By – साधना सोलंकी
29 November 2024
श्रीगंगानगर जिले में डॉक्टरों के जज्बे ने सूरतगढ़ सीएचसी (Suratgarh CHC) की ऐसी दशा बदली है, जो अब मरीजों को सुकून दे रही है। पहले यहां मरीज आने से कतराते थे, जो अब अन्य अस्पतालों से रैफर होकर यहां आ रहे हैं। नतीजन, यहां की ओपीडी अब 1500 हो गई है, जो जिला अस्पताल के बराबर है। सूरतगढ़ सीएचसी पहले बदहाली पर आंसू बहा रही थी, लेकिन अब बेहतरी की मिसाल बनी है।
चिकित्सकों का जज्बा, जनता का सहयोग
सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर)। सरकारी अस्पताल का नाम लेते ही अमूमन जो छवि सामने आती है, वह डराने वाली होती है। मजबूरी में या फिर अन्य विकल्प उपलब्ध नहीं होने पर ही मरीज यहां पहुंचते हैं। मशीनी चेहरे, मूलभूत सुविधाओं की बदहाली, संवेदनहीनता का आलम अक्सर यहां आने से रोकता है। सरकारी योजनाओं में कहीं कमी नहीं है, लेकिन उन्हें क्रियान्वित करने वाली व्यवस्था गंभीर नजर नहीं आती। राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में सूरतगढ़ का सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र (Suratgarh CHC) भी इससे अछूता नहीं रहा, लेकिन वहां अब ऐसा नहीं है।
जमीनी हकीकत से जुड़े अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. भारत भूषण जांगिड़ (Orthopedic specialist Dr. Bharat Bhushan Jangid in Suratgarh) की अगुवाई में गठित टीम ने कुदरत के मिजाज को समझते ऑपरेशन ग्रीन शुरू किया तो पब्लिक जुडऩे लगी। फिर शुरू हुए अस्पताल की बेहतरी के लिए जतन। जनभागीदारी से प्रयास हुए तो जज्बा और मेहनत रंग भी लाए। आज सूरतगढ़ का सरकारी अस्पताल अपनी बदहाली से बाहर निकल बेहतरी की मिसाल बना है। सीलन भरी दीवारें अब वाटर प्रूफ हैं। छत से जंग लगे सरिए नहीं झांकते, शानदार छत के साथ पी.वी.सी. पैनल ने वह स्थान ले लिया है। गर्मी से जूझते तमाम वार्ड, ट्रोमा सेंटर व लैब भी एयरकंडीशंड हो चुके हैं। अस्पताल के बाहर का सीटिंग ग्राउंड कभी कचराघर होता था, जहां अब हरे भरे वृक्ष अपनी छांव दे रहे हैं। परिसर में हरियाली से भरे गमले अस्पताल की शोभा बढ़ा रहे हैं।
डॉ. भारत भूषण पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कि साढ़े तीन साल पहले मेरा तबादला श्रीगंगानगर के चूनावढ़ से सूरतगढ़ हुआ। चूनावढ़ श्रीगंगानगर का विकसित गांव है, जो जिला मुख्यालय से 17 किमी दूर है। अपनी चिकित्सीय उपलब्धि का उपयोग करने मैं काफी उत्साहित था और सरकारी योजनाओं को विस्तार से जानने समझने का इच्छुक भी।
चूनावढ़ में मिला डेढ़ लाख का कायाकल्प अवार्ड
चूनावढ़ स्वास्थ्य केन्द्र (Chunavarh Health Centre) में ज्वाइनिंग के दो महीने बाद ही मैं इंचार्ज हो गया तो जाना कि सरकारी योजनाओं के तहत सरकार कार्यक्षेत्र को बेहतर बनाने पर डेढ़ लाख रुपए राशि का कायाकल्प अवार्ड देती है। इसमें संस्थान को विकसित, सुविधाजनक बनाने के अलावा योजनाओं को आकर्षक तरीके से लोगों तक पहुंचाने का भी प्रावधान है। गंभीरता से योजना पर स्टाफ के संग कार्य करने लगा। यहां दो गार्डन विकसित किए। तमाम स्वास्थ्य योजनाओं को आकर्षक रूप में सामने की दीवार पर ऐसे चित्रित कराया कि अस्पताल में कदम रखते ही यह आने वालों को आकर्षित करे। जैसे कि मातृत्व दिवस पर ममतामयी हाव भाव से परिपूर्ण चित्रण। अक्सर ये योजनाएं कागजों में सिमट कर रह जाती हैं। दीवार पर सारी योजनाओं का रंगों और स्लोगन के संग उतारना सफल रहा और चूनावढ़ स्वास्थ्य केन्द्र को कायाकल्प अवार्ड मिला।
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मीटिंग में रखे सवाल तो मिला बजट
पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में डॉ. भारत भूषण बताते हैं, मैंने जब सूरतगढ़ सीएचसी (Suratgarh CHC) में कदम रखा तो इसकी बदहाली सवालों के संग सामने थी। नियमानुसार समय-समय पर अस्पतालों में अफसरों की विजिट होती हैं। वे मिटिंग लेकर बेहतरी के लिए हिदायतें दे जाते हैं। यह सब आन रिकॉर्ड होता है पर नजर कुछ ज्यादा नहीं आता। एक बार अतिरिक्त मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (Additional CMHO) आए और एक्वांस टीम (National Quality Insurance Program Team) भी आई, जिसमें डिस्ट्रिक्ट लेवल के दो अधिकारी भी थे। दो घंटे की मीटिंग में विविध पैरामीटर बताए और अस्पताल की हालत सुधारने के निर्देश मिले। फंडिंग पर किसी ने कोई बात नहीं की। सिस्टम को लेकर मैं भीतर से भरा बैठा था। मैंने कहा, सर फंडिंग कौन करेगा, यह भी स्पष्ट कीजिए। माचिस की डिब्बी भी 5 रुपए में आती है, यहां तो लाखों का खर्चा है। मीटिंग में सुधार व्यवस्था से जुड़ा एक भी कर्मचारी नहीं है, करेगा कौन? पिछले साल ही काम के लिए 33 बिंदु थे, जिनमें से 3 पर ही कार्य हुआ। इस गति से कितने सालों में काम पूरा होगा? बोलने का नतीजा यह हुआ कि बजट मंगवाया गया, जिसमें 40 लाख रुपए थे। हालांकि यह पैसा भी सरकारी योजनाओं के तहत हम डॉक्टर्स ही एकत्रित करते हैं। इंश्योरेंस कंपनी मरीजों की गिनती के अनुसार सरकारी खाते में तय राशि जमा करवाती हैं। जैसे कि मैं दिन में कितने प्लास्टर, कितने पेशेंट्स को चढ़ाता हूं। कहने का मतलब योजनाओं की कमी नहीं अवेयरनेस और काम के प्रति समर्पण भाव चाहिए।
पहले एस्टीमेट में उलझते, हमने काम करके दिखाया
चर्चा में डॉ. भारत भूषण ने पॉजिटिव कनेक्ट को बताया, अधिकारी विजिट पर आते, बदहाली पर सवाल करते और यहां से उत्तर मिलता कि 90 लाख का एस्टीमेट भेज रखा है, स्वीकृत होते ही काम शुरू हो जाएगा। यह क्रम सालों से जारी था। ना इतनी बड़ी राशि स्वीकृत होनी थी, ना सुधार मरम्मत का काम। यही तो व्यवस्था है। सुनने को मिलता कि कुछ नहीं हो सकता, पर हमने करके दिखाया।
ना कूलर थे, न पंखे ठीक
छह माह पहले सूरतगढ़ सीएचसी के इंचार्ज (Suratgarh CHC incharge) बने डॉ. नीरज सुखीजा (Dr. Neeraj Sukhija) यहां दो साल से हैं। उत्साहित हो वे पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं, बड़ा आनंद आता है, जब मॉर्निग वॉक पर जाते, पेड़ पौधे रोपते, लोगों से जुड़ते और फिर अस्पताल को सुविधाजनक बनाने पर मिल जुलकर काम करते हैं। दो साल पहले यहां न कूलर थे, ना पंखे ठीक थे। लाइट व्यवस्था भी सही नहीं थी। अब यहां 30 एसी लगे हैं।
