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अलख जगाने के नायक बने नागौर के धन्नाराम

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amarpal varma

अमरपाल सिंह वर्मा

03 October 2024

बाल विवाह की खिलाफत : कमसिनों के हाथों में मेहंदी और मांग में सिंदूर ने चौंकाया

नागौर (राजस्थान)

राजस्थान में बाल विवाह एक बड़ी समस्या है। हर साल राज्य में हजारों बच्चे वैवाहिक बंधन में बांध दिए जाते हैं। न्याय पालिका के कड़े आदेशों, सरकार के अभियानों और सख्त कानूनों के बावजूद राज्य में बाल विवाह पर लगाम नहीं लग पाई है। भले ही गांव-देहात के लोगों को बच्चों का विवाह न करने के लिए मनाना मुश्किल है मगर फिर भी अनेक संगठन एवं लोग इस बुराई के खात्मे के लिए जुटे हुए हैं। ऐसे लोगों मेंं शामिल हैं नागौर जिले के सामाजिक कार्यकर्ता धन्नाराम नायक, जो बाल विवाह के खिलाफ कई दशकों से मुहिम चलाए हुए हैं |

धन्नाराम नागौर जिले में जायल तहसील के झाड़ेली गांव में उरमूल खेजड़ी संस्थान नामक गैर सरकारी संस्था चलाते हैं। धन्नाराम अस्सी के दशक में प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता संजय घोष से दीक्षित हुए और अपने पैतृक गांव झाड़ेली को ही अपनी कर्मभूमि बनाया। वह गांव में शिक्षा, स्वास्थ्य, जल, जंगल, जमीन, बाल अधिकार, महिला सशक्तीकरण, श्रमिक कल्याण से सम्बद्ध गतिविधियां चला रहे हैं। उन्होंने इस संस्था के जरिए न केवल बाल विवाह के खिलाफ अलख जगाई है बल्कि बचपन मेंं ब्याह दी गईं गांवों की लड़कियों को शिक्षित कर उन्हें मुकाम तक पहुंचाया है।

Dhanaram Nayak who raised voice against child marriage in Nagaur (rajasthan).4
बड़ी बेटियों संग कम उम्र में छोटी के भी हाथ पीले

जब मैं झाड़ेली गांव में उरमूल खेजड़ी संस्थान में गया तो वहां दर्जनों छोटी उम्र की लड़कियां पढ़ाई करती हुई मिलीं। इनमें से कइयों के हाथों में मेहंदी और मांग में सिंदूर सजा देख मुझे हैरानी हुई। साफ पता चल रहा था कि उनकी बच्चियों का छोटी उम्र में ही विवाह कर दिया गया है। अशिक्षा और रूढिय़ोंं के कारण नागौर जिले में ज्यादातर बच्चों की शादी होश संभालने से पहले ही कर दी जाती है। लोग बड़ी बेटियों के साथ छोटी कम उम्र बच्चियों के हाथ भी पीले कर देते हैं लेकिन गौना उसके स्यानी होने के बाद किया जाता है। धन्नाराम ने अपने साथियों के साथ वर्ष 2004 में आसपास के गांवों में सर्वे किया तो ऐसी बच्चियों की बड़ी तादाद सामने आई, जो कभी स्कूल नहीं गई थीं या फिर जिन्होंने थोड़े समय के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। इनमें ऐसी नाबालिग बच्चियां भी थीं, जिनकी शादी हो चुकी थी। पूछने पर शादीशुदा बच्चियों ने पढऩे में दिलचस्पी दिखाई। उन्होंने ऐसी लड़कियों को चिन्हित किया और गौना होने तक उन्हें पढ़ाने के लिए उनके परिजनों को राजी कर लिया।

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बाल-विवाह रोकने के लिए ये प्रयास किए

उस समय क्षेत्र में बाल विवाह की समस्या को देख धन्नाराम ने दो काम शुरू किए। एक तो वह ग्रामीणों को बाल विवाह नहीं करने के लिए के लिए प्रेरित करने लगे। दूसरा यह कि जो लोग बाल विवाह करने पर अड़े रहे तो उन्हें विवाहित बच्चियों को पढ़ाने के लिए राजी करना शुरू किया।

