By – राजेश खण्डेलवाल
27 January 2025
घरेलू महिलाओं को काम मिला तो उनका आत्मविश्वास ही नहीं जगा, बल्कि कई तरह की चिंताओं से भी मुक्ति मिली है। आत्मनिर्भर महिलाएं (Self-Reliant Women) अब घर खर्चों के प्रबंधन में बड़ी मददगार बन रही हैं। जयपुर की भारती सिंह चौहान महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्यमिता से जोडकऱ आत्मनिर्भर बनाने में बड़ी भूमिका निभा रही हैं। इनका बनाया मेरा पैड काफी लोकप्रिय रहा है। इसी कारण भारती को अब पैड वूमेन भी कहा जाने लगा है। राजस्थान के जयपुर की पैड वूमेन भारती सिंह चौहान करीब 5 हजार महिलाओं को आत्मनिर्भर (Self-Reliant Women) बना चुकी हैं।
महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही जयपुर की भारती सिंह चौहान
जयपुर (राजस्थान)। पहले मैं कुछ नहीं करती थी। पति दीपक चाय की एक दुकान पर काम करके दो-ढाई सौ रुपए रोज कमाते थे, लेकिन 4 साल पहले कैंसर की चपेट में आने से उनकी मृत्यु हो गई है। यह कहना है आमेर के नारदपुरा गांव की श्रीमती महिमा केशवानी का। महिमा बताती हैं कि अब मैं गुडिया बनाकर करीब 10 हजार रुपए हर माह कमा लेती हूं। इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा है और आत्मनिर्भर (Self-Reliant Women) भी बनी हूं। एक छोटी बेटी है। उसे अब अच्छे से पाल रही हूं।
आमेर की श्रीमती शाइस्ता कहती हैं कि पहले बच्चों की फीस भरने तक को पैसों का इंतजाम नहीं हो पाता था। पति मोहम्मद सुहेल चश्मे की दुकान पर काम करते हैं। अब घर का खर्च पति चला रहे हैं और मैं बच्चों की फीस का इंतजाम करती हूं। कपड़ों की सिलाई के जरिए हर माह 15 हजार रुपए तक कमा लेती हूं। यह काम मैं 4-5 साल से करने लगी हूं। मेरे आत्मनिर्भर (Self-Reliant Women) बनने के बाद अब किसी के आगे हाथ फैलाना नहीं पड़ता है। बच्चों के साथ अब मैं खुद भी बीए पार्ट वन की प्राइवेट पढ़ाई कर रही हूं।
जयपुर के खोले वाले हनुमान जी के समीप बसी ईदगाह कच्ची बस्ती की सुश्री शायना कपड़े के पैड बनाने का काम कर रही है। वह पहनने के कपड़ों के अलावा बैग भी सिल लेती है। 4 भाई-बहनों में सबसे बड़ी शायना बीए पार्ट वन की पढ़ाई के साथ काम करके घर की 8 से 10 हजार रुपए प्रतिमाह वित्तीय मदद भी कर रही है। शायना का कहना है कि पिता राजपूती औढऩी पर आरी तारी का वर्क करते हैं। कई बार उन्हें काम भी नहीं मिलता है, लेकिन मेरे आत्मनिर्भर (Self-Reliant Women) होने से अब हमें किसी का मुंह ताकना नहीं पड़ता।
शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्यमिता से जोडकऱ महिलाओं को आत्मनिर्भर (Self-Reliant Women) बनाने में सशक्त भूमिका निभा रही हैं जयपुर की भारती सिंह चौहान। इतना ही नहीं, वे जलवायु परिवर्तन, आर्गेनिक खेती, जल संरक्षक के क्षेत्र में भी काम कर रही हैं।
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5 हजार महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर
45 वर्षीय भारती सिंह चौहान पॉजिटिव कनेक्ट को बताती हैं कि ड्रापआउट बालिकाओं को पुन: शिक्षा से जोडऩे के साथ ही उच्च शिक्षा के लिए स्कोलरशिप भी दिलाती हूं। सरकारी स्कूलों के विकास के लिए जरूरी संसाधन उपलब्ध कराना भी मेरी प्राथमिकताओं में है। मैं अपनी संस्था प्रवीणलता संस्थान फाउंडेशन के बैनर तले आमेर में महिलाओं के लिए स्किल सेंटर भी चलाती हूं, जहां हर वर्ष 800 से 1000 युवतियों व महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई, बुनाई कंप्यूटर और पार्लर जैसे प्रशिक्षण दिया जाता है। आमेर और जमवारामगढ़ तहसील में करीब 30 मिनी सेंटर भी संचालित हैं। प्रशिक्षित महिलाओं को 25 हजार रुपए तक की वित्तीय मदद दिलाकर इन्हें माइक्रो बिजनेस से जोड़ती हूं। अभी तक यह 5 हजार से अधिक महिलाओं को आत्मनिर्भर (Self-Reliant Women) बना चुकी हूं।
तितलम प्रोजेक्ट से जुड़ी ग्रामीण महिलाएं
पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में प्रवीणलता संस्थान फाउंडेशन की फाउंडर भारती सिंह चौहान बताती हैं कि ग्रामीण महिलाएं हमारे तितलम प्रोजेक्ट से जुडकऱ टेक्सटाइल्स वेस्ट से हस्तनिर्मित खिलौने बनाती हैं, जो भारत सरकार के वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ODOP) पहल का हिस्सा है। यह पर्यावरण के अनुकूल, शून्य-अपशिष्ट उत्पादों को बनाने के लिए समर्पित ग्रुप है, जो ग्रामीण महिला कारीगरों की ओर से हाथ से तैयार किए जाते हैं। हम कपड़ा अपशिष्ट को अनोखे खिलौनों, एक्सेसरीज और परिधानों में अपसाइकल कर ब्लॉक प्रिंटिंग और कढ़ाई जैसे पारंपरिक शिल्प को संरक्षित करते हैं और सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा देकर पर्यावरणीय क्षति को कम करते हैं। हमारे उत्पाद स्थिरता, शिल्प कौशल और सामाजिक प्रभाव का प्रतीक हैं और जागरूक उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्ता वाले, कारीगर विकल्प प्रदान करते हैं। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट पहल का हिस्सा बनकर, तितलम संतुलित क्षेत्रीय विकास में योगदान देता है और भारत के स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण का समर्थन करता है। इससे 150 ग्रामीण और घरेलू महिलाएं जुड़ी हैं, जो 6 से 15 हजार रुपए प्रतिमाह तक कमा लेती हैं। हमारी डेढ़ हजार से ज्यादा प्रगति सखी और ग्राम सखी हैं, जो गांव-गांव में अभियान चलाकर बालिकाओं को गुडिया माध्यमों से जागरूक करती हैं और उन्हें धर्म, रंग – भेद आदि के बारे में समझाती हैं।
मेरा पैड पर्यावरण के अनुकूल
प्रवीणलता संस्थान फाउंडेशन राजस्थान के अलावा मध्यप्रदेश, नॉर्थ ईस्ट व कर्नाटक में भी काम करता है। फाउंडर भारती सिंह चौहान बताती हैं कि महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक कर महावारी के साथ यौन संबंधी जानकारी दी जाती है। गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक पोषण के साथ स्तनपान के बारे में भी बताया जाता है। बांस के पेड़ से बने कपड़े से पैड्स बनाते हैं, जिसे मेरा पैड नाम दिया है, जो रियूजेबल और वाशेबल है। मेरा पैड पर्यावरण के अनुकूल हैं।
60 से ज्यादा मिले सम्मान
भारती बताती हैं कि मेरा पैड मुहिम के लिए मुझे वर्ष 2016 में देश की 100 वीमन अचीवर महिलाओं की सूची में शामिल किया गया और तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सम्मानित भी किया। मुझे वर्ष 2022 में न्यूयॉर्क में 77वीं यूनाइटेड नेशन असेम्बली में यूए एसडीजी अवॉर्ड मिला। देश की ओर से मैंने मेरा पैड प्रोजेक्ट दुबई में शोकेस किया। फेसबुक सिलिकॉन ऑफिस कैलिफोर्निया यूएसए में फेसबुक और एरिजोना विश्वविद्यालय की ओर से टेल हर स्टोरी पुरस्कार प्रदान किया गया। इसके अलावा मुझे राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर 60 पुरस्कार मिल चुके हैं।
मां-सास से मिली प्रेरणा
पॉजिटिव कनेक्ट से चर्चा के दौरान भारती बताती हैं कि मेरी मां लता पढ़ी-लिखी नहीं थी, लेकिन संघर्ष कर उन्होंने मुझे पढ़ाया। वहीं मेरी सास प्रवीण ने मुझे अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रेरित किया। वे दोनों महिलाएं शिक्षा को प्रोत्साहन देना चाहती थी। इसलिए दोनों की प्रेरणा से ही मैंने 2013 में शिक्षा, स्वास्थ्य और महिलाओं को आत्मनिर्भर (Self-Reliant Women) बनाने के लिए एक संस्था प्रवीणलता संस्था फाउंडेशन की स्थापना की। इसके माध्यम से महिलाओं में माहवारी के प्रति जागरूकता लाने और उन्हें प्रशिक्षण देकर रोजगार से जोडऩे का प्रयास किया जा रहा है।
महिलाओं को फ्री बांटे 15 लाख पैड
पैड वूमेन भारती सिंह चौहान कहती हैं कि करीब 10 साल पहले हमने माहवारी से जुड़े मुद्दों पर जागरूकता लाने के लिए काम करना शुरू किया, जो आज भी जारी है। ग्रामीण महिलाओं के बीच जाकर देखा तो पैड से संबंधित उनकी कई तरह की समस्याएं मुझे पता चलीं। इसके बाद मुझे एक साल तक इस विषय पर काफी खोजबीन करनी पड़ी। इसके बाद हम ऐसे सेनेटरी पैड बनाने में सफल हुए जो न केवल पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं, बल्कि सस्ते भी हैं। ये दुबारा उपयोग लायक और वॉशेबल हैं। भारती कहती हैं कि रियूजेबल और डिस्पोजेबल दोनों तरह के मिलाकर महिलाओं के लिए करीब 15 लाख पैड फ्री बांटे हैं। लोग अब भारती को पैडवूमन कहने लगे हैं।
पैड बेचकर कमाती हैं महिलाएं
भारती सिंह चौहान सामाजिक उद्यमी के साथ एक मोटिवेशनल स्पीकर भी है, जो महिलाओं की शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका के बारे में प्रमुखता से अपनी बात रखती हैं। यह कई बड़े कॉरपोरेट्स और होटल इंडस्ट्रीज की पॉश कमेटी से भी जुड़ी हुई हैं। भारती बताती हैं कि हमसे जुड़ी महिलाएं मेरा पैड बनाकर गांव-गांव बेचती हैं, जिससे भी उनकी कुछ आमदनी हो जाती है। मैं बालिका और महिलाओं की सुरक्षा पर भी काम करती हूं। इसी कारण वर्ष 2017 में मेरे ऊपर हमला भी हो चुका है, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी।