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माता-पिता का साया नहीं, orphanage ही इनका घर-परिवार

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By – राजेश खण्डेलवाल
16 January 2025

आम तौर पर जिस उम्र में बच्चे को मां की गोद में दुलार और पिता का प्यार मिलता है। उसी उम्र में उसे अपनों से भी दूर रहना पड़े तो उस दर्द को उससे ज्यादा कौन समझ सकता है? किन्हीं परिस्थितियों में कुछ मासूम परिजनों से बिछड़ गए और अब उन्हें घर-परिवार के बारे में कुछ याद नहीं है। कुछ बच्चों को घर-परिवार के बारे में सब कुछ याद तो है, लेकिन उनके सिर से माता-पिता का साया उठ चुका है। अन्य परिवारजन हैं, पर वे इन मासूमों को अपनाने को तैयार नहीं हैं। कुछ ऐसी ही कहानियां हैं, भरतपुर जिले के बयाना में संचालित श्री जगदीश बालगृह (Orphanage) में रह रहे बच्चों की। यह अनाथ आश्रम (Orphanage) ही अब इन बच्चों का घर-परिवार है। इनकी मदद के लिए चली फाइल भी सरकारी लालफीताशाही में बंद पड़ी है।
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अपनों से प्यार के बजाए इनको मिली दुत्कार

भरतपुर (राजस्थान)। मेरी मां का निधन हो गया और पिता पालने में सक्षम नहीं थे। आठ साल पहले पिता ही मुझे एक आश्रम में छोड़ गए। बाद में वह आश्रम बंद हो गया, तो मुझे यहां भेज दिया। बबलू (बदला हुआ नाम) बताता है, मैं हरियाणा का रहने वाला हूं। अब पिता भी दुनिया में नहीं हैं। अन्य परिजन हैं, लेकिन वे मेरे लिए नहीं हैं। अब अनाथ आश्रम (Orphanage) ही मेरा घर-परिवार है।

भरतपुर के वैर इलाके के दो भाई भी अनाथ आश्रम (Orphanage) में रह रहे हैं। उनका कहना है कि एक्सीडेंट में पिता चल बसे। मां नेपाल की थी, जो पिता की मौत के बाद वहीं चली गई। बूढ़ी दादा मां है, जो पालने में सक्षम नहीं है। अन्य परिजन भी हैं, जो हमें अपने साथ रखना नहीं चाहते। घर की याद से जुड़े सवाल पर सजल नेत्रों और रुंधे गले से सिर्फ इतना ही बोल पाए, याद आती है तो दादी से फोन पर बात कर लेते हैं। दादी को भी हमारी याद आती है, लेकिन शारीरिक रूप से कमजोर होने के कारण हमारा लालन-पालन नहीं कर सकती। अब अनाथ आश्रम (Orphanage) ही हमारा सब कुछ है। यहां रहते हुए हमें 4-5 साल हो गए।

इसी तरह भरतपुर के दो बच्चे भी अनाथ आश्रम (Orphanage) में रह रहे हैं। उनका कहना है कि मां दुनिया में नहीं रही। पिता मानसिक बीमार थे तो अन्य घर वालों ने हमें बिसरा दिया। अब चार साल से यहीं रह रहे हैं। एक बार भरतपुर अपने घर तक पहुंच भी गए, लेकिन परिजनों ने जानते हुए भी पहचानने से मना कर दिया। क्या करते?, लौट आए।

कुछ ऐसी ही कहानियां हैं, इन मासूमों की, जिन्हें जिस उम्र में मां के दुलार और पिता के प्यार की दरकार थी। उसी उम्र में उन्हें दुत्कार झेलनी पड़ी। नतीजन, अनाथ आश्रम (Orphanage) ही अब उनका घर-परिवार व सब कुछ है।

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बड़े होकर संवार सकें जीवन

भरतपुर जिले के बयाना कस्बे में ऐसे ही अनाथ बच्चों के लिए श्री जगदीश बालगृह संचालित है, जिसमें दर्जनभर बालक रह रहे हैं। इनमें से ज्यादातर को सरकारी स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है ताकि बड़े होकर वे अपना जीवन संवार सके। पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में श्री जगदीश बालगृह के व्यवस्थापक विष्णु कुमार बताते हैं कि इन बच्चों की खातिर 11 हजार रुपए प्रतिमाह का भवन किराए पर लिया हुआ है। करीब 4 हजार रुपए नल-बिजली पर खर्च हो जाते हैं। इसके अलावा बच्चों के खाने-पीने, कपड़े, पढ़ाई, पाठयसामग्री आदि का खर्च अलग है।

