By – राजेश खण्डेलवाल
07 November 2024
सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology) का नाम आते ही हर किसी का ध्यान बेंगलूरु, हैदराबाद, चैन्नई, गुरुग्राम जैसे बड़े शहरों पर जाता है, लेकिन राजस्थान के छोटे शहर भरतपुर में युवा जैनेन्द्र अग्रवाल, मीडिया टेक टेम्पल (MTT) के जरिए सूचना प्रोद्योगिकी सेक्टर (IT Sector) में 2 सौ युवक-युवतियों को रोजगार दे रहे हैं। आज देश की कई ऑटोमोबाइल कम्पनियां इनसे जुडकऱ डिजिटल मार्केटिंग करा रही हैं।
भरतपुर में आईटी को बनाया रोजगार का जरिया
भरतपुर (राजस्थान)। देश में उच्च शिक्षा प्राप्त युवक-युवतियां बेरोजगारी की समस्या से जुझ रहे हैं। रोजगार की तलाश में भटकते युवा-युवतियां ज्यादातर सोशल मीडिया पर टाइमपास कर सरकारों को कोसते रहते हैं। ऐसे में भरतपुर के युवा जैनेन्द्र अग्रवाल ने सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology) सेक्टर को रोजगार का जरिया बनाया और आज करीब 2 सौ युवक-युवतियों को रोजगार दे रहे हैं।
कम्प्यूटर से इनका नाता तब का है, जब ये 8वीं क्लास में पढ़ते थे। इन्होंने हिण्डौनसिटी में अपने मामा के इंस्टीट्यूट पर कम्प्यूटर चलाना सीखा और अन्य बच्चों को सिखाया भी। इन्हें खुद का कम्प्यूटर वर्ष 2007-08 में तब मिला, ये बीएससी थर्ड ईयर में पढ़ते थे। एमबीए फाइनेंस मार्केटिंग किया और ये काम आज सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कर रहे हैं।
भरतपुर के जवाहरनगर निवासी 36 वर्षीय युवा जैनेन्द्र अग्रवाल (Jainendra Agrawal) को सबसे पहली चुनौती तब झेलनी पड़ी, जब पढ़े तो हिन्दी माध्यम से और कॉलेज प्लेसमेंट मिलने के बाद ग्रेटर नोएडा के गलगोटिया बिजनेस स्कूल में फाइनेंसियल मॉडल व रिसर्च फील्ड में काम अंग्रेजी में करना पड़ा, जिसके लिए इन्होंने दिन-रात कड़ी मेहनत की और फिर यहीं नौकरी भी की।
इन्होंने दिल्ली की एक डेटामेशन कम्पनी में एसोसिएट रिसर्च पद पर भी करीब एक साल नौकरी की। इसके बाद करीब एक साल ही सत्या फाउण्डेशन जयपुर में यूरोपियन यूनियन वाटर पर प्रोजेक्ट मैंनेजर के रूप में काम किया। इसके बाद पारिवारिक कारणों से इन्हें घर लौटना पड़ा। इसके साथ ही चुनौतियों ने इन्हें घेर लिया।
करीब छह माह भरतपुर में लुपिन फाउण्डेशन में काम करने के बाद ये पिता की मैचिंग सेंटर की दुकान पर जाने लगे, लेकिन वहां इनका मन काम में नहीं रमा तो फिर खुद का ही कुछ करने का विचार बनाया।
दो दोस्तों के साथ 6 माह तक बच्चों को कम्प्यूटर कोर्स कराने का काम किया। इनमें से एक दोस्त आज बैंक मैंनेजर है तो दूसरा दिल्ली की एक कम्पनी में अच्छी पोस्ट पर कार्यरत है। इन दोस्तों के अपनी-अपनी नौकरी पर चले जाने के बाद वर्ष 2014 में फिर से इन्होंने दो अन्य दोस्तों के साथ मिलकर वेब डवलपमेंट एवं बल्क एसएमएस सेल करने का काम शुरू किया। इनका साथ भी इन्हें ज्यादा नहीं मिला तो इन्होंने खुद ही काम करने की ठानी।
