gulati) दृढ़ इच्छा शक्ति व हौंसले से बेहतर जीवन जीने की कला में निपुण हैं। बचपन में दोनों पांव और दायां हाथ पोलियोग्रस्त हुए तो क्या?… आटोमेटिक व्हील चेयर ने तो भुला दिया कि उनके पांव नहीं हैं। बबीता दीदी (Babita Didi) आज उन लोगों के लिए मिसाल हैं, जो छोटी-छोटी समस्याओं से घबराकर मायूस हो जाते हैं…रोते रहते हैं और परमात्मा को कोसते नहीं थकते। जहां बबीता दीदी (Babita Didi) जैसी स्थिति में लोग अपने लिए सहारा ढूंढ़ते रहते हैं। वहीं, बबीता आज ऐसे ही हजारों लोगों को सहारा देने में सक्षम हैं। उनकी प्रशासनिक क्षमताओं का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि रिसेप्शनिष्ट के रूप में काम शुरू कर आज वे भरतपुर के अपनाघर में सर्वोच्च अध्यक्ष पद को सुशोभित कर रही हैं। अपनाघर पहुंचने वाला हर कोई बबीता गुलाटी (Babita Gulati) स्नेह से बबीता दीदी (Babita Didi) कहता है।
दोनों पैर व दायां हाथ पोलियोग्रस्त
भरतपुर (राजस्थान)। आप अपनाघर, भरतपुर में जाएं और बबीता दीदी (Babita Didi) से ना मिलें, ऐसा नहीं हो सकता। आपके पहुंचने से लेकर विदाई तक के तमाम बंदोबस्त की जिम्मेदारी आटोमेटिक व्हील चेयर से बबीता दीदी ही संभालती नजर आएंगी। दीदी शब्द इन्हें लोगों के स्नेह से मिला है, जबकि इनका वास्तविक नाम बबीता गुलाटी (Babita Gulati) है।
भरतपुर के अपनाघर में छह हजार से अधिक प्रभुजन की सार-संभाल की प्रशासनिक जिम्मेदारी उठाती बबीता दीदी भूल चुकी हैं कि अपने 60 फीसदी शरीर पर उनका बस नहीं है। दोनों पैर और दायां हाथ पोलियोग्रस्त होने के बाद भी दृढ़ इच्छा शक्ति व हौंसले से बेहतर जीवन जीने का हुनर उन्हें आ गया है।
उम्र के 55 बसंत देख चुकी बबीता दीदी वर्ष 2009 से अपनाघर से जुड़ी हैं। पॉजिटिव कनेक्ट को वे बताती हैं, पोलियो की चपेट में आई, तब मात्र 3 साल की थीं। पैरों पर चलने में असमर्थता तकलीफ देह थी। तब ठान लिया कि स्वाभिमान से जिंदगी बसर करनी है। मन होता था घर के सामने के पार्क में मंदिर जाने का… पर अपने पैरों पर चलकर जा नहीं पाती थी तो कई बार मन उदास व हताश हो जाता था। ऐसे में मन मसोस कर रह जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। तब मन ही मन कहती भगवान से मेरी अर्जी लगा दें कि मैं भी कोई काम आ पाऊं।
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डॉ. भैया ने कहा, यहां आकर देख लो…
पॉजिटिव कनेक्ट को बबीता दीदी बताती हैं कि बी. कॉम करने के बाद काम तलाशने लगी। तब अपनाघर में डॉ. भैया (डॉ. बी.एम. भारद्वाज) ने कहा कि एक बार यहां आकर देख लो, समझ लो…आना-जाना कैसे होगा…? मैं सहमत हो गई और घर पर बात की। घरवालों की सहमति से अपनाघर में ही काम करने वाले पड़ोसी अंकल के साथ बाइक पर आने-जाने लगी।
…तो फिर यहीं रहने का निर्णय लिया
पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत के दौरान वे बताती हैं कि रोज आना-जाना मेरे लिए आसान नहीं था। तब मैंने यहीं रहने का निर्णय लिया। समझाने के बाद परिजन राजी हुए और फिर मैं यहां रहने लगी। स्वयंसेवक बन प्रभुजन से सीधे जुडऩा ज्यादा सार्थक लगा। यहां जीवन के लिए जरूरी सब कुछ उपलब्ध था। पैसे की जरूरत मुझे नहीं थी।
आटोमेटिक व्हील चेयर ने भुलाया कि…
वे बताती हैं कि आटोमेटिक व्हील चेयर ने तो जैसे मेरे पंख ही लगा दिए। परमात्मा को जाना और अहसास किया कि वह कितना दयालु है। वास्तव में परमात्मा इन दीन-हीन के घट में बसता है। इनकी सेवा यानी प्रभु परमात्मा की सेवा है। इनके बीच पता ही नहीं चलता कि दिन कब और कैसे निकल जाता है?