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सरकारी मदद फाइलों में दफन

श्री जगदीश बालगृह के व्यवस्थापक विष्णु कुमार पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं, इस श्री जगदीश बालगृह (Orphanage) को मेरे पिता कैमरी (करौली) निवासी नारायण सिंह गुर्जर ने खोला। फरवरी, 2020 में खोले गए इस बालगृह की व्यवस्थाओं पर अभी तक 50 लाख से अधिक राशि खर्च कर चुके हैं। सरकार से अभी तक 5 पैसे की वित्तीय मदद नहीं मिली है, जबकि राजस्थान सरकार का बाल अधिकारिता विभाग ऐसे आश्रमों के लिए आर्थिक मदद देता है। अन्य जिलों में खुले ऐसे कई आश्रमों को सरकारी सहायता मिल रही है। भरतपुर जिला प्रशासन फाइल भी चला चुका है, लेकिन जयपुर में जाकर फाइल दबकर रह गई।

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धर्म स्थलों को जोडकऱ किया नामकरण

करौली जिले की नादौती तहसील के गांव कैमरी निवासी नारायण सिंह बताते हैं कि नादौती में संचालित ऐसे ही एक बाल गृह की सेवाओं से प्रेरित होकर मेरे मन में अनाथ बच्चों की सेवा करने का विचार आया तो श्री चन्द्रमादास जी महाराज मेमोरियल विकास समिति जनकपुर का गठन किया, जिसके तहत ही बयाना का श्री जगदीश बालगृह (Orphanage) संचालित किया जा रहा है। वे पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कैमरी में जानकी माता का मंदिर है और उस क्षेत्र को जनकपुर कहा जाता है। गांव में श्री जगदीश भगवान का बड़ा मंदिर है, जहां हर साल बसंत पंचमी को लक्खी मेला भरता है। कहा जाता है कि जगदीश भगवान मंदिर की स्थापना संत चन्द्रमा दास जी महाराज ने की, जिनका स्थल भी मंदिर परिसर में ही है। इन्हीं स्थल व नामों को लेकर संस्था व आश्रम के नाम रखे गए।

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इसलिए चुना बयाना को

एक सवाल के जवाब में श्री चन्द्रमादास जी महाराज मेमोरियल विकास समिति जनकपुर के संस्था सचिव नारायण सिंह कहते हैं कि नादौती में अनाथ बच्चों के लिए आश्रम संचालित था। करौली के निकटवर्ती भरतपुर जिले में ऐसा कोई आश्रम नहीं था। इस कारण भरतपुर के बयाना कस्बे में आश्रम खोला गया, जो हमारे गांव के ज्यादा दूर नहीं है। वे बताते हैं कि आश्रम के लिए कुछ जनसहयोग अब मिलने लगा है, जिससे महीने में 10 दिन की ही पूर्ति हो पाती है। शेष 20 दिन का आवश्यक खर्च मैं ही वहन करता हूं।

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वाट्सएप ग्रुप से जोड़ लोगों को कर रहे प्रेरित

हाल में ही आश्रम से जुड़े समाजसेवी बयाना निवासी कपिल शर्मा बताते हैं कि अनाथ बच्चों के लिए कस्बे में चल रहे श्री जगदीश बालगृह की व्यवस्थाओं व संचालन में सहयोग के लिए एक वाट्सएप ग्रुप बनाया है, जिसमें कस्बे के लोगों को जोड़ा जा रहा है। वे बताते हैं कि ग्रुप के माध्यम से लोगों को बच्चों के लिए जरूरी सामग्री का इंतजाम करने के लिए क्षमतानुसार दान करने का आग्रह किया जा रहा है। साथ ही आश्रम की नियमित गतिविधियों के फोटो व वीडियो भी ग्रुप में भेजे जाते हैं ताकि लोग देखकर प्रेरित हो सकें। वे बताते हैं, बच्चों के लिए किसी तरह की असुविधा नहीं झेलनी पड़े। इसके लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।

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