By – राजेश खण्डेलवाल
11 October 2024
ह्यूमन डवलपमेंट इंस्टीट्यूट (HDI) में ऐसे बच्चे भी पहुंचते हैं, जो चल पाने में असमर्थ हैं, लेकिन अब वे चलने लगे हैं, जिससे उनके अभिभावक चिंतामुक्त नजर आए। इससे बच्चों के साथ उनके शिक्षक भी खुश हैं। पहली कड़ी में हमने आपको संस्थान की गतिविधियों, दूसरी कड़ी में शिक्षा से बच्चों के जीवन में आए बदलाव के बारे में बताया था। स्पेशल बच्चों की इस शृंखला में पेश है हमारी तीसरी व अंतिम रिपोर्ट…
एचडीआई ला रही मुस्कान, हर कोई उत्साहित
अलवर (राजस्थान)। ह्यूमन डवलपमेंट इंस्टीट्यूट, झालाटाला (अलवर) के संचालित आधारशिला और उत्कर्ष कार्यक्रम से जुड़े मूक बधिर, दृष्टिबाधित, मंदबुद्धि और मानसिक पक्षाघात से पीडि़त बच्चों का शैक्षिक स्तर ही नहीं सुधर रहा, बल्कि उनके स्वास्थ्य में भी आमूलचूल बदलाव आया है। राजगढ़ निवासी नेत्रहीन सुरेश चंद सोनी ने एक से 12वीं तक संस्था से जुडकऱ शिक्षा पाई। इसके बाद जोधपुर से बीए बीएड व एमए किया। वर्ष 2018 में वे सरकारी टीचर हो गए, जो फिलहाल राजकीय बालिका उच्च प्राथमिक विद्यालय कलसाड़ा (अलवर) में कार्यरत हैं। इनकी पत्नी भी नेत्रहीन है।
पॉजिटिव कनेक्ट की टीम ने लाभार्थी बच्चों के अभिभावकों के साथ उनके शिक्षकों व फिजियोथैरेपिस्ट से भी बातचीत की। पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत के दौरान अभिभावकों का कहना था कि बच्चों की हालत ठीक नहीं थी, जिससे हमारा चिंताग्रस्त होना स्वाभाविक था, लेकिन अब खुशी इस बात की है कि संस्था की टीम की मेहनत से सार्थक परिणाम मिले हैं, जिससे बच्चों का भविष्य संवरने की आस जगी है। वहीं शिक्षकों व फिजियोथैरेपिस्ट का कहना है कि बच्चों के साथ की गई मेहनत के सकारात्मक परिणाम देखकर बेहद खुशी है और उम्मीद है कि अब ये बच्चे भी सामान्य बच्चों की तरह जीवन जी पाएंगे।
एचडीआई-उत्कर्ष (2009)
अब तो वह स्कूल जाने लगा
दौसा जिले की महवा तहसील के गांव केसरा का वास के सियाराम गुर्जर (60) पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कि मेरे पोते प्रिंस (6) व पोती आरोही (4) को जोड़ों में दिक्कत थी, जिससे वे खड़े नहीं हो पाते थे। कूल्हे या फिर घुटने के बल ही खिसकते थे। दोनों बच्चों को उनकी मां के साथ दो साल तक उत्कर्ष में रखा, जहां सारी सुविधाएं फ्री और घर से भी ज्यादा अच्छी मिली। दोनों बच्चों में बहुत सुधार है। पोता अपने सारे काम खुद कर लेता है और वह स्कूल भी चलकर जाने लगा है। पोती की हालत पोते से भी ज्यादा अच्छी है। वे बताते हैं कि मैं और मेरा बेटा मुकुट खेती किसानी करते हैं। दोनों बच्चों की हालत देखकर दिन-रात चिंता में डूबे रहते थे। चिंता यह भी थी कि इनका इलाज कैसे होगा, लेकिन अब चिंता जैसी कोई बात नहीं है।
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पहले बैठ नहीं पाती, अब चलने लगी
एचडीआई के उत्कर्ष में अपनी 15 वर्षीय बेटी मोना के साथ रह रही हरसाना (अलवर) की श्रीमती सविता मीणा पॉजिटिव कनेक्ट को बताती हैं कि बेटी की हालत में काफी सुधार है। अब वह चलने भी लगी है। पहले तो वह बैठ भी नहीं पाती थी। यहां घर जैसी व्यवस्थाएं हैं।
बेटा हुआ अब पहले से बेहतर
करौली जिले के सुंदरपुरा निवासी श्रीमती निकिता गुर्जर यहां अपने 2 साल के बेटे शिर्यांष के साथ डेढ़ साल से रह रही है। उसका कहना है कि बेटा की हालत पहले से बेहतर है। अब वह बैठ ही नहीं लेता, बल्कि चल भी लेता है। यहां बहुत अच्छा काम हो रहा है। बच्चों को पढ़ाने के साथ उनकी आवश्यक चिकित्सा सुविधा भी मिल रही है और वह भी पूरी तरह फ्री में मिल रही है। यहां काफी सुकून मिलता है।
