By – राजेश खण्डेलवाल
10 October 2024
ह्यूमन डवलपमेंट इंस्टीट्यूट, झालाटाला (अलवर) के संचालित आधारशिला और उत्कर्ष कार्यक्रम से जुडऩे के बाद मूक बधिर, दृष्टिबाधित, मंदबुद्धि और मानसिक पक्षाघात से पीडि़त बच्चों के जीवन की दशा-दिशा ही बदल गई। संस्था से जुड़े एक दर्जन से ज्यादा युवक-युवती अब सरकारी नौकरियां कर रहे हैं। अपनी खुशी का इजहार करते हुए वे कहते हैं कि एचडीआई से जुडऩे से उनकी तो किस्मत ही बदल गई। पहली कड़ी में हमने आपको संस्थान की गतिविधियों के बारे में बताया था। इस शृंखला में पेश है हमारी दूसरी रिपोर्ट…
बच्चों को जीवन जीना सिखाती है एचडीआई
अलवर (राजस्थान)। ह्यूमन डवलपमेंट इंस्टीट्यूट (HDI) में नेत्रहीन बच्चों को ब्रेललिपि संगीत एवं आत्मनिर्भर होकर जीवन जीना सिखाया जाता है। यहां बच्चों को उनकी आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से उन्हें सशक्त बनाया जाता है। यह कहना है राज्य बीमा एवं प्रावधायी निधि विभाग, जयपुर में संयुक्त निदेशक के पद पर कार्यरत दृष्टि बाधित सुनीता यादव का।
मूलत: हरियाणा के रेवाड़ी जिले की कौसली तहलील के गांव नांगल पठानी निवासी सुनीता पॉजिटिव कनेक्ट को बताती हैं कि मैंने भी कम्प्यूटर संबंधी तकनीकी ज्ञान आधारशिला के कौशल विकास कार्यक्रम के माध्यम से प्राप्त किया, जिससे मुझे सरकारी सेवा में जाने के लिए विशेष फायदा हुआ।
…तो परिजनों का बढ़ा आत्मविश्वास
‘मैं पढऩा चाहती थी, लेकिन मेरे दृष्टिबाधित होने के डर से परिजन मुझे घर से बाहर भेजने को तैयार नहीं थे।’ यह कहना है कि अलवर के न्योना खेरली (कठूमर) गांव की कृष्णा राजपूत का।
पॉजिटिव कनेक्ट को कृष्णा बताती है कि वर्ष 2003-04 में एचडीआई के तमाम प्रयास के बाद भी बाबा सहमत नहीं हुए तो एचडीआई ने मुझे ब्रेल और गणित पढऩे के लिए गृह आधारित कार्यक्रम शुरू किया। संस्था ने दो माह के लिए योग्य ब्रेल महिला शिक्षक मुझे पढ़ाने के लिए घर भेजी। टाइप, टेलर फ्रेम, बे्रल पेपर सहित पूरी ब्रेल किट भी उपलब्ध कराई। इससे मेरे परिवार का आत्मविश्वास बढ़ा और फिर बाद में मैं गांव के ही स्कूल में सामान्य बच्चों के साथ पढ़ी। पढ़ाई में अच्छी सफलता से दिल्ली विश्वविद्यालय तक पहुंची और आज सर्वे ऑफ इंडिया में एमटीएस के रूप में जयपुर में कार्यरत हूं और खुशहाल जीवन जी रही हूं।
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काव्य पंक्तियों से झलक रही पिंकी की खुशी
आधारशिला में पढऩे के बाद बीए बीएड और एमए कर चुकी साडोली गांव की पिंकी प्रजापति ने आधारशिला को लेकर अपनी काव्य पंक्तियों से अपनी खुशी का इजहार किया। संस्था ने उसकी काव्य रचना का होर्डिंग बनाकर लगवा रखा है। ऐसे ही कई अन्य बच्चों ने भी आधारशिला और उत्कर्ष को लेकर अपनी खुशी जताई है।
सुनील की पत्नी भी दृष्टिबाधित
राजगढ़ का दृष्टि बाधित सुनील प्रजापति ने वर्ष 2001 में आधारशिला में प्रवेश लिया। वह दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में स्नातकोत्तर कर चुका है और फिलहाल एसबीआई में नौकरी कर रहा है। सुनील की अब शादी भी हो गई है। सुनील की पत्नी यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया में कार्यरत है, जो भी दृष्टिबाधित है। इसी तरह अन्य लाभार्थियों में हिंगवा (दौसा) निवासी महेश मीणा जयपुर में रेलवे में क्लर्क तो लक्ष्मणगढ़ ब्लॉक के अमरपुर गांव का रितुराज मीणा बैंक ऑफ बड़ौदा में कार्यरत है।
नियति ने बचपन में छीने माता-पिता
अलवर के रैणी निवासी मूक बधिर राहुल गोल के सिर से बचपन में ही माता-पिता को साया उठ गया तो उसका पालन-पोषण ताऊ ने किया। उसे शुरूआत से ही आधारशिला कार्यक्रम से जोड़ा, जो अब गुरुग्राम विकास प्राधिकरण में कम्प्यूटर ऑपरेटर है। इसी तरह विचगांव का मूक बधिर हितेश शर्मा भी फिलहाल गुरुग्राम विकास प्राधिकरण में कम्प्यूटर ऑपरेटर की नौकरी कर रहा है। अब ये दोनों ही प्रसन्न हैं।
जगाते आत्मविश्वास, सिखाते जीने की कला
ह्यूमन डवलपमेंट इंस्टीट्यूट बच्चों और उनके अभिभावकों में आत्मविश्वास जगाने के साथ ही उन्हें जीवन जीने की कला भी सिखाता है। संस्था का चार कार्यक्रमों पर विशेष फोकस रहता है, जो निम्न हैं…
ब्रेल लर्निंग प्रोग्राम
