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सरसों की नई किस्में विकसित: बढ़ेगा उत्पादन, तेल भी ज्यादा

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By – राजेश खण्डेलवाल
14 October 2024

राजस्थान के अलावा यूपी, एमपी समेत कई राज्यों के किसान आने वाले वर्षों में मालामाल हो सकेंगे। भरतपुर के सरसों अनुसंधान निदेशालय ने तैयार की सरसों की कई उन्नत किस्में तैयार की है, जिनसे भरपूर पैदावार मिलेगी और उसमें तेल की मात्रा भी ज्यादा होगी।
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राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान निदेशालय भरतपुर: किसान होंगे मालामाल

भरतपुर (राजस्थान)। सरसों की विकसित की गई नई किस्में आने वाले वर्षों में मालामाल करेंगी। कारण है कि इन उन्नत किस्मों से उत्पादन बढऩे के साथ ही तेल की मात्रा भी बढ़ेगी।
भरतपुर स्थित देश के एक मात्र राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान निदेशालय ने देश के किसानों के लिए अब सरसों की कई उन्नत किस्म तैयार की हैं। इन किस्मों से जहां भरपूर पैदावार होगी, वहीं इनमें तेल की मात्रा भी अच्छी होगी। निदेशालय और उसके संबद्ध संस्थानों ने कुल 6 किस्में तैयार की हैं, जो अलग-अलग राज्यों की जलवायु के अनुसार उपयोगी सिद्ध होंगी।
सरसों अनुसंधान निदेशालय के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार शर्मा ने पॉजिटिव कनेक्ट को बताया कि अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत सरसों अनुसंधान निदेशालय और निदेशालय के नेतृत्व में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना ने ये नई किस्म तैयार की हैं। सरसों अनुसंधान निदेशालय की ओर से भी दो किस्में तैयार की गई हैं। यह दोनों ही किस्म राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के किसानों के लिए उपयुक्त साबित होंगी।

डीआरएमआर 2018-25 (बीपीएम 1825)

यह भारतीय सरसों की किस्म सरसों अनुसंधान निदेशालय भरतपुर द्वारा विकसित की गई है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के किसान इसकी बुवाई कर सकते हैं। इसकी उत्पादन क्षमता 26.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और तेल की मात्रा 41.7 प्रतिशत है।

डीआरएमआरसीआई(क्यू) 47

सरसों अनुसंधान निदेशालय द्वारा तैयार की गई यह किस्म भी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के किसानों के लिए है। इसकी उत्पादन क्षमता 23.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और तेल की मात्रा 40.5 प्रतिशत है।

एनपीजे 253 (पीएम 37)

सरसों की यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। इसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के लिए जारी किया गया है। इसकी उत्पादन क्षमता 26.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और तेल की मात्रा 39.9 प्रतिशत है।

जीएसएच 2155 (पीसीएसएच 2155)

यह गोभी सरसों की हाइब्रिड किस्म पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना द्वारा विकसित की गई है। इसे सभी जोन के लिए जारी किया गया है। इसकी उत्पादन क्षमता 23 क्विंंटल प्रति हेक्टेयर और तेल की मात्रा 40 प्रतिशत है।

आरएचएच 2101

यह हाइब्रिड किस्म चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार द्वारा विकसित की गई है। इसे पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, राजस्थान व दिल्ली के लिए जारी किया गया है। इसकी उत्पादन क्षमता 28.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर व तेल की मात्रा 39.7 प्रतिशत है।

एसवीजेएच 71

यह हाइब्रिड किस्म है, जो पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के लिए जारी की गई है। इसकी उत्पादन क्षमता 29.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है तथा इसमें तेल की मात्रा 39.4 प्रतिशत है।

आगामी वर्षों में मिलेगा किसानों को इनका बीज

प्रधान वैज्ञानिक डॉ अशोक कुमार शर्मा ने पॉजिटिव कनेक्ट को बताया कि यह सभी निदेशालय के नेतृत्व में तैयार की गई है। नोटिफिकेशन के बाद इन सभी किस्मों को आने वाले वर्षों में किसानों के लिए उपलब्ध कराया जाएगा।

गौरतलब है कि भरतपुर के सेवर में स्थित सरसों अनुसंधान निदेशालय सरसों की नई-नई गुणवत्तापूर्ण किस्म विकसित करता है। निदेशालय में अब तक करीब 12 किस्में विकसित की जा चुकी हैं। यहां विकसित की गई सरसों की किस्म को न केवल भरतपुर के किसान बल्कि राजस्थान समेत देश के उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, जम्मू कश्मीर, असम, मेघालय, मणिपुर, बिहार समेत 17 राज्यों के किसान बुवाई कर पैदावार लेते हैं।

सिंगल सुपर फास्फेट खाद भी उपयोगी

भरतपुर के अतिरिक्त निदेशक कृषि देशराज सिंह ने पॉजिटिव कनेक्ट को बताया कि सरसों फसल के लिए सिंगल सुपर फास्फेट खाद ज्यादा उपयोगी है। इसके प्रयोग से सरसों की पैदावार तथा तेल की मात्रा बढ़ती है। वे बताते हैं कि कृषि वैज्ञानिकों ने अनुसंधान में पाया कि सिंगल सुपर फास्फेट में 16 प्रतिशत फास्फोरस तत्व के साथ 11 प्रतिशत गंधक तत्व मिलता है। सिंगल सुपर फास्फेट का फास्फोरस पानी घुलनशील है, जो पौधों को तुरन्त उपलब्ध हो जाता है। वहीं डीएपी का फास्फोरस साइट्रेट में घुलनशील होता है, जो भूमि में फिक्स हो जाता है और पूरी मात्रा में पौधों को नहीं मिल पाता। इससे जमीन कठोर हो जाती है ।
पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में भरतपुर के संयुक्त निदेशक कृषि आरसी महावर बताते हैं कि एक बीघा में 40 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट पर्याप्त रहता है। इस खाद के साथ 15 किग्रा यूरिया प्रति बीघा अंतिम जुताई से पहले खेत में छिडकऱ जुताई कर दें तथा सुपर फास्फेट खाद मशीन से ओरकर पाटा लगाएं। इसके बाद किसान सरसों की लाइनों में बुबाई करें।
उन्होंने पॉजिटिव कनेक्ट को बताया कि भरतपुर जिले में सरसों की बुवाई का कार्य शुरू होने वाला है। सरसों की बुवाई पूरे अक्टूबर माह में की जा सकती है। बुवाई सबसे उपयुक्त समय 15 से 25 अक्टूबर है। सरसों की बुवाई के समय आम तौर पर किसान डीएपी खाद का प्रयोग करते है, जिसकी उपलब्धता इस समय कम है। सरसों की अच्छी पैदावार के लिए गंधक तत्व की आवश्यकता होती है, जो दाने में तेल की मात्रा बढ़ाने के साथ दाने में चमक लाती है। डीएपी से सिर्फ 46 प्रतिशत फास्फोरस एवं 18 प्रतिशत नाइट्रोजन तत्व मिलता है। इसमें गंधक तत्व नहीं होता है।

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