By – साधना सोलंकी
06 December 2024
राजस्थान के सूरतगढ़ में रह रहे ऋषिकेश जांगिड़ 70 की उम्र में लोगों को योग सिखाकर (Teaching yoga) सेहत की संजीवनी बांट रहे हैं। उनके जीवन का अधिकांश समय संघर्षों से जूझते ही बीता है। एक समय ऐसा भी था, जब उन्हें आर्थिक संजीवनी की दरकार थी, लेकिन अब लोग उनकी मेहनत, हिम्मत और जज्बे का सम्मान करते हुए उन्हें गुरुजी कह कर सम्बोधित करने लगे हैं।
स्वास्थ्य सुधरा तो सोच भी बदली
सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर)। मैं कफ आने की शिकायत से परेशान थी। सांस लेने में दिक्कत होती थी। शरीर में टूटन, भूख नहीं लगना जैसी समस्याएं आए दिन सहनी पड़ती थी। दही-छाछ प्रिय रहे पर उनका सेवन नहीं कर सकती थी। मेरे लिए यह तनाव और अवसाद की शुरूआत थी।
किसी से पता चला कि बसंत बिहार पार्क में फ्री में योग सिखाने (Teaching yoga) की क्लास चलती है। मैं और मेरी पड़ोसन पुष्पा ने सुबह छह बजे वहां जाना शुरू किया। धीरे-धीरे योग के सभी आसन सहजता से होने लगे। मात्र सालभर ही हुआ है कि अब ना कफ परेशान करता है और ना सांस उखड़ती है। अब छाछ-दही भी नियमित भोजन में शामिल है।
60 वर्षीय पूर्व पार्षद अहिंसा गोदारा ऐसा कहते हुए पॉजिटिव कनेक्ट को बताती हैं कि योग से जीवन के प्रति सोच सकारात्मक हुई है। पहले जल्दी उठना मुश्किल लगता था, अब उगते सूर्य को देखने की ललक बनी रहती है।
53 साल के गिरदावर धर्मवीर भाटी बीपी, शुगर और घबराहट से त्रस्त रहते थे। पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में भाटी बताते हैं कि 3 साल से योग का सतत अभ्यास कर रहा हूं। अब बीमारियों से मुक्त हूं। दिनभर ऊर्जावान रहता हूं। कई बार गुरुजी (ऋषिकेश जांगिड़) बाहर चले जाते हैं तो योग क्लास की कमान संभाल लेता हूं।
ये दो तो उदाहरण मात्र हैं, ऐसे कई हैं, जो सतत योग का अभ्यास करने से स्वथ्य हुए हैं और आज दूसरों को प्रेरित कर रहे हैं। पुरानी दमदार लोकोक्ति है कि ‘पहला सुख, निरोगी काया’। जिसने इस पर अमल कर लिया, समझो जीवन जीने की कला की ‘मास्टर-की’ हाथ लग गई। यह दौर खान-पान के मामले में सर्वाधिक मिलावट का है। चाह कर भी इससे बचा नहीं जा सकता। नतीजा जिधर नजर डालो, सेहत का पाया डगमगाता दिख रहा है। डायबिटीज, घुटनों का दर्द, हाई व लो बीपी, तनाव, अवसाद, मोटापा, थायराइड, कमजोर नजर जैसी बीमारियां आम हो चली हैं।
उम्र के सत्तर बसंत देख चुके ऋषिकेश जांगिड़ ने इस सामाजिक मर्ज को समझने के साथ ही योग संजीवनी के मर्म को भी गहराई से समझा और इसे सहज नि:शुल्क बांटने का मानस बनाया। अभ्यास दर अभ्यास से वे योग कला में पारंगत होते चले गए।
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संघर्ष ने दी अनुभव की सौगात
पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में योग प्रशिक्षक (Yoga instructor) ऋषिकेश जांगिड़ बताते हैं, मेरे जीवन का अधिकांश समय संघर्ष करते ही बीता है। वर्ष 1976 में ग्रेजुएशन किया। इससे पूर्व विवाह भी हो गया था। वर्ष 1975 में बेटी और इसके बाद तीन बेटे हुए। आजीविका के लिए शुरुआत में छोटे मोटे काम किए, जो भी मजदूरी मिली, वही की। लिफाफे बनाने से लेकर पत्नी ने आधी-आधी रात तक स्वेटर बुनने का काम किया, क्योंकि चारों बच्चे पढऩे वाले थे। फिर गुड़ चीनी के थोक कारोबार से जुड़ी एक निजी फर्म में एकाउंटेंसी यानी हिसाब किताब रखने का काम श्रीगंगानगर में एक सेठ के यहां मिला। अंतिम 15 हजार रुपए पगार पर मैंने लगातार 40 बरस यहां काम किया। कोरोना काल में यह काम छूट गया। संघर्ष ने मुझे अनुभवों की सौगात सौंपी और मैंने जीवन में कर्म और धैर्य की भूमिका को समझा।
बेटा बोला, पापा योग शिविर लगाते हैं
मई 2011 के उस दिन को याद करते हुए गुरुजी Yoga Teacher Rishikesh Jangid पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कि बड़ा बेटा, मुंबई में भाभा इंस्टीट्यूट में अधिकारी है, जो घर आया था। वह बोला, पापा योग शिविर लगाते हैं… मैं सहमत हो गया। कुछ बच्चों ने पंफलेट छपवाए और योगाचार्य जी से संपर्क किया। उन्होंने तीन दिन का समय दिया। शिविर में दो सौ के लगभग लोग जुटे तो योगाचार्य ने दो दिन का समय और बढ़ा दिया। मैं थोड़ा बहुत कर लेता था, पर योगाचार्य ने सिखाने के लिए मेरा नाम घोषित कर दिया। 29 मई 2011 को मैंने पहला प्रशिक्षण दिया, तारीफ मिली तो उत्साह जागा। फिर यह लगातार होने लगा। पतंजलि वाले भी मुझे अपने कार्यक्रमों में बुलाने लगे। योग आयुष ग्रुप भी गठित हुआ। इस तरह 10 बरस मैं श्रीगंगानगर में योग कारवां को बढ़ाता रहा, चलाता रहा।
अच्छा लगता है, जब लोग…
मुझे अच्छा लगता है, जब लोग सकारात्मक जुड़ाव रखते हुए आकर कहते हैं, गुरुजी मंडूकासन से मेरी डायबिटीज कंट्रोल में आने लगी है, या अनुलोम विलोम से मेरा बीपी ठीक हुआ…या ध्यान योग से मेरी सोच बदलने लगी है और नजरिया पॉजिटिव होने लगा है। चर्चा करते हुए वे पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं, कि सितंबर 2020 में बेटा भारत भूषण जोधपुर पी.जी. के लिए गया तो मैन भी दस बारह महीने वहां उसके साथ रहा। वहां भी मैं पार्क में निशुल्क योग सिखाने लगा। वहां 70-80 लोग आ जाते थे।
…और अब अब सूरतगढ़ में
जुलाई 2021 में भारत भूषण की पोस्टिंग यहां सूरतगढ़ सीएचसी में हुई तो अपना आशियाना भी यहां बसंत विहार कॉलोनी में बना लिया। योग कक्षाएं चल रही हैं। मेरे सिखाए विद्यार्थियों द्वारा भी यह सेहत की संजीवनी बांटी जा रही है…जानकर खुशी होती है। योग सिखाने के लिए आस पास के पार्क ही प्राथमिकता पर रहे। जब मौसम अनुकूल नहीं होता तो अपने अपने घरों पर इस संजीवनी का योगाभ्यास शिष्य करते हैं। इससे घरों में बच्चे भी उन्हें फॉलो करने लगे हैं। बच्चे, युवा, बुजुर्ग, महिला सभी के लिए योग सेहत का महत्वपूर्ण कारक है। योग करने वालों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है, पर रुकती नहीं है और यही बड़ा सम्मान और पुरस्कार है।