By – राजेश खण्डेलवाल
08 January 2025
वृद्धाश्रम (Old Age Home) में रह रहे बुजुर्गों में से ज्यादातर की कहानियां ऐसी हैं कि किसी को अपनों ने बिसरा दिया है तो कोई अपनों पर बोझ नहीं बनना चाहता। कुछ ऐसे भी हैं, जिनका दुनिया में अब कोई अपना नहीं है। इस मजबूरी में वृद्धाश्रम (Old Age Home) ही उनका ठिकाना है। राजस्थान में उदयपुर के आनंद वृद्धाश्रम (Anand Old Age Home Udaipur) में रह रहे आवासियों का मानना है कि उनके लिए अब यहीं जीवन का असली आनंद (Real Joy Of Life) है।
आनंद वृद्धाश्रम बना बुजुर्गों का सहारा
उदयपुर (राजस्थान)। मैं आनंद वृद्धाश्रम (Old Age Home) में पिछले करीब 5 माह से रह रही हूं। यहां की सेवाएं घर से भी बेहतर हैं। यूट्यूब पर वीडियो देखने से यहां का पता चला तो मैं ट्रेन से यहीं आ पहुंची।
मूलत: मध्यप्रदेश की रहने वाली करीब 60 वर्षीय वृद्धा पॉजिटिव कनेक्ट को बताती हैं कि मैंने करीब तीन दशक पहले एक दुर्घटना में पति और साढ़े 4 वर्ष के पुत्र को खो दिया। रिश्तेदार व परिचितों ने दूसरी शादी करने की सलाह दी, लेकिन मैंने साढ़े चार साल के ही एक बच्चे को गोद लिया। उसे खूब पढ़ाया। आज वह अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। उसकी शादी हो चुकी है।
कुछ माह पहले मुझे अपने साथ ले जाने का झांसा देकर उसने घर- गाड़ी सब कुछ बिकवा दिया और मुझे गाजियाबाद में असहाय हालत में छोडकऱ विदेश चला गया। उन दिनों को याद कर सुबकते हुए वे बताती हैं कि जीवन में यह दूसरा असहनीय दर्द है, जिसे मैं कभी भूल नहीं पाऊंगी।
दिल्ली से आकर आनंद वृद्धाश्रम (Old Age Home) में रह रही एक अन्य वृद्धा शोभा गुलाटी का कहना है कि उनके कोई बेटा नहीं है। एक बेटी है, जिसकी शादी हो चुकी है। बेटी का अपना घर-परिवार है। पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में शोभा का मानना है कि बेटी के घर का खाना उचित नहीं है। इसी कारण मैं बेटी की सहमति से यहां रह रही हूं। बेटी मिलने आती रहती है और फोन से बातचीत भी करती है। वे कहती हैं, मैं यहां खुश हूं और इच्छा है कि अब जीवन की अंतिम सांस यहीं लूं।
आनंद वृद्धाश्रम (Anand Old Age Home) में रह रहे उड़ीसा के विश्वनाथ शर्मा बताते हैं कि मैं फुटपाथ पर सोता था और अखबार का कागज ओढ़ लेता था। भूख का पता ही नहीं चलता था। यह भी समझ नहीं आता था कि मैं जिंदा हूं। उड़ीसा से हरिद्वार आ गया, जहां फुटपाथ पर पड़ा रहता था। वहां कोई ठिकाना नहीं मिला। किसी सज्जन ने मुझे यहां भेज दिया। यहां का खाना देखकर कई बार रो इसलिए लेता हूं कि जब मेहनत करके कमाता था, तब भी इतना अच्छा खाना नहीं खा पाया। वे बताते हैं कि 4 बार जीवन ही खत्म करने की कोशिश की, लेकिन भगवान को शायद यही मंजूर था। सही मायने में यहीं जीवन का आनंद ले पा रहा हूं।
वृद्धाश्रम (Old Age Home) में रह रहे बुजुर्गों में से ज्यादातर की कहानियां ऐसी हैं कि किसी को अपनों ने बिसरा दिया है तो कोई अपनों पर बोझ नहीं बनना चाहता। कुछ ऐसे भी हैं, जिनका दुनिया में अब कोई अपना नहीं है। इस मजबूरी में वृद्धाश्रम (Old Age Home) ही उनका ठिकाना है। दोनों वृद्धा उदयपुर के आनंद वृद्धाश्रम (Anand Old Age Home) में रह रही हैं तो विश्वनाथ शर्मा फिलहाल रायपुर (छत्तीसगढ़) के आनंद वृद्धाश्रम (Anand Old Age Home) में हैं।