 उन्हें दूसरे काम में ज्यादा सफलता मिली। ग्रामीण उरमूल खेजड़ी संस्था के शिक्षा शिविरों में बच्चियों को पढऩे भेजने लगे। साथ ही शिविर में पढकऱ जाने वाले किसी भी किशोर अथवा किशोरी का विवाह उनके परिजनों ने निर्धारित से कम आयु में नहीं किया है, यह धन्नाराम की विशिष्ट उपलब्धि है।

बाल विवाह के बाद पढ़ी कैलाशी सरपंच बनी

धन्नाराम ने झाड़ेली में बीस साल पहले वर्ष 2004-05 में शिक्षा से वंचित 11 से 20 वर्ष आयु वर्ग की बालिकाओं को पढ़ाने के लिए आवासीय शिविरों का सिलसिला शुरू किया था। पहले शिविर में 98 बालिकाएं आईं, जिनमें 25 विवाहित थीं। इसके बाद इन शिविरों में सैकड़ों बालिका वधुओं को पढ़ाया गया। शिविरों में पढ़ाई के बाद अनेक विवाहित लड़कियों ने आठवीं व दसवीं पास कर ली। यह सिलसिला आगे भी इसी प्रकार चला। बाल विवाह के बाद पढऩे वाली लड़कियों मेंं एक कैलाशी भी थी, जिसने वहां आवासीय व्यवस्था में रहकर दसवीं की परीक्षा पास की। बाद में वह अपने ससुराल तंवरा में सरपंच चुनी गई। ऐसी कई लड़कियां हैं, जिनके जीवन में धन्नाराम की कोशिशों से बदलाव आया। धन्नाराम अब भी बाल विवाह नहीं करने के लिए लोगों को प्रेरित करने मेंं जुटे हैं।

राजस्थान में बाल विवाह व्यापक समस्या

राजस्थान मेंं बाल विवाह की समस्या व्यापक है। राज्य में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की ओर से वर्ष 2019-21 तक किए गए एक सर्वे के अनुसार अधिक बाल विवाह वाले राज्यों में राजस्थान सातवें स्थान पर है। सर्वे मेंं राज्य में 25.4 फीसदी बालिकाओं का बाल विवाह होना पाया गया। राज्य में शहरी क्षेत्रों में अब भी 15.1 फीसदी तो ग्रामीण क्षेत्रों में 28.3 फीसदी बालिकाओं के विवाह किए जा रहे हैं। राज्य में बाल विवाह के मामलों में चित्तौडगढ़़ जिला सबसे आगे है. यहां 42.6 फीसदी बाल विवाह होने पाए गए। भीलवाड़ा 41.8 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि झालावाड़ में 37.8 फीसदी बाल विवाह के साथ तीसरे स्थान पर है। नागौर, अजमेर, जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बीकानेर, सिरोही, फलौदी, बालोतरा आदि जिलों मेंं भी बड़ी तादाद मेंं बाल विवाह होते हैं। धन्नाराम जी के प्रयास भले ही चंद गांवों तक सीमित हों लेकिन उन्हें छोटा नहीं कहा जा सकता। उनके प्रयास महत्वपूर्ण हैं। अगर उनकी तरह हर कोई अपने आसपास के क्षेत्र में करना शुरू कर दे तो यह बाल विवाह की समस्या को समाप्त करने मेंं बड़ा योगदान साबित हो सकता है। धन्नाराम जी 38 सालों से नागौर जिले में जल संरक्षण, बंधुआ मजदूरों की मुक्ति व पुनार्वास, वंचित एवं मजदूर वर्गों के जीवन मेंं सुधार लाने, युवाओं मेंं कौशल विकास, दिव्यांग कल्याण, स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच जैसे काम भी कर रहे हैं। उनसे प्रेरणा ली जानी चाहिए।

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