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स्कूटी से कार तक का सफर
शुरूआती दौर में जैनेन्द्र अग्रवाल खुद ही स्कूटी से भरतपुर के अलावा अलवर, महवा (दौसा), हिण्डौनसिटी, करौली, धौलपुर के साथ ही उत्तरप्रदेश के अलीगढ़, हाथरस तक घूम-घूमकर एसएमएस सेल किए और वेबसाइट डवलपमेंट का काम किया। आज ये कार मेंटेन करते हैं।
किराए से खुद का तीन मंजिला भवन
जैनेन्द्र अग्रवाल ने घर से काम करना आरंभ किया। इनकी फर्म मीडिया टेक टेम्पल (MTT) से शुरूआत में 4-5 युवक ही जुड़े थे। युवक-युवतियों की संख्या बढ़ी तो इन्होंने किराए पर जगह ली। कई साल किराए के भवन में काम करने के बाद आज ये खुद के तीन मंजिला भवन में बैठे हैं, जहां इनका स्टॉफ काम करता है।
कोरोना बना टर्निंग पॉइंट
कोरोना में जब चहुंओर कामकाज बंद पड़े थे, वही समय मीडिया टेक टेम्पल (MTT) के प्रबंध निदेशक (MD) जैनेन्द्र अग्रवाल के लिए टर्निंग पॉइंट बना। कोरोना में घर पर ठाली बैठे युवा-युवतियों को अपने साथ जोडकऱ (वर्क फ्रॉम होम) कॉल सेन्टर का काम सौंपा। इस तरह इन्होंने सबसे पहले मिले टीवीएस कम्पनी के कॉल सेंटर के काम को अच्छे से पूरा किया। आज हीरो मोटोकॉप, रॉयल इंजीनियर, बजाज जैसी कम्पनियां भी इनसे जुड़ी हैं। दर्जनों यूनिवर्सिटी और कॉलेजों का काम भी कर रहे हैं।
एमटीटी में अब ये होते हैं काम
मीडिया टेक टेम्पल (MTT) में अब बल्क एसएमएस के साथ ही वाट्सएप वॉयस कॉल, वेब डवलपमेंट, सॉफ्टवेयर डवलपमेंट, कॉल सेन्टर, डिजिटल व सोशल मीडिया मार्केटिंग, सर्च इंजन ऑप्टीमाइजेशन (एसईओ) जैसे काम होते हैं। साउथ में 40 और वेस्ट में 10 लडक़े-लड़कियां एमटीटी से जुड़े हैं, जो ऑनलाइन काम करते हैं। करीब 150 युवक-युवतियों की टीम उत्तर भारत में जुड़ी हैं, जिनमें से ज्यादातर एमटीटी के भरतपुर ऑफिस में ही काम करते हैं।
दिक्कतें आती गई, हल तलाशते रहे
शुरूआती दौर में हर काम में हर किसी को दिक्कत आती है। इससे जैनेन्द्र अग्रवाल भी अछूते नहीं रहे, लेकिन इन्होंने हिम्मत नहीं हारी और हौंसले के साथ दिक्कतों का सामना करते रहे। इस दौर में इन्होंने अपने पार्टनरों से वित्तीय गड़बड़ी जैसा धोखा भी खाया, लेकिन घबराए नहीं और उसका भी हल निकाला। इससे इन्हें बहुत कुछ सीखने और समझने को भी मिला। अब इनकी धर्म पत्नी साक्षी अग्रवाल भी ऑफिस में कामकाज संभालती हैं।
टैक्नोलॉजी पर किया इन्वेस्ट
मीडिया टेक टेम्पल (MTT) के प्रबंध निदेशक (MD) जैनेन्द्र अग्रवाल पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कि मैंने सर्वाधिक इंवेस्टमेंट टैक्नोलॉजी पर किया है। आज एमटीटी में ऐसी-ऐसी टैक्नोलॉजी यूज में लेते हैं, जो बड़ी-बड़ी एमएनसी (MNC) कम्पनियों में यूज होती है। साथ ही हम डेटा सिक्योरिटी पर फोकस करते हैं। इस काम में कई अच्छे हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी हमसे जुड़े हैं, जो समय-समय पर टैक्नोलॉजी को अपग्रेड कराते रहते हैं।
