By – राजेश खण्डेलवाल
10 December 2024
राजस्थान के मेवात में मुस्लिम समुदाय के पढ़े लिखे परिवारों में जरूर बालिका शिक्षा (Girls Education In Mewat) का उजियारा फैल रहा है पर ज्यादातर परिवारों में आज भी पुराने ख्यालातों के कारण अशिक्षा रूपी अंधियारा छाया है। पढ़-लिखकर अच्छे पदों पर कार्यरत मुस्लिम बेटियां इस दाग को धोने का प्रयास करती नजर आती हैं।
शिक्षा में बाधक रुढि़वादी सोच
अलवर/भरतपुर। यूं तो पिछले कुछ वर्षों में मेवात में बालिका शिक्षा (Girls Education In Mewat) को लेकर काफी बदलाव हुआ है, लेकिन दूरदराज के गांवों में आज भी रुढि़वादी सोच हावी है, जो बालिका शिक्षा की राह में सबसे बड़ी बाधक बनी है।
राजस्थान के मेवात में साइबर क्राइम, गोतस्करी, टटलूबाजी जैसे संगठित अपराध यहां के सौहाद्र्र पर बदनुमादाग हैं। इन्हीं के कारण यह क्षेत्र आए दिन सुर्खियों में छाया रहता है और धमिल होती छवि का दंश सहता है, जो हर पढ़े-लिखे को कचोटता है। चाहे वह हिन्दु वर्ग से हो या फिर मुस्लिम समुदाय से। पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो चुकी मुस्लिम समुदाय की अनेक बेटियां शिक्षा का उजियारा तो फैला ही रही हैं, अन्य बालिकाओं को प्रेरित करने के साथ ही मेवात में व्याप्त रुढि़वादी सोच को बदलने और अशिक्षा रूपी दाग को मिटाने का जतन भी कर रही हैं।
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सोच में बदलाव की दरकार
अलवर में लक्ष्मणगढ़ ब्लॉक के मौजपुर गांव की बेटी अफसाना मेवात में संभवत: ऐसी पहली महिला हैं, जिन्होंने उर्दू भाषा पहले एमए किया और फिर उर्दू में ही पीएचडी भी की। आज वे रामगढ़ के सरकारी कॉलेज में उर्दू की सहायक आचार्य के रूप में कार्यरत हैं। घांसोली (किशनगढ़बास) में ब्याही अफसाना पॉजिटिव कनेक्ट को बताती हैं कि उनके परिवार में वह सबसे बड़ी बेटी हैं। शुरूआत में ग्रहणी मां फइमन का रुझान उर्दू पढ़ाने की ओर था तो मदरसे से प्रारंभिक शिक्षा लेने पहुंची, लेकिन वहां मेरा मन नहीं लगा तो मौजपुर में सरकारी शिक्षक के रूप में कार्यरत व मेरे चाचा असरुद्दीन ने स्कूली शिक्षा से जोड़ा। 12वीं के बाद महारानी कॉलेज जयपुर से ग्रेजुएशन किया और राजस्थान यूनिवर्सिटी जयपुर से अपनी मास्टर्स और पीएचडी की। उसके बाद कड़ी मेहनत से सहायक आचार्य के पद पर कामयाबी हासिल की।
पॉजिटिव कनेक्ट से चर्चा के दौरान अफसाना बताती हैं कि मेरी कामयाबी में सबसे बड़ा हाथ पापा, चाचा और उनकी दादी का रहा है, जिन्होंने स्कूली शिक्षा के साथ-साथ हायर एजुकेशन के लिए भी साथ दिया। अब छोटी बहन आयशा भी थर्ड ग्रेड (द्वितीय लेवल) टीचर हो गई हैं।
पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में अफसाना बताती हैं कि मुस्लिम समाज में भी बालिका शिक्षा (Girls Education in Mewat) के प्रति जागरूकता बढ़ी है, लेकिन सोच में अभी बदलाव की दरकार है। उनका मानना है कि मात्र पांचवीं, आठवीं तक पढ़ाने से कुछ नहीं होगा। बालिकाओं को बिना किसी डर के कॉलेज भेजकर उच्च शिक्षा दिलाना जरूरी है। इससे उनकी सोच बदलेगी और वे जीवन में कुछ अच्छा कर भी पाएंगी। वे कहती हैं, अब अनेक मुस्लिम बालिकाएं कॉलेज जा रही हैं और सरकारी नौकरी पाने की तैयारी कर रही हैं। यह सुनकर दिल को सुकून मिलता है।
अफसाना के पिता सरफुद्दीन खान फौज में शौर्य चक्र विजेता रहे हैं और वहां से सेवानिवृत होकर फिलहाल एसबीआई बैंक में कार्यरत हैं। उनके पति जुबैर हनीफ बड़ौदा राजस्थान क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में मैनेजर हैं।