ऐसे सरकारी स्कूल, जहां दृष्टिबाधित बच्चों को ब्रेल लिपि में पढ़ाने की सुविधा नहीं है, उन स्कूलों से दृष्टिबाधित बच्चों को आधारशिला में लाकर कम से कम तीन माह तक ब्रेल लिपि सिखाई जाती है। यह कार्यक्रम जिला प्रशासन के समन्वय से चलाया जाता है।
साइन लैंग्वेज अवेयरनेस प्रोग्राम
हरियाणा के पंचकूूला की प्रसिद्ध संस्था हरियाणा कल्याण सोसायटी फॉर पर्सन्स विद स्पीच एंड हियरिंग इम्पेयरमेंट से दुभाषिया और सांकेतिक भाषा के लिए 7 विशेषज्ञ बुलाए, जिन्होंने सप्ताहभर बच्चों, उनके अभिभावकों, शिक्षकों, जनप्रतिनिधियों तथा पांच उन स्कूलों में विशेष प्रशिक्षण दिया, जहां एचडीआई के बच्चे पढऩे जाते हैं। ऐसा प्रशिक्षण कार्यक्रम अलवर जिले में पहली बार हुआ।
कम्प्यूटर शिक्षा
मूक बधिर व दृष्टि बाधित बच्चों को कम्प्यूटर शिक्षा दी जाती है। कम्प्यूटर लैब में 10 कम्पयूटर, इंटरनेट सुविधा, कम्प्यूटर टीचर उपलब्ध है।
नेटवर्किंग
प्रारम्भिक अवस्था में विशेष बच्चों के पुनर्वास के क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञ और राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर विकलांगता के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं से जुड़ाव के कारण एचडीआई झालाटाला को उनका मार्गदर्शन मिल रहा है, जो काफी लाभदायक साबित हो रहा है। इन प्रमुख संस्थाओं में अली यावर जंग राष्ट्रीय वाणी एवं श्रवण विकलांगता संस्थान दिल्ली, राष्ट्रीय बौद्धिक दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान सिकंदराबाद, राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान देहरादून, नेशनल एसोसिएशन फॉर ब्लाइंड दिल्ली व भारतीय पुनर्वास परिषद, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान नोएड़ा शामिल हैं। इनसे टीचिंग व लर्निंग सामग्री, विशेष जांच, शिक्षकों का प्रशिक्षण, पुनर्वास कार्यक्रम को बनाने की रूपरेखा आदि महत्वपूर्ण सकारात्मक सहयोग लिया जाता है।
वर्तमान में कहां कितने बच्चे
आधारशिला, डाबला मेव (राजगढ़) कुल 20 बच्चे
दृष्टि बाधित-13
मूक बधिर-4
कम मंदबुद्धि- 3
उत्कर्ष, गढ़ी सवाईराम
मानसिक पक्षाघात-25 बच्चे
(इनमें 60 प्रतिशत लडक़े व 40 प्रतिशत लड़कियां हैं। आधारशिला में 5 से 15 वर्ष तक के तथा उत्कर्ष में 6 माह से 15 साल तक के बच्चे हैं। उत्कर्ष में बच्चों के साथ उनकी मां भी रहती हैं, जिन्हें बच्चों की देखभाल करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। ये ही उत्कर्ष की तमाम व्यवस्थाएं अच्छे से संभालती हैं।)
संस्था में कार्यरत हैं स्पेशल एज्यूकेटर
आधारशिला व उत्कर्ष से जुड़े बच्चों में अलवर जिले के अलावा भरतपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, गंगापुरसिटी व दौसा जिले के रहने वाले हैं। इनको शिक्षा दिलाने के लिए संस्था ने स्पेशल एज्यूकेटर की व्यवस्था कर रखी है। यहां के बच्चों को खेल गतिविधियों से जोड़ा जाता है, जिसमें हॉकी, चैस, लूड़ो, फुटबॉल, क्रिकेट, तीरंदाजी आदि शामिल हैं। आधारशिला व उत्कर्ष में प्रवेश का कोई समय तय नहीं है यानि यहां बच्चे को कभी भी लाया जा सकता है।
पांच सौ से ज्यादा बच्चों को किया लाभान्वित
एचडीआई संस्था विशेष आवश्यकता वाले 500 से ज्यादा बच्चों को लाभान्वित कर चुकी है। 5 लड़कियां बीएबीएड व एमए कर चुकी हैं, जो अब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटी हैं।
मन को मिलता है भारी सुकून-मीणा
भारतीय आर्थिक सेवा में कार्यकाल के दौरान विभिन्न मंत्रालयों में कार्यरत रहे आर. सी. मीणा (Retired IES) पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कि मैं अप्रेल, 2015 में सेवानिवृत हुआ, लेकिन विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए संस्था के माध्यम से काम वर्ष 2001 में ही शुरू कर दिया था। इन बच्चों के चेहरों पर मुस्कान देख मेरे भी मन को भारी सुकून मिलता है, जिसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता।
पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में मीणा कहते हैं कि यदि किसी भी सज्जन के परिवार में इस तरह के बच्चे हैं तो वे उनके लिए ह्यूमन डवलपमेंट इंस्टीट्यूट की सेवाओं का लाभ जरूर लें ताकि बच्चे का भविष्य संवारने की दिशा में सार्थक प्रयास किया जा सके। (क्रमश:)
(अगले अंक में पढ़े : ‘इनकी’ मुस्कान से हम चिंता मुक्त)