By – राजेश खण्डेलवाल
12 December 2024
राजस्थान के मेवात में बालिका शिक्षा (Girls Education in Mewat) को बढ़ावा देने के लिए समर्पित एमिड (AMIED) नामक संस्था ने कई साल पहले घर की आर्थिक मजबूरियों के कारण पढ़ाई छोड़ चुकी कई बालिकाओं को फिर से शिक्षा से जोडकऱ कॉलेज तक पहुंचाया है। मेवात की बालिकाओं ने शिक्षा के प्रति अपने मजबूत इरादों से इच्छा का पूरा करने के लिए खेतों में मजदूरी तक की। इस तरह फीस के पैसे जुटाकर वे अपने पढऩे के सपने को साकार करने में जुटी हैं।
कॉलेज तक पहुंची किशोरियां
अलवर (राजस्थान)। राजस्थान में अनेक बालिकाएं आर्थिक संकट के आगे पढ़ाई छोडऩे को मजबूर हैं, लेकिन मेवात में बालिकाओं के मजबूत इरादों के आगे आर्थिक संकट भी उनकी राह नहीं रोक पाया, हालांकि उनकी पढ़ाई में कुछ साल का अंतराल जरूर आ गया।
मेवात में ज्यादातर परिवारों में बालिकाओं को शिक्षा नहीं दिला पाने का कारण उनकी आर्थिक मजबूरी के साथ सामाजिक डर भी है। दूरस्त गांवों में 8वीं से आगे की पढ़ाई के लिए स्कूल नहीं होना भी एक कारण है।
मेवात में कई बालिकाओं को ऐसे ही कारणों से अपनी पढ़ाई छोडऩे का मजबूर होना पड़ा, लेकिन पढ़़ऩ़े की अपनी इच्छा को खत्म नहीं दिया। इन बालिकाओं के पढ़ाई छोडकऱ घर का कामकाज तो संभाला ही, अपनी पढ़ाई के लिए जरूरी फीस मजदूरी करके जुटाई। फीस का बंदोबस्त होते ही परिवार वालों को राजी किया और ओपन बोर्ड से 12वीं पास करके जा पहुंची कॉलेज, जहां अब वे नियमित पढऩे जा रही हैं। मजूदरी कर फीस जुटाने से उनकी पढ़ाई की राह ही नहीं खुली, बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ा है और वे शिक्षिका बनकर बालिका शिक्षा को बढ़ाना चाहती हैं।
इन बालिकाओं की राह को आसान बनाने में एमिड नामक संस्था का बड़ा योगदान है। एमिड की टीम के सदस्यों ने इन बालिकाओं के माता-पिता को पढ़ाई का ना केवल महत्व समझाया, बल्कि जरूरत पडऩे पर बालिकाओं के लिए स्कोलरशिप दी और उनका कॉलेज में दाखिला कराने में भी सहयोग किया।
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दिहाड़ी मजदूरी कर खेतों में लगाई प्याज
ककराली गांव के अख्तर की बेटी मुस्कान ने 4 साल पहले 10वीं तक पढ़ाई की और फिर पढ़ाई छोड़ दी। इससे आगे उनके गांव में स्कूूल नहीं था। ऐसे में घर वाले सामाजिक डर के कारण मुस्कान को पढऩे के लिए दूसरे गांव नहीं भेजना चाहते थे। अख्तर मजदूरी करता था। इस कारण घर के आर्थिक हालात भी ज्यादा अच्छे नहीं थे। मुस्कान पॉजिटिव कनेक्ट को बताती है कि उसकी पढऩे की इच्छा खूब थी, लेकिन एक बार उसे भी हालात के आगे मजबूर होकर पढ़ाई छोडऩी पड़ी। वह बताती है कि एमिड की टीम ने माता हनसीरा और पिता अख्तर को समझाया तो वे पढ़ाने को राजी हो गए। इसके बाद उसने ओपन बोर्ड से 52 फीसदी अंकों के साथ 12वीं पास की। इससे उसकी इच्छा को बल मिला। जरूरत पडऩे पर उसने दिहाड़ी मजदूरी कर खेतों में प्याज भी लगाई। इस तरह उसने कॉलेज की फीस का इंतजाम किया। मुस्कान अब पढऩे के लिए नियमित कॉलेज जाती है।