छोटे शहर में रोजगार सृजन बड़ी खुशी
पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में युवा जैनेन्द्र अग्रवाल बताते हैं कि युवक-युवतियों को भरतपुर जैसे छोटे शहर में भी रोजगार मिल रहा है, यही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि और खुशी की बात है। वे बताते हैं कि भरतपुर में आईटी (IT) के क्षेत्र में कई कम्पनियों ने प्रयास किए, लेकिन कुछ दिन बाद ही उन्हें जयपुर या अन्य बड़े शहरों में शिफ्ट होना पड़ा। उन कम्पनियों के भरतपुर शहर छोडऩे के कारणों पर गहनता से अध्ययन किया और आज नतीजा सामने है। वे पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कि अब तक 3-4 सौ युवक-युवतियां काम सीख कर जा चुके हैं, जो अब कहीं बड़ी जगह नौकरी कर रहे हैं या फिर कुछ अपना काम रहे हैं। अनुशासन और तय समय पर काम पूरा करना मेरी पहली प्राथमिकता है।
भरतपुर में बेरोजगारी के प्रमुख कारण
* उच्च शिक्षित युवा छोटे-मोटे काम करने में खुद की तोहीन समझते हैं।
* कम पढ़े-लिखे युवाओं में काम सीखने की प्रवृति का अभाव नजर आता है।
* युवाओं की योग्यता के मुताबिक काम मिलता है, जो उनकी ज्यादा वेतन पाने की महत्वाकांक्षा आड़े जाती है।
* बड़ी फैक्ट्रियां/कम्पनियां नहीं होने से भी रोजगार की समस्या बनी रहती है।
* सिमको, जीईडब्ल्यू, डालमिया जैसी बड़ी फैक्ट्रियां पहले ही बंद हो चुकी है।
* एनसीआर में शामिल होने के बाद नए उद्योग धंधे नहीं लग पाए। प्रतिबंध लगने से ईंट-भट्टों का काम भी प्रभावित हो गया।
टैक्नोलॉजी के साथ अपग्रेड रहना ही विशेषता
‘मैं बारहवीं में पढ़ते हुए ही एमटीटी से जुड़ गया था, जिसके बाद मैंने काम करते हुए एमबीए भी कर लिया।’ यह कहना है मनीष गुप्ता का, जो फिलहाल एमटीटी (MTT) के सबसे पुराने कर्मचारी हैं। पॉजिटिव कनेक्ट को मनीष बताते हैं कि छोटे शहर में काम मिलना मुश्किल होता है, लेकिन एमटीटी से जुडकऱ रोजगार ही नहीं, बहुत कुछ नया सीखने को भी मिला। वे बताते हैं कि टैक्नोलॉजी के साथ अपग्रेड रहना एमटीटी (MTT) की सबसे बड़ी विशेषता है और यहां की पूरी टीम नई टैक्नोलॉजी को अपनाने का आतुर रहती है।
एमटीटी का प्रबंधन बेहतरीन
‘मैंने एमटीटी में नौकरी तो नहीं की। हां, खुद की सरकारी नौकरी लगने से पहले एक-दो माह काम अवश्य किया था। यह सम्पर्क अब बरकरार है।’ सहायक प्रोग्रामर हितेश कुमार ने बताया। वे पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कि एमटीटी (MTT) में कामकाज का माहौल ही नहीं, वहां का प्रबंधन भी बेहतरीन है। भरतपुर जैसे छोटे शहर में आईटी (IT) जैसा काम करना था तो दूर, उस बारे में सोचना भी मुश्किल था, जिसे एमटीटी ने कर दिखाया है।