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दोनों हाथ नहीं, Writes With His Feet कृष्णा

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writes with his feet

By – राजेश खण्डेलवाल
23 November 2024

करौली का युवा कृष्ण कुमार चतुर्वेदी उर्फ कृष्णा पैर से लिखता है (writes with his feet), क्योंकि उसके दोनों हाथ नहीं है, जो एक हादसे की भेंट चढ़ गए। वह जरूरतमंद बच्चों को फ्री शिक्षा दे रहा है। कृष्णा कहता है, बच्चों को पढ़ाना अच्छा लगता है। बच्चों को पढ़ता और आगे बढ़ता देखता हूं तो बड़ी आत्मसंतुष्टि मिलती है।
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जरूरतमंद बच्चों को फ्री शिक्षा दे रहा कृष्णा

करौली (राजस्थान)। कृष्ण कुमार चतुर्वेदी उर्फ कृष्णा के दोनों हाथ बचपन में ही एक हादसे ने छीन लिए। मगर यह हादसा ना उसका जज्बा छीन सका और ना उसकी हिम्मत तोड़ पाया। 34 साल का कृष्णा अब पैर से लिखता है (Writes With His Feet) और जरूरतमंद बच्चों को फ्री में शिक्षा भी दे रहा है।
करौली जिला मुख्यालय से मात्र 12 किलोमीटर की दूरी बसे सायपुर गांव का कृष्ण कुमार चतुर्वेदी उर्फ कृष्णा पॉजिटिव कनेक्ट को बताता है कि खेत पर सिंचाई के लिए लगाए इंजन में फंसने से उसके दोनों हाथ कट गए। कृष्णा के साथ यह हादसा वर्ष 1996 में घटा। करीब छह माह तक जयपुर के एसएमएस हॉस्पीटल में कृष्णा का इलाज चला। अस्पताल से घर आने के बाद भी कई महीने तक चारपाई पर रहे। दोनों हाथ नहीं होने के कारण चलते वक्त संतुलन बिगड़ जाता था। इससे कृष्णा कई बार गिरकर चोटिल भी हुए पर इससे भी कृष्णा ने गिरकर उठना सीखा है।

पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में कृष्णा बताता है कि स्कूल जाने लगा तो उस समय बड़ा दु:ख होता था, जब अन्य बच्चों को हाथ से लिखते देखता था। ऐसे में कई बार खुद पर ही गुस्सा भी आता था। मेरी ऐसी हालत देख बड़े भाई भागीरथ चतुर्वेदी ने मेरा हौंसला बढ़ाया। इसके बाद कृष्णा ने सीधे पैर से लिखने का प्रयास किया। करीब छह माह के अभ्यास के बाद कृष्णा पैर से लिखने (Writes With His Feet) लगा।

पहले मां करती थी देखभाल

सात भाइयों में सबसे छोटे कृष्ण कुमार (कृष्णा) बताता है कि मां विन्नो देवी ही उसकी देखभाल करती थी। मां ही उसे खाना खिलाने, नहलाने, कपड़े पहनाने और उसके मल-मूत्र की सफाई जैसे काम करती थी। वर्ष 2021 में कोरोना की चपेट में आने से मां काल का ग्रास बन गई। इसके बाद कृष्णा ने खुद ही अपने काम करना शुरू किया और आज वह अपने काम खुद कर लेता है।

मां के गम में पिता चारपाई पर

‘मां की मौत के बाद 85 वर्षीय पिता घीसाराम चतुर्वेदी का मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया, जो अब चारपाई हैं और वे किसी को पहचान भी नहीं पाते हैं।’ पॉजिटिव कनेक्ट को कृष्णा ने बताया। कृष्णा बताता है कि उसकी तीनों बहनों की शादी हो चुकी है और उसकी व पिता की खाने-पीने की पूरी व्यवस्था बड़ा भाई भागीरथ ही करता है। कृष्णा बताता है कि उसे विकलांग पेंशन के रूप में साढ़े 11 सौ रुपए मिलते हैं। इतनी ही राशि पिता के वृद्धावस्था पेंशन की आती है। इस तरह मात्र 23 सौ रुपए में घर खर्च चलता तो नहीं है, पर चलाना पड़ता है।

