By – राजेश खण्डेलवाल
26 December 2024
महावारी के दौरान आमतौर पर महिलाएं घर का ही साधारण कपड़ा काम में लेती हैं, जिसके अनहाइजैनिक होने से महिला के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पडऩे का अंदेशा बना रहता है। महिलाओं को मासिक धर्म या महावारी के प्रति जागरूक (Menstruation Aware) कर रही राजस्थान की मालविका मुद्गल उन्हें कपड़े के बने ऐसे रीयूजेबल सैनिटरी पैड्स नि:शुल्क उपलब्ध करा रही हैं, जिन्हें धोकर 12 से 18 माह तक काम में लिया जा सकता है। साथ ही मालविका महिलाओं की काउंसलिंग कर मासिक धर्म के दौरान बरती जाने वाली जरूरी सावधानियां भी बता रही हैं। इससे पिछले 8 माह में ही धौलपुर जिले की सैंकड़ों महिलाएं मासिक धर्म के प्रति ना केवल जागरूक हुई हैं, बल्कि अब घरेलू कपड़े को टाटा कर कपड़े से बने रीयूजेबल सैनिटरी पैड्स यूज कर रही हैं।
पर्यावरण को फायदा, स्वास्थ्य भी सुरक्षित
धौलपुर (राजस्थान)। पहली बार किसी ने मासिक धर्म यानि महावारी के प्रति जागरूक (Menstruation Aware) ही नहीं किया, बल्कि इस दौरान स्वास्थ्य को लेकर खुलकर बताया भी। काउंसलिंग का सत्र बहुत ही जानकारीपरक रहा। मैंने मुफ्त मिले रीयूजेबल पैड्स का उपयोग किया, जो काफी अच्छे लगे। इन्हें धोकर पुन: काम में लिया जा सकता है, जो महत्वपूर्ण है। अब मैं इन्हीं पैड्स को काम में ले रही हूं। ऐसा धौलपुर की मधु चंदन ने बताया। वे कहती हैं, काउंसलिंग के सत्र सतत होते रहने चाहिए।
राजाखेड़ा के बिलपुर गांव की शिवानी राज बताती हैं, अभी तक गांव में कोई भी मासिक धर्म के बारे में खुलकर बात करने नहीं आया। पहली बार हुई काउंसलिंग काफी ज्ञानबर्धक रही। इससे स्वास्थ्य को लेकर बहुत कुछ समझने और सीखने को मिला है। फ्री मिले रीयूजेबल पैड्स काफी अच्छे हैं।
उधर, बसेड़ी की लाभार्थी अंजू देवी कहती हैं, महामारी के समय कपड़ा काम में लेते रहे हैं। बाजार के पैड्स पसंद नहीं आते। गांव में ज्यादातर महिलाएं कपड़ा इस्तेमाल करती है। काउंसलिंग के दौरान फ्री मिले रीयूजेबल पैड्स कपड़े की तरह ही हैं और काफी आरामदायक भी। इन्हें इस्तेमाल करने में कोई परेशानी नहीं होती है। इस तरह के कपड़े के बने रीयूजेबल सैनिटरी पैड्स गांव-गांव में महिलाओं को फ्री में उपलब्ध करा रही हैं मालविका मुद्गल।
पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में मालविका बताती हैं कि आमतौर पर महिलाएं माहवारी के समय अनहाइजेनिक कपड़े का उपयोग करती हैं या फिर सैनिटरी पैड़ का। सैनिटरी पैड्स प्लास्टिक के बने होते हैं, जो उनके स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित नहीं होते और वे पर्यावरण के लिए भी हानिकारक होते हैं। महिलाओं को ऐसी समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए जगन संकल्प इनोवेशन फाउंडेशन ने सार्थक पहल शुरू की है, जो संभवत: राजस्थान में पहली है।
फाउण्डेशन की डायरेक्टर मालविका मुद्गल पॉजिटिव कनेक्ट को बताती हैं कि माहवारी के दौरान किशोरियों व युवतियों के साथ-साथ महिलाओं को होने वाली कई तरह की समस्याओं के प्रति जागरूक ही नहीं कर रही, बल्कि मैं उन्हें सावचेत भी कर रही है। इतना ही नहीं, स्कूल और गांवों में लगाए जा रहे शिविरों में रीयूजेबल सैनिटरी पैड्स फ्री में बांट रही हूं।
