By – राजकुमार जैन
01 November 2024
राजस्थान के दर्जनभर गांवों की माटी के कण-कण में शास्त्रीय संगीत (Classical Music) रचा-बसा है। यहां के ग्रामीण जहां शास्त्रीय संगीत के मुरीद हैं, वहीं उन्हें फिल्मी गानों से परहेज है। वर्षों से चली जा रही इस परम्परा को आगे बढ़ाने में नई पीढ़ी भी अपना योगदान दे रही है।
पुरखों की परम्परा को आगे बढ़ाने का जतन
अलवर (राजस्थान)। देश-दुनिया में फिल्मी गानों की धूम मची है। इनमें फूहड़ता भी खूब परोसी जा रही है। नई पीढ़ी जमकर इनका अनुसरण कर रही है, लेकिन राजस्थान के अलवर में करीब एक दर्जन गांवों के ग्रामीणों को फिल्मी गानों से परहेज है और वे आज भी शास्त्रीय संगीत (Classical Music) के मुरीद हैं। इन गांवों में वर्षों से लोग शास्त्रीय संगीत को ही पसंद करते हैं। नई पीढ़ी भी इसमें रची-बसी नजर आती है, जो अपने पूर्वजों की परम्परा को आगे बढ़ा रही है।
अलवर के सरिस्का वन क्षेत्र के इन गांवों के ग्रामीणों की पाराशर धाम व नारायणी माता के प्रति आस्था है। यहां जागरण, सत्संग, गृहप्रवेश जैसे धार्मिक आयोजनों में दिन-रात के आठ पहर के रागों पर आधारित भजन गाए जाते हैं। ग्रामीणों को फिल्मी धुनों पर आधारित भजन नहीं सुहाते। फिल्मी गानों में बढ़ती फूहड़ता के कारण ही यहां के ग्रामीणों को फिल्मी धुनों पर आधारित भजनों से परहेज है।
अलवर के राजगढ़ ब्लॉक के खोह दरीबा, टोड़ा, जयसिंहपुरा, धालपुर, रामपुरा, तालाब, टहला, बरकड़ी, बल्लना सहित दर्जनभर गांवों की माटी के कण-कण में शास्त्रीय संगीत ही रचा-बसा है। इसका असर करीब 40 किलोमीटर क्षेत्र में देखा जाता है, जहां फिल्मी गानों की धुन पर आधारित भजनों को सुनने की कोई डिमांड तक नहीं करता।
कई दशक पहले हुई थी शुरूआत
ग्रामीण बताते हैं कि कई दशक पहले खोह दरीबा में शास्त्रीय संगीत (Classical Music) की शुरूआत बद्रीनाथ योगी ने की। रामकृष्ण देवी माता के भजन गाते थे। बाद में बसवा के खेमसिंह ठाकुर ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली और खोह के मूलचंद पंडित व ग्रामीणों ने ग्रुप बनाकर भजन गाना शुरू किया। यहां धार्मिक आयोजनों में शास्त्रीय संगीत (Classical Music) की प्रस्तुति का सिलसिला अब भी जारी है।
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भजन गायकों के ग्रुप में कई युवा शामिल
खोह दरीबा निवासी युवा आईटी इंजीनियर कर्मचंद योगी पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कि गांव के अनेक परिवार शास्त्रीय संगीत (Classical Music) से जुड़े हैं, जो धार्मिक आयोजनों में नि:शुल्क प्रस्तुति देते हैं। कुछ युवाओं के लिए ये आजीविका का माध्यम भी है, जो क्षेत्र से बाहर दिल्ली, हरियाणा, जयपुर, सवाईमाधोपुर आदि जगह प्रस्तुति देने जाते हैं। ये शास्त्रीय संगीत के होने वाले दंगलों में राम पर आधारित भजन गाते हैं। गांव में 7-8 लोगों का एक ग्रुप भी बना हुआ है, जिनमें कई युवा शामिल हैं।
पिता के साथ कार्यक्रमों में जाने से हुआ लगाव
पॉजिटिव कनेक्ट को अलवर रह रहे खोह दरीबा निवासी महेश योगी (52) बताते हैं कि मेरे पिता कैलाशनाथ भी शास्त्रीय संगीत ((Classical Music)) की प्रस्तुति देते थे, जिनके साथ मैं भी जाता रहता था। उस समय मेरी उम्र 7-8 वर्ष रही होगी। पिछले करीब एक दशक से मैं भी शास्त्रीय संगीत के आयोजनों में हारमोनियम पर प्रस्तुति दे रहा हूं। पांच भाइयों में शास्त्रीय संगीत का ज्ञान सिर्फ मुझे ही है। अन्य भाइयों को शास्त्रीय संगीत का क, ख, ग…भी नहीं आता।
चर्चा के दौरान एक किस्सा याद करते हुए वे बताते हैं कि वर्षों पहले नाथ सम्प्रदाय के एक बहुत बड़े कलाकार गांव में आए तो उन्होंने शास्त्रीय संगीत (Classical Music) से हटकर अलग गाना शुरू कर दिया तो पब्लिक (ग्रामीणों ने) ने सुनने से मना कर दिया। इस कारण उन्हें अपनी प्रस्तुति दिए बिना ही लौटना पड़ा।
युवा पीढ़ी को भी जोडऩे का सतत प्रयास
सेवानिवृत प्रधानाध्यापक रामेश्वर शर्मा (71) पिछले 20 साल से शास्त्रीय संगीत से जुड़े हैं। पॉजिटिव कनेक्ट को वे बताते हैं कि पिताजी को भी शास्त्रीय संगीत का शौक रहा। भतीजा कमलेश शर्मा आज भी शास्त्रीय संगीत (Classical Music) के दंगल व नौबत में प्रस्तुति देने जाता रहता है। बातचीत में शर्मा पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कि पुरखों की परम्परा को कायम रखने का सतत प्रयास जारी है और नई पीढ़ी को भी रागों पर आधारित शास्त्रीय व सुगम संगीत से जोड़ रहे हैं। यहां केवल रागों पर आधारित ही भजन गाए और सुने जाते हैं। फिल्मी गानों पर किसी तरह का प्रतिबंध तो नहीं है, लेकिन ग्रामीणें को परहेज जरूर करते हैं।
संगीत कला परमात्मा की देन
गांव के ही ग्यारसीलाल मीणा (52) पॉजिटिव कनेक्ट से चर्चा के दौरान बताते हैं कि मैं खुद तो नहीं गाता, लेकिन मेरा 24 वर्षीय बेटा मनीष जरूर ढोलक पर संगत देता है। वे बताते हैं कि यहां ग्रामीण संगीत कला को परमात्मा की देन मानते हैं और इसीलिए फिल्मी धुनों पर आधारित भजनों से दूरी बनाए हुए हैं।
नई पीढ़ी को जुड़ते देख होती है खुशी
गांव के पूर्व सरपंच धन्नालाल पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कि गांव वालों को रागों पर आधारित भजन सुनने में ही आनंद आता है। ग्रामीण फिल्मी गाने सुनना पसंद नहीं करते। कुछ युवा भी आगे आ रहे हैं, जो पूर्वजों की परम्परा को आगे बढ़ाने में रुचि ले रहे हैं। नई पीढ़ी को शास्त्रीय संगीत (Classical Music) से जुड़ते देख खुशी होती है। वे बताते हैं कि गांव में वर्षों से रामलीला का भी मंचन किया जा रहा है।