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Change Life पति के बाद बेटी की मौत, Teacher माया खींचड का बदला जीवन

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By – साधना सोलंकी
15 December 2024

पहले पति की मृत्यु का सदमा और फिर जवान बेटी की मौत का गम कम नहीं होता। हर किसी को झकझौर देने वाले इन हादसों ने गणित की टीचर माया खीचड़ के जीवन का गणित भी बिगाड़ा, लेकिन दृढ़ आत्मविश्वासी माया खीचड़ ने इस असहनीय दर्द से खुद को ऐसा उभारा कि उनका जीवन बदल (Change Life) गया। माया सीकर जिले की पहली देहदानी बनकर अन्य के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी हैं।
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आत्मविश्वास का नया चेहरा, सर जैसे गेटअप में देहदानी माया

सीकर (राजस्थान)। स्त्री पुरुष एक-दूजे के पूरक हैं। शंकर पार्वती के कल्पित अर्धनारीश्वर स्वरूप की गहराई में उतरें तो जीवन जीने की कला का दर्शन यहां मुखर होता दिखता है। एक पुरुष में थोड़ी सी स्त्री और एक स्त्री में थोड़ा सा पुरुष कहीं समाहित रहते हैं। संभवत: जीवन में संपूर्णता को तलाशते ही सीकर जिले की 55 वर्षीय माया खीचड़ (Maya Khichar) ने इस स्वरूप के मर्म को, परिस्थितिजन्य आवश्यकता को समझा और अपने जीवन में उतारा। कुछ चौंकाने, विस्मित करने वाला था यह गेटअप, जिसमें उस दो चोटियों वाली संकोची लडक़ी को छिपाया था और पुरुषोचित माया को दिखाया था। साज शृंगार से दूर, मर्दाना वेशभूषा और निडरता। अन्तत: जीवन जीने का हुनर ही था यह गेटअप।

सीकर के पीपली नगर स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में 36 बरस से गणित पढ़ा रही माया खीचड़ के लिए जिंदगी का गणित बहुत अलग रहा। पिता ने कहा, टीचर बन जाओ, तो एसटीसी कर गणित पढ़ाना शुरू कर दिया, उन्होंने नहीं पूछा, उसे क्या बनना है। पढऩे और आगे बढऩे के लिए मां… ही प्रेरित करती रहीं। वे अपने गांव की छठवीं पास पहली लडक़ी थीं, क्योंकि फौजी नाना झूंथाराम बालिकाओं को शिक्षित करने के पक्षधर रहे।

17 बरस की उम्र में 23 मई, 1987 को विवाह हुआ और जल्द ही दो बच्चे भी। बच्चे छोटे ही थे कि 10 अक्टूबर, 2008 को पति की कैंसर की चपेट में आने से मृत्यु हो गई। आगे जिंदगी के सवाल और मन में कुलबुलाते अधूरे सपने। सपना किरण बेदी सा बनने का…सपना अलग पहचान का…कुछ अलहदा सा कर गुजर जाने का रहा। शादी के बाद वर्ष 1988 में माया सरकारी थर्ड ग्रेड टीचर लगीं।

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माया ही मां…और पिता भी

पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में माया खीचड़ बताती हैं, पति के जाने के बाद बच्चों को पिता की कमी महसूस ना हो, उसमें इस नए गेटअप की सकारात्मक भूमिका रही। आधी रात को भी कार्यवश गाड़ी ड्राइव करते नहीं हिचकती। बल्कि मेरे संग जाने वाले स्वयं को सुरक्षित (Safe) महसूस करते हैं। वे बताती हैं कि पहले बाल डाई करती थी, कोरोना काल के बाद छोड़ दिया। अनुभव किया कि सफेद बालों की गरिमा ज्यादा है। अक्सर लोग मुझे दादा, ताऊ कह देते हैं, पोता भी दादा कह कर ही बुलाता है। ट्रेन में सफर करते टीटी भी संशय में पड़ जाते हैं और मैं मुस्कुराकर इसका आनंद लेती हूं।