मालविका बताती हैं, गांव-देहात में शर्म की वजह से महिलाएं चिकित्सक तक नहीं पहुंच पाती है। ऐसे में कई बार उन्हें जटिल समस्याओं से भी जूझना पड़ता है। वे बताती हैं कि गांव-देहात में आज भी ज्यादातर महिलाएं माहवारी के दौरान कपड़ा ही इस्तेमाल करती हैं और इन्हें खेतों में जाकर मिट्टी में दबा देती हैं, लेकिन यह कपड़ा हाइजैनिक नहीं होता है। इससे महिला के स्वास्थ्य पर उसका प्रतिकूल असर पड़ता है। इसे दृष्टिगत रखते हुए फाउंडेशन ने कपड़े से बने ऐसे पैड्स तैयार कराएं हैं, जिन्हें महिलाएं धोकर पुन: उपयोग में ले सकती है। ये पैड्स न केवल महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित हैं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद हैं, क्योंकि इनमें प्लास्टिक का उपयोग नहीं होता। यह पैड 12 से 18 महीने तक उपयोग में लिया जा सकता है।
- 5000 Self-Reliant Women को अब घर खर्च चलाने की चिंता नहीं
- Global Teacher Prize 2024 किसान का बेटा इमरान खान शॉर्टलिस्ट
- माता-पिता का साया नहीं, orphanage ही इनका घर-परिवार
- Sampoorna Shiksha : बच्चों के विकास में बदलाव की वाहक
- Old Age Home अब यहीं जीवन का असली आनंद
- Whatsapp Group से नेक काम, ऐसे बना जरूरतमंदों का मददगार
- Anganwadi School यहां रोते नहीं, हंसते हुए पहुंचते हैं बच्चे
- Government Primary School यहां पहुंच रहे दूसरे गांव व निजी स्कूलों के बच्चे
- Women Empowerment के नायक प्रशांत पाल की प्रेरक कहानी
- Menstruation Aware कपड़ा नहीं, अब यूज कर रही ऐसे पैड्स
- Watermelon cultivation नवकिरण करेगा तेजवीर को निहाल
- Government School ऐसे बना बदहाली से आदर्श
- Teamwork In School लुभाता है यहां का स्कूल भवन
- Women’s Rights In Rajasthan मधु चारण लड़ रही हक की लड़ाई
- Innovation In Government School फौजी ड्रेस में स्कूली छात्राएं!
- Change Life पति के बाद बेटी की मौत, Teacher माया खींचड का बदला जीवन
- Girls Education in Mewat सही मार्गदर्शन से बदला कोमल का जीवन
- Girls Education in Mewat पढ़ाई संग आत्मनिर्भर बन रही बेटियां
- Girls Education in Mewat छूटी पढ़ाई तो मजदूरी से फीस जुटाई
- Girls Education in Mewat महिलाओं के मन भायी वर्षों बाद पढ़ाई
- Girls Education In Mewat अशिक्षा का दाग धो रही बेटियां
- Girls Education in Mewat अनपढ़ जुम्मी ने बेटी को बनाया जेईएन
- 70 की उम्र में Teaching yoga सेहत की संजीवनी बांट रहे ऋषिकेश
- Girls Education In Mewat ऐसे बढ़ा रहे नूर मोहम्मद
- Unique Restaurant यहां खाना खाने से ज्यादा देखने का क्रेज
- कभी मौत का दूसरा नाम था AIDS, अब कम हो रही बीमारी
- Digital Library ऐसे बढ़ा रही बच्चों का आत्मविश्वास
- Suratgarh CHC: डॉक्टर्स ने ऐसे बदली दशा, मरीजों को सुकून
- Relief To The Disabled : स्वावलंबन फाउंडेशन की अभिनव पहल
- Plantation: बेटी की बीमारी से ऐसे बदली डॉ. पिता की सोच
- Forbes Magazine में सूचीबद्ध Dr. Naveen Parashar की कहानी
- दोनों हाथ नहीं, Writes With His Feet कृष्णा
- खुद के हेलीकॉप्टर से मनीष ने कराई दादी को Helicopter Ride
- नौकरी छोड़ सुनारी के Manish Kumar ने बनाई हेलीकॉप्टर कम्पनी
- इस देश का Education System सर्वाधिक दबावभरा
- इस देश का Education System दुनिया में सबसे श्रेष्ठ
- IT Sector: जैनेन्द्र अग्रवाल दे रहे 200 युवाओं को रोजगार
- यहां के ग्रामीण Classical Music के मुरीद, फिल्मी गानों से परहेज
- Free Library : ग्रामीण युवा समय सिंह कर रहा शिक्षा दान
- Street Dog : कविता सिंह के स्कूटर की डिग्गी ही चलता-फिरता अस्पताल
- Specially Abled Children : संकेतों के साथ दिखा रहे हुनर
- Dragon Fruit की खेती करके आप भी हो सकते हैं मालामाल
- Organic Farming : स्वास्थ्य का फायदा, आय भी ज्यादा
- Hitech Nursery: शोभालाल की शोभा बढ़ा रहे टमाटर व शिमला मिर्च
- knowledge enhancement program: विदेश में नया सीखेंगे युवा किसान
- Bargad Man Teacher : मनाते पौधों का बर्थडे, बांधते रक्षासूत्र
- Journalist Jyoti Sharma ने जलाई कई के जीवन की ज्योत
- हजारों असहायों की सहारा हैं अपनाघर की Babita Didi
- keoladeo national park: भरतपुर में घना घूमने वाले पर्यटकों को राहत
- सरसों की नई किस्में विकसित: बढ़ेगा उत्पादन, तेल भी ज्यादा
- अपनाघर का स्पेशल रेस्क्यू अभियान: ये ‘यहां’ तो वे अपने घर खुश
- Mobile Veterinary Unit पशु बीमार है तो घबराएं नहीं, सिर्फ यह करें
- Special Children part-3 ‘इनकी ’ मुस्कान से हम चिंतामुक्त
- Special Children part-2: ‘ इनसे ’ जुड़कर किस्मत बदल गई
- Special Children : ‘इन्हें’ अनदेखा नहीं, ऐसे प्यार की है दरकार
- बीकानेर की पठानी…देती संदेश, बदलती जिंदगानी
- मृत्युभोज : कब मिलेगा ऐसी कुरीति से छुटकारा
- विकसित भारत : जन भागीदारी से ही होगा सपना साकार
- World Smile Day Special तलाश शुद्ध मुस्कुराहट की!
- Nek Kamai Foundetion ने किया 218 गरीब बेटियों का कन्यादान
- अलख जगाने के नायक बने नागौर के धन्नाराम
- काश! हर गांव को मिल जाए एक ऐसा डॉक्टर
- 130 बेटियों की शादी कराने वाली किन्नर नीतू मौसी की कहानी
जन्मभूमि को इसलिए बनाया कर्मभूमि
जगन संकल्प इनोवेशन फाउण्डेशन की डायरेक्टर मालविका मुद्गल धौलपुर में जगन परिवार से हैं। वे पूर्व मंत्री रहे स्व. बनवारीलाल शर्मा की पौती और अशोक शर्मा की पुत्री हैं। बेंगलूरु से एमबीए करने के बाद मालविका ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पब्लिक पॉलिसी की पढ़ाई की हैं। इन्होंने दिल्ली की कई बड़ी कम्पनियों में भी काम किया, लेकिन इनका मन अपनी माटी के लिए कुछ करने को कचोटता रहता था। आखिर इन्हें दिल्ली से अच्छी नौकरी छोडकऱ अपनी जन्मभूमि को ही कर्मभूमि बनाने का फैसला लिया।
माहवारी पर काम करने का ऐसा बना मन
पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में मालविका बताती हैं कि दिल्ली से धौलपुर लौटकर सबसे पहले करीब ढाई दर्जन पंचायतों में जाकर जमीनी स्तर पर समस्याओं को जाना और समझा। समस्याएं तो कई तरह की सामने आई, लेकिन उनमें से महिलाओं के माहवारी के दौरान स्वास्थ्य संबंधी समस्या ऐसी लगी, जिस पर काम करने का मन बना। साथ ही युवाओं की बेरोजगारी ने भी मुझे झकझौरा।
बेरोजगारों के लिए स्किल डवलमेंट
बेरोजगार युवा-युवतियों के लिए हमने दिल्ली के बाधवानी फाउण्डेशन से सम्पर्क कर बाडी कॉलेज के 80 छात्र-छात्राओं के लिए स्किल डवलपमेंट का कार्यक्रम चलाया। इसके लिए कॉलेज में दो ट्रेनर भी रखे हैं, जो छात्र-छात्राओं को स्किल डवलपमेंट संबंधी टे्रनिंग देते हैं। यह पायलेट प्रोजेक्ट हैं और इसके सफल होने के बाद प्रोजेक्ट को धौलपुर जिले के आठों कॉलेजों में चलाया जाएगा। पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में फाउंडेशन की निदेशक मालविका ने बताया। वे बताती हैं कि साथ ही जॉब रेडी के नाम से ओपन फ्री कोर्स भी शुरू किया, जिसे कोई भी ऑनलाइन ले सकता है। तय अवधि में यह कोर्स करने के बाद युवा को सर्टिफिकेट भी मिलता है, जो उसको जॉब दिलाने में मददगार बनता है। इस प्रोजेक्ट को फाउण्डेशन के को-फाउण्डर और मेरे भाई दुष्यंत अशोक शर्मा संभाल रहे हैं।
