
By – राजेश जैन
11 November 2024
एक ओर फिनलैंड जैसे देशों की तनावमुक्त शिक्षा प्रणाली (Education System) है तो दूसरी ओर दक्षिण कोरिया जैसे देश भी हैं, जहां खासा दबाव भरा स्कूलिंग सिस्टम है। बेहतर करियर के लिए अच्छे कॉलेज में दाखिले के दबाव के चलते यहां बच्चों को दिन में 16-16 घंटे तक पढ़ाई करनी होती है। जिस स्टूडेंट्स के अच्छे नंबर नहीं आते या अच्छे स्कूल-कॉलेजों में दाखिला नहीं मिल पाता, उसे समाज में हिकारत की नजरों से देखा जाता है।
बालक के चलने-फिरने लायक होते ही बेहतर निजी प्री स्कूलों की तलाश
दक्षिण कोरिया में बच्चे के चलने-फिरने लायक होते ही माता-पिता बेहतरीन निजी प्री स्कूलों की तलाश शुरू कर देते हैं। उनका लक्ष्य यह होता है कि जब ये बच्चे 18 वर्ष के हो जाएं, तब तक वे ऐसे छात्र बन जाएं जो देश की कुख्यात, आठ घंटे की राष्ट्रीय कॉलेज प्रवेश परीक्षा, जिसे सुनयुंग के नाम से जाना जाता है, में सफल होकर प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में अपना स्थान प्राप्त कर लें।
सुनयुंग बेहद कठिन परीक्षा होती है। इसमें उन्नत कैलकुलस से लेकर अस्पष्ट साहित्यिक अंशों से जुड़े ऐसे सवाल पूछे जाते हैं जिनके जवाब सरकारी स्कूल के पाठ्यक्रम में नहीं होते। यही कारण है कि इसके लिए केवल औसत या संघर्ष कर रहे स्टूडेंट ही प्राइवेट ट्यूशन, कोचिंग की शरण नहीं लेते बल्कि बेहतर छात्र भी ऐसा करते हैं ताकि प्रतिस्पर्धा में खुद को बेस्ट बना सकें।
इन प्राइवेट ट्यूशन को कोरिया में हागवान कहते है। इनमें अंग्रेजी और मैथ से लेकर म्यूजिक और डांस तक हर सब्जेक्ट्स के ट्यूशन लिए जाते हैं। इसके लिए एक क्लास से दूसरी क्लास के लिए भागते रहते हैं। बच्चे सुबह 8 बजे स्कूल पहुंचते हैं। फिर रात 10.00 बजे तक ट्यूशन, कोचिंग लेकर अक्सर आधी रात तक घर पहुंचते हैं। छात्र का डिनर और लंच स्कूल या प्राइवेट ट्यूशन के दौरान ही होता है। बच्चे अक्सर नींद पूरी नहीं कर पाते। उनके पास ना खेलने का समय है और ना ही अभिभावकों और दोस्तों के लिए।
छुट्टियों में भी कम नहीं होता बोझ
अगर आप सोच रहे हों कि कोरियाई छात्र हफ्ते भर की मेहनत के बाद दो दिन के सप्ताहांत में रिलैक्स होते होंगे तो आप गलत हैं। आमतौर पर कोरिया के ज्यादातर स्कूल सोमवार से शनिवार तक खुले होते हैं।
स्कूलों में सजा भी
भारत, अमेरिका या यूरोप के स्कूलों में छात्रों को शारीरिक दंड दिया जाना बंद हो चुका है। अगर किसी टीचर ने ऐसा किया तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होती है। लेकिन दक्षिण कोरिया में अनुशासन के नाम पर टीचर छड़ी से पिटाई का सहारा लेते हैं। वे इस छड़ी को मैजिक बैंड कहते हैं। टीचर्स स्कूल में बच्चों को शारीरिक दंड देते हैं तो कोरिया के पेरेंट्स को भी इसमें कोई गुरेज नहीं है।
छात्र होते हैं स्कूल की सफाई के जिम्मेदार
कोरिया में स्कूल की सफाई की जिम्मेदारी छात्रों की होती है। हालांकि स्कूल में सफाई के लिए स्टाफ होता है, लेकिन छात्रों को भी इससे जोड़ा जाता है। उन्हें स्कूल पहुंचते ही देखना होता है कि कहीं गंदगी तो नहीं, कहीं कुछ ऐसा हुआ तो वो उसे तुरंत साफ करते हैं।
टीचर भगवान की तरह
कोरिया में टीचर की स्थिति को भगवान की तरह ऊंचा माना जाता है। समाज में उन्हें बहुत सम्मान और पैसा मिलता है। माना जाता है कि वो स्कूलिंग सिस्टम के स्तंभ हैं। सीनियर होने के साथ उनका वेतन बढ़ता है और काम करने के घंटे भी। हर पांच साल के बाद टीचर्स को रोटेशन सिस्टम के तहत स्कूल बदलना होता है। इससे कोई मतलब नहीं कि वे स्कूल को कितना प्यार करते हैं या फिर स्कूल को उनकी कितनी जरूरत है। हर साल हर स्कूल को नया स्टॉफ मिलता रहता है। हर पांच साल के बाद टीचर्स, वाइस प्रिंसिपल और प्रिंसिपल को एक लॉटरी सिस्टम से गुजरना होता है। इससे उनका स्कूल बदला जाता है। इस सिस्टम में हर टीचर को अच्छे और खराब दोनों तरह के स्कूलों में काम करना होता है। सभी टीचर्स का मूल्यांकन होता है, ये उनके प्रदर्शन और तरह-तरह की वर्कशाप में मौजूद होने के आधार पर होता है, उसी के आधार पर उन्हें प्वाइंट्स मिलते हैं। इस मूल्यांकन में ये भी जोड़ा जाता है कि जिले में उनके स्कूल की रैंकिंग क्या है। वे वो 65 वर्ष से पहले रिटायर नहीं होते।
(लेखक कोटा के वरिष्ठ एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं)