By – Positive Connect
22 December 2024
मैं एक ऐसा सरकारी स्कूल (Government School), जो अन्य सरकारी स्कूलों की भांति पहले बदहाल था, लेकिन मेरे जिम्मेदार ने मेरी सुध ही नहीं ली, बल्कि मेरा कायाकल्प भी कर दिया। नतीजन, आज मैं आदर्श स्कूल (Ideal School) कहा जाना लगा हूं और यह सुनकर मुझे गर्वानुभूति महसूस होती है। लोग कहते हैं कि मैं अब उन सरकारी और निजी स्कूलों (Government And Private School) के लिए प्रेरणास्त्रोत हूं, जो शिक्षा को केवल पाठ्यक्रम तक सीमित रखते हैं और सीमित संसाधनों में सही दृष्टिकोण और सहयोग का उत्कृष्टता नमूना हूं तो ऐसा सुनकर मुझे अपार प्रसन्नता की अनुभूति होती है।
सीमित संसाधनों में उत्कृष्टता का नमूना
अलवर (राजस्थान)। मैं एक सरकारी स्कूल (Government School) हूं। मुझ तक पहुंचने के लिए आपको अलवर से करीब 22 किलोमीटर का सफर करना पड़ेगा। यूं तो मैं आज भी अलवर तहसील का हिस्सा हूं, मगर खैरथल-तिजारा के नाम से नए बनाए जिले के किशनगढ़बास ब्लॉक में आता हूं। मेरे द्वार की सजावट, रंगीन पेंसिलों के चित्र व लोगो आपको अच्छे लगेंगे। द्वार के एक ओर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का चित्रात्मक संदेश, दूसरी ओर तंबाकू मुक्त परिसर और विकसित व स्वच्छ राष्ट्र का प्रेरक चित्रात्मक संदेश आपका ध्यान खींचेगा। चारदीवारी पर उकेरे रंग-बिरंगे चित्र व शिक्षाप्रद संदेश न केवल मेरे अपनों, बल्कि गांव वालों व आगुंतकों को लुभाते हैं। इस पर मुझे गर्वानुभूति होती है।
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मेरे अहाते में इसरो जैसा वातावरण चौंका सकता है तो बाईं ओर दुमंजिला दीवार पर जी.एस.एल.वी. का बड़ा चित्र आपको कदम रोकने पर मजबूर करेगा। पास में सजा-संवरा बड़ा सा टैंक (रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम) पानी बचाने का संदेश देता तो रोप क्लाइम्बिंग का अभ्यास देखते रहने को विवश करता है। समीप ही मेरे अपनों को गला तर करते देख आपकी जिज्ञासा रूपी प्यास भी शांत होती नजर आएगी।
मेरे अहाते में ही मुख्य रास्ते के दोनों ओर लगे हेज के पेड़ कर्व स्टोन के साथ मेरी खूबसूरती बढ़ा रहे हैं तो जगह-जगह लगे माइल स्टोन मेरे हर अवयव को तीर के साथ मीटर में दूरी दिखाते नजर आएंगे। आप दूसरी तरफ से देखेंगे तो इलाके के पर्यटक और एतिहासिक स्थलों की दूरी का पता चल सकेगा। मेरी लाडलियों को वॉलीबॉल खेलते और सैनिकों जैसी कडक़ती आवाज परेड तेज चल और थम आपके कदम थाम देगी। मेरे प्रति उत्तरदायी खुद मेरी लाडलियों को परेड के गुर सिखाते हैं, तब आपको यह महिला बटालियन का कैंपस सा लगेगा। लाड़लियों का जज्बा आपमें भी देशसेवा की भावना जागृत करेगा।
मेरे लाड़ले व लाड़लियां 5 दिन शैक्षिक ज्ञान अर्जित करते हैं तो सप्ताह के अंतिम दिन नो बैग-डे पर खेलकूद के साथ ही अन्य बहुत कुछ सीखते-समझते हैं। संस्कार और संस्कृति का पाठ पढ़ाने की जिम्मेदारी का मैं भार उठाता हूं तो मेरे यहां तेज घूंसों की आवाज आपकी उत्सुकता बढ़ा सकती है। यह मेरे लाड़लों के बॉक्सिंग का अभ्यास करने की होती है। मेरे लाड़ले शतरंज भी सीखते व खेलते हैं, जो अब जिला व राज्य स्तर पर मेरा मान बढ़ा रहे हैं, जिससे मुझे खुशी मिलती है।