आठ माह में लगाए 17 शिविर
फाउण्डेशन की निदेशक मालविका बताती हैं कि हमने फील्ड में अपना काम जनवरी, 2023 में शुरू कर दिया था, लेकिन इसकी विधिवत शुरूआत मई, 2024 में की गई। वे बताती हैं कि पिछले 8 माह में 7 स्कूल, एक कॉलेज के साथ ही धौलपुर, राजाखेड़ा और बसेड़ी के दर्जनभर गांवों में 17 शिविर लगाकर महिलाओं को माहवारी के प्रति जागरूक किया है और उन्हें फ्री में कपड़े से बने रीयूजेबल सैनिटरी पैड्स वितरित किए हैं। धौलपुर जिले के अलावा जयपुर के हाथीगांव व जयपुर में ही सिविल लाइन क्षेत्र में भी शिविर लगाकर रीयूजेबल सैनिटरी पैड्स बांटे हैं।
डेढ़ हजार महिलाओं को किया लाभान्वित
मालविका पॉजिटिव कनेक्ट को बताती हैं कि धौलपुर जिले में अभी तक लगभग डेढ़ हजार महिलाओं को लाभान्वित किया जा चुका है। गांवों में महिलाओं और किशोरियों के लिए मासिक धर्म, स्वास्थ्य और जागरूकता कार्यक्रम के लिए शिविर लगाए जाते हैं। इस पहल का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में महिला स्वास्थ्य और मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करना है।
महिलाओं की काउंसलिंग भी
वे बताती हैं कि मासिक धर्म काउंसलिंग कार्यक्रम के तहत किशोरियों और महिलाओं को मासिक धर्म से संबंधित स्वास्थ्य और स्वच्छता पर परामर्श दिया जाता है। लगभग डेढ़ घंटे की काउंसलिंग सत्र के दौरान उन्हें माहवारी के दौरान स्वास्थ्य पर पडऩे वाले असर के बारे में चित्रों के माध्यम से विस्तार से समझाया जाता है और इसके लाभ-हानि भी बताए जाते हैं।
महावारी के समय आती हैं ऐसी समस्याएं
* बुनियादी स्वच्छता।
* ऐंठन और दर्द।
* अत्यधिक खून की हानि।
* PCOS, जिसकी वजह से पीरियड साइकल सामान्य नहीं होता है और 1-2 महीने के गैप में आता है।
* किसी को 25 दिन में ही पीरियड आ जाता है।
* रक्तस्राव और रक्त का थक्का जमना आदि।
* यौवन और रजोनिवृत्ति में बहुत बदलाव होते हैं।
55 फीसदी महिलाएं कर रही उपयोग
एक सवाल के जवाब में मालविका बताती हैं कि करीब 55 फीसदी महिलाएं उनकी ओर से फ्री में दिए गए रीयूजेबल सैनिटरी पैड्स का उपयोग कर रही हैं। कुछ ऐसी महिलाएं हैं, जो पैड्स को धोना पसंद नहीं करती हैं, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम हैं और उन्हें समझाने का सतत प्रयास जारी है। कुछ ऐसी भी महिलाएं सामने आई, जिन्होंने शिविर में पैड्स तो ले लिए, लेकिन कई माह बाद भी उनका उपयोग ही नहीं किया। ऐसी महिलाओं को भी चिह्नित कर समझाया जा रहा है।
खुलकर सवाल पूछने लगी महिलाएं
एक अन्य सवाल के जवाब में मालविका बताती हैं कि धौलपुर के ग्रामीण इलाकों में महिला स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूकता की बहुत जरूरत है। हमारी कार्यशालाओं में महिलाएं अब खुलकर सवाल पूछने लगी हैं, जो हमारे प्रयास का नतीजा है। हम यह प्रयास भी करते हैं कि उन्हें उनकी शंकाओं व सवालों के सही व सटीक जवाब मिलें। इससे ग्रामीण महिलाओं को न केवल मासिक धर्म से जुड़े स्वास्थ्य मुद्दों को समझने में मदद मिलती है, बल्कि उनकी जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव भी आते हैं।