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तारा संस्थान ने खोले आनंद वृद्धाश्रम
आनंद वृद्धाश्रमों की स्थापना उदयपुर के तारा संस्थान ने की है। इनमें उदयपुर में 3, प्रयागराज, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर तथा रायपुर (छत्तीसगढ़) में एक-एक आनंद वृद्धाश्रम हैं। सबसे पहले उदयपुर में 25 बैड का आनंद वृद्धाश्रम (Anand Old Age Home) खुला। अन्य आश्रम बाद में खोले गए। रायपुर के वृद्धाश्रम में फिलहाल काम प्रगति पर है।
ऐसे बना तारा संस्थान
तारा संस्थान के संस्थापक सचिव दिपेश मित्तल पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कि वे खुद और तारा संस्थान की संस्थापक अध्यक्ष कल्पना गोयल उदयपुर में नारायण सेवा संस्थान से जुड़े रहे हैं। एक बार वृद्ध जमुनालाल वहां अपनी आंखों के मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने पहुंचा तो विचार बना कि क्यों ना वृद्धों की आंखों में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए अस्पताल खोला जाए। इसके बाद वर्ष 2011 में तारा संस्थान (Tara Sansthan) की स्थापना की गई, जहां वृद्धों की आंखों के मोतियाबिंद का ऑपरेशन किया जाना लगा। ज्यादातर वृद्ध गांव-देहात से आते थे। उदयपुर आकर उन्हें ठहरने और खाने-पीने की कोई असुविधा नहीं हो, इसी को ध्यान में रखकर शुरूआत में 25 बैड का वृद्धाश्रम (Old Age Home) खोला गया, जिसका नाम आनंद वृद्धाश्रम (Ananad Old Age Home) रखा।
कोई कहीं से, कभी भी आ सकता है
तारा संस्थान के संस्थापक सचिव दिपेश मित्तल बताते हैं कि आनंद वृद्धाश्रमों में देश की किसी भी जगह का कोई वृद्ध या वृद्धा कभी भी आकर रह सकता है। इनके लिए रहने और खाने-पीने की सारी व्यवस्थाएं एकदम फ्री हैं। इन वृद्धाश्रमों में सभी जाति, धर्म व सम्प्रदाय के लोग रह रहे हैं। यहां रह रहे लोगों में हर साल 4-5 लोगों का निधन हो जाता है, जिनके अंतिम संस्कार की व्यवस्था भी संस्थान ही करता है। उदयपुर के 3 आश्रमों में 190 से अधिक और सभी आश्रमों में 300 से अधिक बुजुर्ग रह रहे हैं।
1.60 लाख ऑपरेशन कराएं
तारा संस्थान की संस्थापक अध्यक्ष कल्पना गोयल पॉजिटिव कनेक्ट को बताती हैं कि संस्थान अभी तक 1 लाख 60 हजार वृद्धों के नेत्र ऑपरेशन करा चुका है। इनमें से 55 से 60 फीसदी तक पुरुष होते हैं, शेष महिलाएं होती हैं। कोई वृद्ध कभी भी तारा संस्थान, उदयपुर आकर अपनी आंखों के मोतियाबिंद का ऑपरेशन फ्री करा सकता है। संस्थान जगह-जगह कैम्प भी लगाता है। वे बताती हैं, सर्दियों के दिनों में वेटिंग चलती है।
विधवाओं के बच्चों को फ्री शिक्षा
तारा संस्थान की संस्थापक अध्यक्ष कल्पना गोयल पॉजिटिव कनेक्ट को बताती हैं कि संस्थान का शिखर भार्गव पब्लिक स्कूल भी संचालित है, जिसमें विधवा महिलाओं के बच्चों को फ्री शिक्षा दी जाती है। इनके लिए ऑटो, स्टेशनरी, किताबें आदि फ्री उपलब्ध कराई जाती हैं।