समय के साथ कदमताल मिलाया तो अब मेरी डिजिटल लाइब्रेरी में लाड़ले-लाड़लियां कम्प्यूटर का ज्ञान पा रहे हैं। उन्हें डिजिटल प्रारूप में पुस्तकें पढ़ते देख आप भी मेरी भांति खुश होंगे। इतना ही नहीं, मेरे लाडले पेंट, वर्ड, एक्सेल और पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन जैसे सॉफ्टवेयर का उपयोग करना भी सीख चुके हैं। डिजिटल लाइब्रेरी की सौगात में 10 कंप्यूटर मिले, जिनमें कक्षाओं के पाठ्यक्रम के साथ-साथ शैक्षिक सामग्री है। मैं गांव में बसर करता हूं, इसलिए बिजली संकट रहता है, लेकिन मैं अब राहत में इसलिए हूं कि सोलर पैनल लगे हैं।
मेरे लाड़ले व लाड़लियों को ज्ञान तो मिल ही रहा है, विज्ञान में भी निखार आ रहा है। उनके बनाए पेरीस्कोप, सौरमंडल, जीएसएलवी, फ्लोटिंग हाउस और हाइवे सेफ्टी विद आयरन पिकर जैसे मॉडल मुझे भी अच्छे लगते हैं। आर्ट एंड क्राफ्ट में मिट्टी और अन्य सामग्रियों से बनाए खिलौने और वस्तुएं भी उपयोगी हैं। मेरी हर दीवार कुछ ना कुछ सिखाती नजर आती है तो जिम्मेदार के कमरे सजे मॉडल व चार्ट आगुंतक का ध्यान खींचते हैं। मेरे लाड़लों का निशाना भी अचूक है, जिनके लिए अस्थाई शूटिंग रेंज बनी है।
मेरा उद्भव भजेड़ा गांव में वर्ष 1979 में प्राइमरी स्कूल के रूप में हुआ, जो बाद में मिडिल और माध्यमिक का दर्जा मिला। वर्ष 2015 से मैं सीनियर सैकण्डरी कहलाने लगा और तब से ही मेरा हाल बदहाल था पर मैं सौभाग्यशाली रहा कि इस बार (वर्ष 2021) मुझे ऐसे जिम्मेदार मिले, जिन्होंने ना केवल मुझे संभाला, बल्कि संवारा भी। तभी आज मैं दिखने लायक बन पाया। मेरी बदहाली को लेकर हर समय चिंतित ही नहीं रहते, बल्कि कई बार तो इनकी नम आंखें देख मैं खुद भी झर-झर अश्रु बहाता रहता, लेकिन मैं अपना दर्द किसे बयां करता, यह मेरी भी समझ से परे था। पर ऐसे हैं ये जिम्मेदार, जिन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मुझे संभालने व संवारने की जिद ठान ली।मौजेक इंडिया और सहगल फाउण्डेशन के सामने मेरी बदहाली का जिक्र किया तो उनकी कृपा मेरे ऊपर बरसी। फिर गांव वाले भी मेरी सुध लेने आए तो गुरुजन भी कहां पीछे रहने वाले थे। नतीजन मेरे यहां लाड़ले-लड़कियों की संख्या में लगभग 70 फीसदी का इजाफा हुआ, जिसकी खुशी को मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता।
मेरे जिम्मेदार (डॉ. कोमल कांत शर्मा, प्रधानाचार्य) की कहानी भी कम रोचक नहीं है। अन्य महकमों की दो नौकरियों को छोडक़र इन्होंने शिक्षा को सेवा माना। स्नातक में चित्रकला पढ़ी तभी तो इनकी बनाई पेंटिंग्स मुझे भाती हैं। एनसीसी से जुड़े रहे, इसलिए मेरी लाड़लियों को परेड के गुर सिखाने में गहरी रुचि रखते हैं। लेखन में पारंगत इतने कि इनकी पुस्तक मत्स्य जनपद क्षेत्र की कला एवं पुरातत्व काफी चर्चित है। इनके शोध पत्र राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हो चुके हैं, जो इनके बहुमुखी व्यक्तित्व व ज्ञान को दर्शाते हैं।
आशा ही नहीं, भरोसा है कि मेरी भ्रमण यात्रा अच्छी लगी होगी। मेरे यहां की अद्भुत गतिविधियों ने आपमें उत्सुकता पैदा की होगी और लाड़ले-लाड़लियों के साथ जिम्मेदार से मुलाकात भी प्रेरणादायी रहेगी। मेरे जिम्मेदार की दूरदृष्टि, समर्पण और नवाचार ने मुझे बदहाली से आदर्श में बदला, जिनका अहसान मैं कभी चुका नहीं पाऊंगा। शिक्षा ही नहीं, मेरे लाड़ले-लाड़लियों का समग्र विकास करने के लिए तकनीकी, खेल, कला, विज्ञान, और अनुशासन का इनका बेहतर समावेश काबिल-ए-तारीफ है। लोग कहते हैं कि मैं अब उन सरकारी और निजी स्कूलों के लिए प्रेरणास्त्रोत हूं, जो शिक्षा को केवल पाठ्यक्रम तक सीमित रखते हैं और सीमित संसाधनों में सही दृष्टिकोण और सहयोग का उत्कृष्टता नमूना हूं तो ऐसा सुनकर मुझे अपार प्रसन्नता की अनुभूति होती है।
(साभार : श्री राजेश लवानियां, इंजीनियर, समसा, अलवर)