By – साधना सोलंकी
29 October 2024
राजस्थान के भरतपुर की कविता सिंह के स्कूटर की डिग्गी ही स्ट्रीट डॉग (Street Dog) का चलता-फिरता अस्पताल है, जिसमें हमेशा दवाएं, खाद्य सामग्री व दूध की बोतल रखी रहती है। यह उनके बेजुबानों के प्रति अथाह प्रेम को भी दर्शाता है। स्ट्रीट डॉग (Street Dog) से प्यार भरा उनका यह सफर दो दशक पुराना है, जो अब सदा के लिए हो गया लगता है।
स्ट्रीट डॉग से प्यार भरा दो दशक पुराना सफर
भरतपुर (राजस्थान)। बचपन में अपने हिस्से का दूध मैं घर में आने वाली बिल्ली को पिला देती थी। अपने घर के बाहर एक श्वान (Street Dog) को खुजली से बदहाल देखा। उसके बाल उड़ गए थे और वह लहूलुहान हालत में पीड़ा से इधर-उधर छटपटाता भागता-फिरता था। इससे मुझे जीवों के प्रति लगाव हुआ। यह कहना है भरतपुर निवासी कविता सिंह का।
पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत करते हुए कविता सिंह बताती हैं कि हम वर्ष 1999 में भरतपुर आए। श्वान की तकलीफ पर मैंने अपनाघर के संस्थापक डॉ. बी. एम. भारद्वाज से बात की। उन्होंने आइवर मेक्टीन नामक दवा गुड़ व रोटी में मिलाकर सप्ताह में एक बार श्वान को खिलाने का सुझाव दिया। उनकी सलाह पर मैं पशु चिकित्सक मनोज चौधरी के संपर्क में आई। मैं बहुत खुश हुई जब गली का खुजलीग्रस्त वह श्वान उपचार से एकदम ठीक हो गया और उसका शरीर फिर बालों से भरने लगा।
अब यही करना है…
भरतपुर के यदुराजनगर में रह रहीं कविता सिंह पॉजिटिव कनेक्ट को बताती हैं कि मैं घर से अनिरुद्धनगर दूध लेने जाती थी। वहां दो पिल्ले और उनकी मां को खुजली से परेशान देखा तो उनको भी दवाएं खिलाई। वे भी स्वस्थ हो गए। तब से निरंतर मैं इस कार्य में जुटी हूं और आगे भी यही करती रहूंगी।
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जाना कहीं, पहुंच कहीं जाती हूं
वे बताती हैं कि दवाएं, दूध की बोतल, खाद्य सामग्री मेरे स्कूटर की डिग्गी में रहती हैं। कई बार ऐसा होता है कि मुझे जाना कहीं और होता है पर मेरा स्कूटर उस गली में मुड़ जाता है, जहां उपचार के लिए कोई जरूरतमंद मानो मेरी बाट जोह रहा होता है। वे कहती हैं कि जहां चाह है, वहां राह भी है।
बेटा-बेटी भी इसी राह पर
मोहल्ले के बच्चे कहीं किसी पीडि़त को देखते हैं तो झट मुझे खबर कर देते हैं। मेरे बच्चे भी इस राह पर चल पड़े हैं। बेटा अनिरुद्ध बेंगलूरु है और बेटी प्रियांशी जयपुर में। वे कई बार फोन कर मुझसे इस बारे में सलाह लेते हैं और पीडि़त श्वानों की मदद करते हैं।
हजारों को कर चुकी ठीक
कविता सिंह अब तक हजारों बीमार, बदन में पड़े कीड़ों से तड़पड़ाते, खुजली से भागते, दुर्घटना से कराहते गली के श्वान (Street Dog) ठीक कर चुकी हैं। पीडि़त गाय हो, सूअर हो या अन्य कोई जीव, वे उन्हें संभालने पहुंच ही जाती हैं।
पर्यावरण के लिहाज से बेहतर
वे बताती हैं कि गली के श्वान (Street Dog) पालतू जानवर के रूप में पर्यावरण के लिहाज से सबसे बेहतर हैं, क्योंकि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता विदेशी नस्ल के श्वानों से ज्यादा अच्छी होती है। इनकी वफादारी लाजवाब होती है। बशर्ते, अपने दिल और घर में इनके लिए जरा सी जगह बनाई जाए। अच्छी देखभाल व ट्रेंनिंग से इन्हें बेहतर बनाया जा सकता है।
उस फीलिंग का क्या कहना ?
चर्चा के दौरान पॉजिटिव कनेक्ट को कविता सिंह बताती हैं कि दिनभर काम करने के बाद जब शाम को आप घर लौटते हैं और ये (Street Dog) पूंछ हिलाकर आपसे लिपट जाते हैं तो दिन भर की थकान छू हो जाती है। उस फीलिंग की बात ही अलग होती है। मनुष्यों की तरह ही इनके स्वभाव में भी रोचक विविधता रहती है।
कविता का घर : आठ के हो रहे ठाठ
कविता सिंह के घर 8 श्वान (Street Dog) के अब ठाठ हो रहे हैं। इन्हें सहलाकर आपने दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो आप भले ही इन्हें भुला दें…लेकिन ये आपको कभी नहीं भूलेंगे।
अब दीवार फांद जाती है चुलबुली
सडक़ पर नन्हीं सी पिलिया को घायलावस्था में कविता ने जब संभाला तब इसकी एक तरफ की 3 और दूसरी तरफ की 2 हड्डियां टूटी थीं। मरणासन्न पिलिया का मथुरा में इलाज चला और बदन में राड डाली गई। तीन ऑपरेशन कराए। टिककर नहीं बैठने के कारण इसका नाम रखा चुलबुली, जो अब 4 साल की हो गई हैं और दीवार फांद जाती हैं।
मां का प्यार बांट रही चुनिया
कविता सिंह के घर सबसे पहले चुनिया ही पहुंची। कोई वाहन उसे कुचल गया। वह कराह रही थी। उसकी मां का अता-पता नहीं था। ढाई माह इलाज चला और चुनिया ने दुनिया की जंग जीत ली। वह ना सिर्फ बिल्ली को अपने आगोश में दुलारती है, बल्कि चुलबुली के बच्चों की भी मां की तरह देखभाल करती है।
जन्माष्टमी पर आई राधारानी
इसकी तो आंख भी नहीं खुली थी। तीन दिन तक इसकी मां को तलाशा, वह कहीं नहीं मिली। फिर जूते के डिब्बे में बैठ यह पहुंच गई कविता की छत्रछाया में। 4 साल की यह जन्माष्टमी गर्ल, यहीं की होकर बन गई सबकी प्रिय राधा।
मक्खी सी चिपकती है चैरी
प्यार से लबरेज है चैरी। हर आने जाने वाले से चिपकती भी बहुत है। इसी कारण इसे सब मक्खी नाम से पुकारते हैं। रात को गेट पर आ चिल्लाती भी खूब है। तब इसे बांध कर रखना जरूरी हो जाता है।
सबसे सीधा टाइगर
साथियों में सबसे सीधा है टाइगर। इसका रुतबा बन सके। इसलिए नाम टाइगर रखा। पैदा होने के बाद इसकी मां चल बसी। 4 भाई तनहा रह गए। इसके 3 भाई गोद दे दिए गए। ब्लैकी, सैफू, ज्होन भी साबित कर रहे हैं कि हिल-मिलकर रहने में ही आनंद है। कहां फारिग होना है, कहां रहना है, सब सीख चुके हैं।