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कई प्रयास, नहीं मिली सफलता

इतिहास से स्नातकोत्तर कर चुके कृष्णा ने वर्ष 2012 में बीएड भी कर लिया, लेकिन कई बार प्रयास करने के बाद भी उसे सरकारी नौकरी नहीं मिल पाई है। वर्ष 2018 में वह मात्र 5 अंक से रीट क्लीयर नहीं कर पाया, जिसके बाद उसने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना ही बंद किया हुआ है। कृष्णा बताता है कि उसे फस्र्ट ग्रेड, सैकण्ड ग्रेड के साथ लिपिक परीक्षा की भी पहले तैयारी की, लेकिन सफलता नहीं मिली।

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कृष्णा पाठशाला में पढ़ते हैं 36 जरूरतमंद बच्चे

मां की मृत्यु और पिता के मानसिक बीमार होने के कारण कृष्णा हताश व उदास रहने लगा तो फिर से भाई भागीरथ ने उसे संभाला और उसकी हिम्मत बढ़ाई। कृष्णा अब पिछले 4 साल जरूरतमंद बच्चों को अपने घर पर ही फ्री में पढ़ाता है, जिसका नाम उसने कृष्णा पाठशाला रखा है। पाठशाला में कक्षा 1 से 8 तक के 36 बच्चे पढऩे आते हैं। पॉजिटिव कनेक्ट को कृष्णा बताता है कि वह बच्चों को व्यवहारिक व नैतिक शिक्षा भी देता है। साथ ही योगाभ्यास, खेलकूद, पर्यावरण शिक्षा, कम्प्यूटर शिक्षा भी देता है। स्कूल की भांति वह नियमित बच्चों से प्रार्थना भी कराता है।

अशिक्षा मिटाना ही मूल ध्येय

पॉजिटिव कनेक्ट से चर्चा के दौरान कृष्णा कहता है, कोई बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहे। अशिक्षा रूपी कलंक को मिटाना ही उसका मूल ध्येय है। बच्चों को पढ़ाना अच्छा लगता है। बच्चों को पढ़ता और आगे बढ़ता देखता हूं तो बड़ी संतुष्टि होती है।

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कृष्णा से मिलती है हिम्मत

मैं पिछले 3 साल से कृष्णा पाठशाला में स्वेच्छा से गणित पढ़ा रहा हूं। कृष्णा की हिम्मत और जज्बे को दाद देनी पड़ेगी। दोनों हाथ नहीं होने के बाद भी वह पैर से लिख लेता है। कृष्णा को जब बच्चों को पढ़ाते देखता हूं, तब मुझे भी बहुत हिम्मत मिलती है। नमोनारायण चतुर्वेदी ने पॉजिटिव कनेक्ट को बताया।

प्योर इंडिया ट्रस्ट बना है मददगार

NGO प्योर इंडिया ट्रस्ट (Pure India Trust) भी कृष्णा का मददगार बना हुआ है। ट्रस्ट के प्रोजेक्ट मैंनेजर खुश बिहारी व्यास पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कि सायपुर का कृष्णा सीधा और बड़ी हिम्मतवाला है। उसे पिछले ढाई साल से ट्रस्ट से जोड़ा हुआ है। बच्चों को पढ़ाने की ऐवज में कृष्णा को हर माह 3 हजार रुपए ट्रस्ट से देते हैं। दोनों हाथ नहीं होने के बाद भी पैर से व्हाइड बोर्ड पर लिखकर बच्चों को अच्छे तरीके से पढ़ाता और समझाता है। बच्चों के लिए स्टेशनरी, फर्नीचर आदि भी उपलब्ध कराया है। कृष्णा को बेंगलूरु व नोएडा में उसके उल्लेखनीय कार्य के लिए सम्मान भी मिला है।

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कृष्णा पाठशाला में पढ़ा और फिर पढ़ाया भी

कृष्णा पाठशाला में पढ़ चुका ओम कुमार पॉजिटिव कनेक्ट को बताता है कि मैंने यहीं पर बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाई है। फिलहाल मैं 12वीं बोर्ड की तैयारी चलने के कारण पाठशाला नहीं जा पा रहा हूं। ओम बताता है कि मुझे यहां बहुत कुछ सीखने व समझने को मिला है। हमारे कृष्णा सर दोनों हाथ नहीं होने पर भी अपने पैर से हमें विद्यालय के और टीचरों की तरह ही पढ़ाते हैं। उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है। जब हम स्कूल में टेस्ट देते हैं तो सर जी की वजह से बाकी बच्चों से ज़्यादा नंबर लाते हैं। ऐसा ही कृष्णा पाठशाला में कक्षा 6वीं में पढऩे वाले कुवेर बैरवा (8) तथा कक्षा 8वीं में पढऩे वाले कान्हा (12) व टिंकु पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं।

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