खेतों में काम करके जुटाई फीस
घेघोली गांव की ज्योति को पढ़ाई छोड़े 3 साल हो गए। उसके पिता रोहिताश मजदूरी करते हैं। मां सुमित्रा ग्रहणी है। उसके परिवार वाले भी आर्थिक कारणों से ज्योति की पढ़ाई रोकने को मजबूर हुए। हालांकि ज्योति पढऩा चाहती थी, लेकिन चाहकर भी तब पढ़ाई जारी नहीं रख पाई। गांव में एक बार एमिड की टीम आई तो उनके सदस्यों ने ज्योति के माता-पिता को समझाया और ज्योति को आगे की पढ़ाई करने देने के लिए मना लिया। ज्योति ने 12वीं ओपन बोर्ड से 55 प्रतिशत अंकों से पास की। ज्योति ने कॉलेज की पढ़ाई के लिए फीस का इंतजाम खेतों में मजदूरी करके किया। उसने प्याजों के खेत में काम किया। ज्योति अब बीए पार्ट प्रथम में पढ़ रही है।
इसी तरह देसूला की आरती ने भी 3 साल पहले 10वीं करने के बाद के बाद पढ़ाई छोड़ दी। उसने भी ओपन बोर्ड से 12वीं 50 फीसदी अंकों से पास की। आर्थिक मजबूरी में आरती ने प्याज के खेतों में मजदूरी की और फीस के पैसे जुटाए। आरती भी अब नियमित कॉलेज जा रही है।
गांव से दूर नहीं जा सकी पढऩे
बलवण्डका गांव की अंजली के पिता महावीर मजदूरी करते हैं। मां ललिता ग्रहणी है। 10वीं से आगे की पढ़ाई के लिए 3 किलोमीटर दूर दूसरे गांव में जाना पड़ता। इस कारण 4 साल पहले घर वालों ने पढ़ाई ही छुड़वा दी। एमिड टीम के प्रयासों से अंजली ने ओपन बोर्ड से 12वीं 50 फीसदी अंकों से पास की। पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में अंजली बताती है कि अन्य गांव वालों की तरह उसके माता-पिता भी कपास चुनने पंजाब जाते हैं। गांव के ज्यादातर ग्रामीण ऐसी ही मजदूरी पंजाब जाते हैं तो पूरा गांव खाली हो जाता है। अंजली ने अपनी पढ़ाई की इच्छा को मन में संयोए रखा और मौका लगते ही उसने प्याज लगाकर व मजदूरी करके पैसे जुटाए और कॉलेज की फीस भरी। अंजली भी अब अन्य बालिकाओं की भांति पढऩे के लिए कॉलेज जाती है।
10-12 बालिकाओं को कॉलेज से जोड़ा
एमिड की शैक्षिक समन्वयक पूनम गुप्ता बताती हैं कि मेवात में ऐसी बालिकाओं की संख्या खूब है, जो गांव में स्कूल नहीं होने या फिर परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं होने के कारण बीच में पढ़ाई छोडऩे को मजबूर हुई हैं। पॉजिटिव कनेक्ट को पूनम बताती हैं कि एमिड की टीम ने ऐसी ड्रॉपआउट बालिकाओं का सर्वे कराया और उनके परिजनों से सम्पर्क साधा। बालिकाओं के माता-पिता को समझाया और उन्हें शिक्षा का महत्व भी बताया। एमिड मेवात में ऐसी 10-12 बालिकाओं को कॉलेज से जोड़ा है।