दो माह में दान में मिले 12 एसी
पॉजिटिव कनेक्ट को डॉ. सुखीजा बताते हैं, दो वाटर कूलर, शव रखने के लिए डीप फ्रीजर, 37 पंखे, 135 चादर पब्लिक से मिले। सीएचसी का अपना फंड भी है। राजेन्द्र तनेजा के बेटे की एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई। बेटे की स्मृति में उन्होंने 3 एसी दिए। लवाना ने अपनी मां की स्मृति में एसी भेंट किया। मारवाड़ी संस्था फंड से 2 एसी आए। बैडमिंटन साथी पुष्पेन्द्र ने मोटिवेट हो एसी दिया। कॉलोनी कमेटी से 2 एसी आए। आरओ प्लांट, डायलिसिस मशीन डॉक्टर सुरेश पडियार (Dr Suresh Padiyar) के प्रयास से मिले। कुछ समय पहले मैन कंट्रोल पैनल में अचानक आग लग गई। पर फंड उपलब्ध होने के कारण इसे कुछ ही घंटों में 80 हजार रुपए खर्च कर दुरुस्त करवा लिया गया।
रैफर होकर यहां आते हैं केस
महिला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मांगी लेघा (Gynecologist Dr. Mangi Legha In Suratgarh) पॉजिटिव कनेक्ट से बात करते हुए कहते हैं, सीएचसी की हालत सुधरने से डिलीवरी आंकड़ा सौ से बढकऱ ढाई सौ पर पहुंच गया। आसपास के केस श्रीगंगानगर रैफर ना होकर यहां आने लगे हैं।
यह मिनी मेडिकल कॉलेज जैसा
डॉ. लोकेश अनुपानी (Pediatrician Dr. Lokesh Anupani In Suratgarh) पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कि यह मिनी मेडिकल कॉलेज जैसा है। सर्जरी ब्रांच को छोड़ यहां हर सुविधा जो किसी मेडिकल कॉलेज में उपलब्ध रहती हैं, सब यहां है, निकट भविष्य में यह ब्रांच भी उपलब्ध रहेगी। इसे यंग जनरेशन के नजरिए से आंका जा सकता है। संक्षेप में यही कि गवर्नमेंट सेटअप में इतनी सुविधाएं उपलब्ध होना बड़ी बात है और यह सब मोटिवेशन का नतीजा है।
प्रकृति प्रेमी और संवेदनशील है यह शहर
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. हनुमान (Dr. Hanuman in Suratgarh) ने पॉजिटिव कनेक्ट को बताया कि जनता के प्रकृति प्रेमी व संवेदनशील होने से हम लोगों के बीच एक चेन सिस्टम डवलप हुआ और सकारात्मक बदलाव देखने को मिले। हरियाली और सेहत का सीधा संबंध है। ऑपरेशन ग्रीन तो आश्चर्य की तरह हुआ। मैं 5 साल अनूपगढ़ रहा और महसूस किया कि पब्लिक और डॉक्टर्स का अनुपात संतुलित नहीं है। कहीं मरीज ज्यादा तो चिकित्सक गिनती के और कहीं इसके उलट भी है। सूरतगढ़ पहले जहां चिकित्सकों की भी कमी थी और सीएचसी भी बदहाल था, प्रयत्न करने पर अब बदलाव काबिल-ए-तारीफ है।
सब जनता जनार्दन के सहयोग से संभव
डॉक्टर दीपेश सोनी (Dr. Deepesh Soni In Suratgarh) सकारात्मक बदलाव का श्रेय जनता को देते हुए पॉजिटिव कनेक्ट को कहते हैं कि हरियाली और सेहत क्षेत्र में जो परिवर्तन हुए, सब जनता की देन है। मैंने यहां लोकल होने के कारण बहुत स्नेह पाया और इस मोटिवेशन का परिणाम सामने है। हम सभी डॉक्टर्स अपने अपने विभाग को बेहतर से बेहतर बना देने की दिशा में कार्यरत हैं। जैसे डॉक्टर भारत भूषण आर्थोपेडिक सर्जरी करने लगे हैं और इसके लिए उन्होंने सीआर्म मशीन को अपने प्रयासों से उपलब्ध करवाया। यह सफलता ही है कि जिला अस्पताल से यहां ओपीडी अनुपात 1500 है, जो उसकी बराबरी के समक्ष है।