तब पिता बोले, तेरी मुझे अब चिंता नही
मैं दिसम्बर, 2010 से स्थाई रूप से अपनाघर में रहने लगी। मुझे याद है, जब मेरे यहां आने के कुछ दिन बाद पिताजी मिलने आए। यहां आकर वे संतुष्ट तो हुए ही, मुझे गले लगाकर सुबक भी पड़े। उन्होंने कहा कि अब तेरी मुझे कोई चिंता नहीं, सही जगह पहुंच गई है। घर पर भी उन्होंने बताया, सब संतुष्ट हुए। 11 जनवरी 2011 को पिता दुनिया को अलविदा कर चल गए। अब मां का भी साया सिर से उठ चुका है।
प्रसन्न ही नहीं, सबको गर्व भी
भरतपुर शहर की रहने वाली बबीता गुलाटी (Babita Didi) के पांच भाई और एक बहिन है। उन उन सभी का भरापूरा परिवार है। बबीता बताती हैं कि कभी-कभी उनसे मिलने जाती हूं तो हम सब मिलकर बहुत खुश होते हैं। मेरे निर्णय पर आज प्रसन्न ही नहीं, सबको गर्व भी है।
प्रबंधन में पाई कुशलता
24 बरस पहले भरतपुर के बझेरा गांव के एक छोटे से कमरे में पीडि़त मानव सेवा का बीज डॉ. बी.एम. भारद्वाज और उनकी धर्मपत्नी माधुरी भारद्वाज ने रोपा। संकल्प था कि कोई भी असहाय पीडि़त मानव या जीव सेवा और उपचार के अभाव में अपनी अंतिम यात्रा पर ना जाए। आज यह सेवा आश्रम एक कमरे से निकल सौ बीघा जमीन पर फैला है। बबीता भी इस वृहद सेवा कारवां की कड़ी का हिस्सा हैं। देश के 61 व नेपाल सहित 62 सेवा आश्रमों की खबर रखने के संग वह भरतपुर अपना घर प्रकल्प के 6200 प्रभुजनों की जरूरतों का प्रशासनिक जिम्मा संभालती हैं। सुबह 9 बजे तैयार हो व्हील चेयर पर दफ्तर पहुंच जाना और डायरी पैन संभाल काम पर जुट जाना। सांझ तक परिसर के विविध प्रकल्पों में पहुंचना, बीमार प्रभुजनों को उपचार के लिए भेजना, उनकी समस्याएं नोट करना, समाधान करवाना, गाडिय़ों की व्यवस्था देखना, नई भर्ती को दर्ज करना, ठाकुरजी को लिखी जाने वाली चिट्ठी में प्रभुजनों की रोजमर्रा की जरूरतों का ब्यौरा जैसे कई कार्य बबीता दीदी की दिनचर्या के हिस्से हैं।
चुनौतियों को सहज स्वीकारती हैं बबीता दीदी
भरतपुर के अपनाघर आश्रम के संस्थापक डॉ. बी.एम. भारद्वाज पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में बताते हैं कि बबीता दीदी कभी विचलित नहीं होती और बड़ी से बड़ी चुनौतियों को सहज स्वीकार करना उनकी खासियत है। वे चुनौतियों को स्वीकार ही नहीं करती, बल्कि हर समय उचित समाधान तलाशने में जुटी रहती हैं और समस्या का हल ढूंढकऱ ही रहती हैं। बबीता दीदी ने अपनाघर में रिसेप्शनिष्ट के रूप में काम करना शुरू किया था और आज संस्था के सर्वोच्च अध्यक्ष पद को सुशोभित कर रही हैं, जो उनकी प्रशासनिक क्षमताओं की ही देन है।