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Government Primary School यहां पहुंच रहे दूसरे गांव व निजी स्कूलों के बच्चे

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Government Primary School

By – हितेश भारद्वाज
29 December 2024

आमतौर पर सरकारी स्कूलों के प्रति बच्चों और उनके अभिभावकों का रुझान कम ही होता है। इस कारण हर कोई अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाना चाहता है, लेकिन अलवर जिले में एक ऐसा सरकारी प्राइमरी स्कूल (Government Primary School) भी है, जहां दूसरे गांव के बच्चे भी पढऩे पहुंचते हैं। इनमें ऐसे बच्चे भी हैं, जो पहले प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे थे। स्कूल का भवन फिलहाल पुराना है, लेकिन संस्था प्रधान के नवाचार बच्चों व उनके अभिभावकों को आकर्षित कर रहे हैं।
Government Primary School

पढ़ाने को अपनाई कई विधियां

अलवर (राजस्थान)। मेरी एक बेटी कक्षा 2 में और दूसरी बेटी कक्षा 4 में पढ़ती है। दोनों बेटियां गांव के ही सरकारी प्राइमरी स्कूल में जाती है। यहां शिक्षिकाओं का पढ़ाने का तरीका बहुत अच्छा है। मैडम पढ़ाई के वीडियो भी हमें भिजवाती हैं। उलाहेड़ी गांव के फारुक ने बताया। फारुक बताता है, दूसरे गांव के बच्चे भी इस स्कूल में पढऩे आते हैं। गांव वाले भी विद्यालय विकास में सहयोग करते रहते हैं।
ठेकड़ा गांव के इमामु बताते हैं कि उनके बच्चे पहले चिरखाना गांव के प्राइवेट स्कूल में पढ़ते थे, लेकिन जब मैंने उलाहेड़ी के सरकारी स्कूल में जा कर देखा तो वहां की पढ़ाई बहुत अच्छी लगी। शिक्षिका का पढ़ाने के तरीके बहुत अच्छे लगे, तभी मैंने अपने बच्चों का प्रवेश इस स्कूल में करवाया। हालांकि मेरे गांव ठेकड़ा में भी सरकारी स्कूल है, लेकिन वहां पढ़ाई का स्तर इतना बेहतर नहीं है। ठेकड़ा गांव के 15 से 20 बच्चे उलाहेड़ी गांव के सरकारी स्कूल में पढऩे जाते हैं।
उलाहेड़ी ग्राम पंचायत ठेकड़ा का गांव है। सरपंच चमेली देवी हैं। सरपंच पुत्र ताराचंद बताते हैं कि शिक्षिका प्रियंका व अन्य शिक्षिकाएं बच्चों को पढ़ाने में बहुत मेहनत करती हैं। स्कूल भवन का प्रस्ताव बना कर भेजा है। यह गांव अलवर यूआईटी में आता है। इस कारण ग्राम पंचायत विद्यालय भवन के लिए भूमि उपलब्ध नहीं करा सकता। स्कूल के लिए जगह आवंटित हो जाए तो नया भवन बनाया जा सकता है।

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…तो हुआ बच्चों का ठहराव

मैं अगस्त, 2017 में जब इस स्कूल में आई, तब यहां के हालात अच्छे नहीं थे। बच्चों का शैक्षणिक स्तर काफी न्यून था। स्कूल की चारदीवारी नहीं थी। स्कूल के सामने रोड पर निकलने वाले वाहनों से बच्चों की दुर्घटना होने का खतरा रहता था। उलाहेड़ी गांव के राजकीय प्राथमिक विद्यालय की संस्था प्रधान प्रियंका कुमारी ने पॉजिटिव कनेक्ट को बताया। वे बताती हैं, ऐसे में ग्रामीणों व भामाशाहों मिलकर प्रयास किया तो स्कूल की चारदीवारी बनवाई। इससे बच्चों को सुरक्षा का भरोसा हुआ तो उनका ठहराव भी होने लगा।

अभिभावकों के ग्रुप में पढ़ाई के वीडियो

बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए मैंने, साथी शिक्षिका सुमन व गीता ने नवाचार करने का विचार बनाया और उन्हें खेल-खेल में पढ़ाने, करके सीखने, भ्रमण कराकर, प्रोजेक्ट के माध्यम से समझाकर व कहानी सुनाकर सिखाने जैसी विधि अपनाई गई। स्कूल के कमरों की दीवारों पर शिक्षण संबंधी चित्र बनवाए हैं तो गिनती व पहाड़े भी लिखवाएं हैं। इतना ही नहीं, गुणा व भाग संबंधी गतिविधियां भी चित्रित कराई हैं ताकि बच्चे इन्हें देख-देखकर भी आसानी से सीख व समझ सकें। सभी बच्चों के पहचान पत्र भी बनवाएं हैं। साथ ही बच्चों को पढ़ाते हुए वीडियो के वीडियो बनाकर अभिभावकों के ग्रुप पर डाले जाने लगे। इस तरह से बच्चों में सीखने की प्रवृति बढ़ी तो अभिभावकों में भी शिक्षा के प्रति जागृति पैदा हुई।

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ऐसे दो गुणा हुआ नामांकन

स्कूल की संस्था प्रधान प्रियंका बताती हैं, उलाहेड़ी के साथ ही ठेकड़ा गांव में घर-घर जाकर करीब एक महीने तक अभिभावकों से सम्पर्क किया और उन्हें स्कूल में हो रही पढ़ाई के बारे में समझाया। नतीजन उलाहेड़ी ही नहीं, ठेकड़ा गांव के ऐसे बच्चे भी स्कूल से जुड़े, जो पहले निजी स्कूलों में पढ़ रहे थे। इस तरह स्कूल में बच्चों का नामांकन दो गुणा हो गया।

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भामाशाहों का मिला सहयोग

संस्था प्रधान बताती हैं कि मैं और मेरा स्टॉफ बच्चों के लिए कुछ करना चाहते थे। इसी सोच के साथ उन्हें जरूरी पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराई। इससे गांव के भामाशाह भी प्रेरित हुए और उनका भी सहयोग मिलने लगा तो बच्चों को जर्सी, स्कूल किट, कक्षा-कक्षों के लिए दरी पटटी, फर्नीचर आदि उपलब्ध कराया जा सका।

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भवन पुराना, नए की दरकार

संस्था प्रधान प्रियंका कुमारी बताती हैं, फिलहाल बच्चों का शैक्षणिक स्तर काफी अच्छा है। इससे उनकी परफोर्मेंस अच्छी आ रही है, लेकिन संसाधनों की कमी अभी खलती है। यहां महज 3 कमरे हैं, इन्हीं में कार्यालय के साथ 5 कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है। कई बार बच्चों को बरामदे में पढ़ाना पड़ता है। पुराना होने के कारण भवन भी जर्जर है। स्कूल भवन सडक़ से नीचा है। इस कारण बारिश के दिनों में जलभराव जैसी समस्या रहती है। वे बताती है कि विभाग को स्कूल भवन निर्माण के लिए बजट आंवटित कराने का आग्रह किया है ताकि बच्चों को पढ़ाई को बेहतर माहौल मिल सके।

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