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यही अब मेरा सुरक्षा कवच

माया खींचड़ पॉजिटिव कनेक्ट को बताती हैं, असुरक्षा के दौर में यह गेटअप मेरा सुरक्षा कवच है। हां, ससुराल जाती हूं, तो साड़ी पहनती हूं। बुजुर्गों के मन में अपनी परंपरागत बहु की छवि को बदलने का मानस मेरा कभी नहीं रहा, क्योंकि वहां मेरी सुरक्षा पर कोई प्रश्नचिन्ह, कोई डर नहीं। ससुराल वाहिदपुरा (मंडावा-झुंझुनू) और मायका बीबीपुर छोटा सीकर के लोग मेरी कर्मठता का सम्मान करते हैं और वे जानते हैं कि बाहर मैं कैसे रहती हूं। बाहर रुतबा काका, ताऊ, दादा, सर का…।

ससुराल में बहू की भूमिका निभाना अब मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा है। पॉजिटिव कनेक्ट को एक सवाल के जवाब में माया खीचड़ कहती हैं कि हां, शुरुआत में इस गेटअप से मैं खुद भी संकोच करती थी। फिर मन को समझाया मैं किसी का बुरा नहीं कर रही। अब साड़ी पहनने, बाल संवारने में जरा भी वक्त नहीं लगता। कहीं भी, कभी भी चलने को झटपट तैयार रहती हूं।

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सीकर जिले की पहली देहदानी

शिक्षक दिवस (5 सितम्बर, 2019) पर माया सीकर जिले की पहली देहदानी महिला बनी और 336 अन्य लोगों को भी देहदान संकल्प में शामिल किया। उस प्रेरक दिन का ही प्रभाव रहा कि अब तक सीकर जिले में हजारों लोग देहदान का संकल्प ले चुके हैं…ले रहे हैं।

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51 बार रक्तदान और 5 हजार से ज्यादा पौधे रोपे

सरकारी टीचर माया खीचड़ अब तक 51 बार रक्तदान कर चुकी हैं। पर्यावरण प्रेमी माया, विविध संगठनों, स्कूली बच्चों के संग मिलकर हरियाली को भी खुशहाली का रंग दे रही हैं। इसके तहत साल भर में 5100 पौधे रोपे जाने का लक्ष्य भी पूरा किया। पौधरोपण का यह कारवां जारी है। माया का मानना है कि देहदान कर यह एहसास पुख्ता होता है कि आप मौत से नहीं, जिंदगी से हाथ मिला रहे हैं। आपके अंग जिंदा रहकर किसी का संबल बने हैं।

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अंकिता फाउंडेशन से जरूरतमंदों की मदद

टीचर माया खीचड़ की जिंदगी का सबसे बड़ा घाव था इकलौती जवान बेटी अंकिता (पिंकी) का दुधमुंहे शिशु को छोड़ यकायक मौत के मुंह में समा जाना। पॉजिटिव कनेक्ट को माया बताती हैं कि बेटी की मौत के इस शून्य से मुझे बाहर निकलना ही था और बेटी को भी जिंदा रखना था। तब मैंने उसके नाम पर दो वर्ष पहले अंकिता फाउंडेशन (Ankita Foundation) की स्थापना की और भामाशाहों को जोड़ा। अब तक करीब 16 लाख रुपए की राशि मैं सरकारी स्कूल के बच्चों की जरूरतें, उनकी व्यक्तिगत व पारिवारिक मदद में सहयोग पर खर्च कर चुकी हूं। अच्छा लगता है, जब उन्हें हंसते खिलखिलाते देखती हूं और महसूस करती हूं बेटी को, उन जरूरमंदों की मुस्कुराहट में शामिल होते। वे बताती हैं कि बेटी अंकिता की शादी 18 फरवरी, 2020 को काला डेरा चौमूं निवासी संतोष मील के साथ हुई। टीवी देखते समय आए साइलेंट अटैक से अंकिता काल का ग्रास बनी। उसका 2 साल का बेटा दामाद संतोष मील व उनके परिजनों के साथ रहता है। अंकिता फाउंडेशन में उनका पूर्ण सहयोग है। अंकिता का भाई बिजनेस करता है और भाभी योगा टीचर है।

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