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Girls Education in Mewat पढ़ाई संग आत्मनिर्भर बन रही बेटियां

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Girls Education in Mewat

By – राजेश खण्डेलवाल
13 December 2024

राजस्थान के मेवात में बालिकाएं न सिर्फ शिक्षा (Girls Education in Mewat) प्राप्त कर रही हैं, बल्कि वे आत्मनिर्भर भी बन रही हैं। आर्थिक तंगी के साथ-साथ कई कठिनाइयों का सामना करने वाली लड़कियों का आत्मविश्वास मजबूत हुआ है।
Girls Education in Mewat

संकटों के आगे भी अड़ी रहीं बेटियां

अलवर (राजस्थान)। आमतौर पर मेवात में बालिकाओं को पढऩे नहीं भेजा जाता है। स्कूल भेज भी दिया जाता है तो गांव में उपलब्ध पांचवीं या फिर आठवीं तक की पढ़ाई कराकर घर बैठा लिया जाता है। आगे की पढ़ाई के लिए घर वाले बेटी को गांव से बाहर भेजना नहीं चाहते हैं। ऐसे हालत में भी मेवात में बालिका शिक्षा (Girls Education in Mewat) का महत्व समझ चुकी कई बालिकाएं ऐसी हैं, जो आत्मनिर्भर होने की दिशा में कदम बढ़ाने के साथ ही अपनी आगे की पढ़ाई भी कर रही हैं।
पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में इन बालिकाओं का कहना है कि पढऩे की उनकी तमन्ना के आगे परिजनों को झुकना पड़ा तो उन्होंने खुद भी संकटों के आगे हिम्मत नहीं हारी। पढऩे की खातिर कई-कई किलोमीटर तक रोज पैदल चलकर स्कूल पहुंची तो घर के आर्थिक हालात ठीक नहीं होने के कारण उन्होंने कामकाज भी किया। ऐसी बालिकाओं के लिए एमिड नामक संस्था ने जरूरत पडऩे पर वित्तीय मदद दी तो इन बालिकाओं के पढ़ाई के सपने को जैसे पंख लग गए और आज ये बालिकाएं शिक्षा की उड़ान भर रही हैं। इन बालिकाओं ने पॉजिटिव कनेक्ट को बताया कि संघर्षों से हमने बहुत कुछ सीखा और हमारा आत्मविश्वास बढऩे के साथ मजबूत हुआ है।

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ट्रेक्टर चलाकर पिता की मदद-मोनिस्ता

अलवर से 21 किलोमीटर साहडोली गांव की मोनिस्ता के तीन बड़े भाई-बहन हैं, जिनकी अब शादी हो चुकी है। मोनिस्ता सबसे छोटी है। घर के कामकाज के कारण दो साल पहले मोनिस्ता ने पढ़ाई छोड़ दी। पॉजिटिव कनेक्ट को मोनिस्ता बताती है कि अब ट्रेक्टर चलाकर खेत जोतने, बोने व अन्य काम में पिता की मदद करती हूं। मैंने ओपन बोर्ड से 12वीं का फार्म भरा है। बालिका शिक्षा को बढ़ाने के लिए मेरी टीचर बनने की तमन्ना है। मोनिस्ता का कहना है कि किसी भी तरह के काम में पिता की मदद करना अच्छा लगता है। ट्रेक्टर चलाते समय उसे ऐसा लगता है कि वह अपने पिता की बेटी नहीं, बेटा है। वह बताती है कि दो साल के अंतराल के बाद फिर से पढऩा मुझे काफी अच्छा लग रहा है।

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दुकान करके घर चला रही मनीषा

तिजारा से 17 किलोमीटर दूर बैरला गांव की रहने वाली है मनीषा। पिछले 8 साल से लकवा के मरीज रहे उसके पिता उमर मोहम्मद का पिछले साल इंतकाल हो गया तो घर चलाने की जिम्मेदारी का भार खुद मनीषा ने अपने कंधों पर ले लिया। उसने गांव में ही किराने की दुकान खोली और बाइक चलाना भी सीखा। अब वह बाइक से बाजार जाकर दुकान का सामान लाती है। बीए कर चुकी मनीषा पॉजिटिव कनेक्ट को बताती है कि बीएड करने की काफी इच्छा थी, लेकिन आर्थिक मजबूरियों ने रोक दिया। इसमें एमिड संस्था ने वित्तीय मदद देकर साथ दिया, जिससे मैं बीएड कर पाई। मनीषा बताती है कि अब मैं द्वितीय श्रेणी शिक्षिका बनने की तैयारी कर रही हूं। मेरी दो बड़ी बहनों की शादी हो गई है। वे दोनों भी पढ़ी लिखी हैं और तीसरी वाली संजीदा ने बीए कर ली है। घर का सारा खर्चा दुकान से चला रही हूं।

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बच्चों को पढ़ाती भी हूं-अर्जिना

तिजारा के सरहेटा गांव की अर्जिना सात भाई-बहनों में सबसे बड़ी है। आंगनबाड़ी केन्द्र पर पढ़ते बच्चों को देख वह भी पढऩे का प्रयास करने लगी तो आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के समझाने पर माता-पिता उसे स्कूल भेजने लगे। अर्जिना अब मेवात की ऐसी अकेली बेटी है, जिसने बीएससी बीएड किया है। अब उसके अन्य भाई-बहन भी पढऩे लगे हैं। पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में अर्जिना बताती है कि गांव में 7वीं क्लास तक ही स्कूल था। ऐसे में आठवीं की पढ़ाई के लिए कई किलोमीटर पैदल चलकर दूसरे गांव जाना पड़ता था। मुझे दूसरे गांव जाते देख गांव वाले ऐतराज जताने लगे, लेकिन पिता ने साथ दिया। दसवीं के बाद आगे की पढ़ाने के लिए मैं रोज 10-15 किलोमीटर पैदल चलकर तिजारा पहुंचती। आर्थिक मजबूरियों में पिता ने पढ़ाई छोडकऱ घर बैठने को कहा तो मां उसके साथ खड़ी रही। इससे पिता कुछ दिन खफा रहे, पर मां ने कर्ज लेकर फीस भरी। बारहवीं के बाद सिलाई करके आगे की पढ़ाई की। अब मैं एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाती भी हूं। बीएड के लिए एमिड संस्था ने वित्तीय मदद दी। अब पिता कुर्सीद को भी उम्मीद है कि अर्जिना एक दिन उसका नाम रोशन करेगी।

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फर्राटे भर रहीं बेटियां

एमिड (AMIED) के मैम्बर सचिव नूर मोहम्मद पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कि कॉलेज शिक्षा लेने के बाद भी कई बेटियां घर बैठी थी। आर्थिक संकटों के कारण वे आगे नहीं पढ़ पा रही थीं। ऐसी बेटियों का पता चलने के बाद संस्थान ने उनकी फीस जमाकर वित्तीय मदद की और बीएड कराई। कई बालिकाओं को बीएड के दौरान दोनों साल की फीस भी संस्थान की ओर से दी गई। कई बालिकाएं अब आत्मनिर्भर बन चुकी हैं और पढ़ाई के साथ ही घर खर्च में भी मददगार बनी हैं। मेवात में अब कई बालिकाएं बाइक चलाकर फर्राटे भरने लगी हैं।

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