समय से पहले निकाह पढ़ाई में बाधक
अलवर के मालाखेड़ा ब्लॉक के गांव नांगल टोडियार निवासी जाहिरा बानो फिलहाल जैसलमेर में जल संसाधन विभाग में जेईएन है। पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में जाहिरा बताती हैं कि गांव के सरकारी स्कूल से आठवीं तक की पढ़ाई की। पिता तैय्यब खान चाहते थे, बेटी इंजीनियर बने। मैंने वर्ष 2019 में सिविल में डिप्लोमा किया। पहले ही प्रयास में जेईएन की नौकरी पाई। सफलता के पीछे मां-बाप का पूरा सपोर्ट रहा। दुनिया के ताने भी सहे पर उन्होंने मुझे पढ़ाया और सर्दी के मौसम में सुबह 5 बजे बाइक से कोचिंग ले जाते थे। मैंने उर्दू भाषा भी पढ़ी और मां सरियम के साथ घर के काम में हाथ बंटाया। वे कहती हैं कि माता-पिता के अलावा प्रोफेसर रसीद का भी पूरा सहयोग रहा है।
जाहिरा का मानना है कि पहले मुस्लिम समाज में बालिकाओं को कम पढ़ाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। वे मेहनत पर भरोसा जताते हुए कहती हैं कि मुस्लिम समाज में समय से पहले निकाह बेटी की पढ़ाई में बाधक बनती है। शादी में होने वाले लाखों के खर्च को फिजूलखर्ची बताते हुए जाहिरा इस राशि से बेटी की पढ़ाई पर खर्च करने की सलाह देती हैं।
बालिकाएं जाने लगी स्कूल
मालाखेड़ा ब्लॉक के ही गांव नांगल टोडियार की जमशीदा सार्वजनिक निर्माण विभाग राजगढ़ में जेईएन हैं। पॉजिटिव कनेक्ट को जमशीदा बताती हैं कि पिता अली हुसैन खान खेती करते हैं और प्राइवेट चिकित्सक भी हैं तो मां मामूरी बानो ग्रहणी है। पिता पढ़े-लिखे हैं। इस कारण उनके परिवार में पढ़ाई का माहौल है। वे बताती हैं कि पहले गांव में पढ़ाई का क्रेज कम ही था, लेकिन अब बालिका शिक्षा के प्रति जागरूक हो रही है। नतीजन, हर घर से बेटियां स्कूल जाने लगी हैं।
बालिका शिक्षा में अवरोध
* दूरस्त गांवों में स्कूलों का अभाव।
* बालिकाओं को पढऩे के लिए गांव से बाहर नहीं भेजना। * अशिक्षा के कारण अनहोनी का डर सताना।
* रुढि़वादी सोच व धर्म का हावी होना।
* आर्थिक संकट जैसी मजबूरियां।
* लिंग भेद के कारण बालिकाओं की अनदेखी।
बेटियां पढ़ेंगी तो आगे बढ़ेंगी
नवगठित डीग जिले में नगर ब्लॉक के गांव झीतरेडी के सरकारी स्कूल में प्रधानाध्यापक राजुद्दीन कुरैशी बताते हैं कि अलवर मेवात शिक्षा एवं विकास संस्थान अलवर जिले में बालिकाओं को पढ़ाने के प्रति लोगों को जागरूक करने का सतत प्रयास कर रही है। बालिका चाहे हिन्दु समाज की हो या फिर मुस्लिम समुदाय की। पॉजिटिव कनेक्ट से चर्चा के दौरान उनका मानना है कि बेटियां पढ़ेंगी तभी तो आगे बढ़ेंगी। वे बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में स्थिति बदली भी है, लेकिन आज भी दकियानूसी सोच अशिक्षा के चलते हावी है। वे कहते हैं कि अलवर मेवात शिक्षा एवं विकास संस्थान (AMIED) को डीग जिले के मेवात में भी बालिका शिक्षा के लिए ऐसा अभियान चलाना चाहिए।
डीग के मेवात पर भी देंगे ध्यान
अलवर मेवात शिक्षा एवं विकास संस्थान के सदस्य सचिव नूर मोहम्मद बताते हैं कि संस्थान फिलहाल अलवर, खैरथल व करौली जिले में बालिका शिक्षा के लिए काम कर रहा है। पॉजिटिव कनेक्ट से चर्चा में उन्होंने बताया कि डीग जिले का मेवात भी उनके ध्यान में है और संस्थान की मीटिंग में इस पर गंभीरता से विचार किया जाएगा।