एचडीआई-आधारशिला (2001)
सच कहूं तो यह दूसरा जन्म
‘मेरी दो बेटियां मोनिका व अमीषा जन्म से दृष्टिबाधित थी। इससे मैं ही नहीं, मेरा पूरा परिवार चिंता में रहने लगा।’ यह कहना है रैणी (अलवर) के गांव दानपुर निवासी शिक्षक प्रेमचंद मीणा का। पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत के दौरान मीणा बताते हैं कि वर्ष 2005 में दोनों बेटियों को आधारशिला से जोड़ा, जो अब बीए बीएड के बाद एमए कर चुकी हैं। इससे उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया है। नकारात्मक भाव खत्म हो गया तो आत्मबल बढ़ गया है। आज पूरे परिवार को इन बेटियों पर गर्व है। सच कहूं तो आधारशिला से जुडऩे के बाद इनका दूसरा जन्म हुआ है।
नाम को सार्थक कर रही उसकी मुस्कान
पॉजिटिव कनेक्ट से बात करते समय अलवर के दिवाकरी निवासी 21 वर्षीय दृष्टिबाधित (नेत्रहीन) मुस्कान की मां सुनीता अरोड़ा का कहना है कि मुस्कान जब 5 साल की थी, तब उसे आधारशिला से जोड़ा गया। आधारशिला से मुस्कान का उत्साह बढ़ा। बीए बीएड करने के बाद मुस्कान अब एमए फाइनल में है। आधारशिला की ही देन है कि मेरी बेटी के चेहरे पर ऐसी मुस्कान आ गई है, जो उसके नाम को चरितार्थ कर रही है। अब पूरा भरोसा है कि मुस्कान का जीवन संवर जाएगा। वहीं मुस्कान कहती है कि आधारशिला में रहकर काफी मेहनत की और अनुशासन का ऐसा पाठ पढ़ा है, जो जीवनभर मेरे काम आएगा।
फिजियोथैरेपिस्ट व शिक्षक बोले
बच्चों में सकारात्मक परिणाम से खुशी
गढ़ी सवाईराम स्थित उत्कर्ष में पिछले 5 साल से फिजियोथैरेपी करा रहीं गाजियाबाद निवासी डॉ. स्वाति चौधरी पॉजिटिव कनेक्ट को बताती हैं कि यहां का माहौल अच्छा है और थैरेपी कराने से बच्चों में अपेक्षित सुधार हो रहा है। सकारात्मक परिणाम मिलने से मैं खुश हूं।
खूब मिला मान-सम्मान, भुला नहीं सकते
आधारशिला में बच्चों को पढ़ा चुके निखिल तिवारी फिलहाल उत्तरप्रदेश के वाराणसी में मेडिकल की एक ऑनलाइन कम्पनी में सीनियर डायरेक्टर हैं, उनका कहना है कि आधारशिला में बहुत अच्छा काम हो रहा है और वहां रहने के बाद मान-सम्मान खूब मिला। इसी तरह वाराणसी के माध्यमिक शिक्षा परिषद के क्षेत्रीय कार्यालय में प्रधान सहायक के पद पर कार्यरत गितेश्वरी शुक्ला कहती है कि आधारशिला में रहने के दौरान गांवों में जाकर बच्चों का सर्वे किया और उन्हें ब्रेल लिपि में पढ़ाया भी। वहां मिला सम्मान मैं कभी भुला नहीं सकती।
इनका कहना है…
लोगों में जागरूकता की कमी बड़ी चिंता-मीणा
एचडीआई के अध्यक्ष आर. सी. मीणा (Retired IES) पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में लोगों में जागरूकता की कमी व अशिक्षा को लेकर चिंतित नजर आए। उनका कहना है कि सर्वे में खासतौर से मानसिक पक्षाघात के 200 से ज्यादा बच्चे चिह्नित हैं, लेकिन उनके अभिभावक उन्हें घर से बाहर भेजने को तैयार नहीं होते। कुछ मूकबधिर व दृष्टिबाधित बच्चों को भी उनके अभिभावक घर से नहीं निकाल रहे।
चाहता हूं आधारशिला बन जाए तक्षशिला-नानक
सेवानिवृत प्रधानाचार्य एवं कवि नानक चंद शर्मा ‘नवीन’ पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में बताते हैं कि पिछले दिनों उन्होंने एचडीआई के आधारशिला में बच्चों के लिए काव्य पाठ किया। इस दौरान बच्चों के चेहरे की मुस्कान ने काफी प्रभावित किया। वे कहते हैं, ‘अजूबे नहीं है ये, न दया के पात्र। हां शुरू में लगता है ये कुछ अलग हैं। कैसे सोचते होंगे ये? फुटबाल में किक लगाकर खुश होते बच्चे, बिल्कुल हमारी तरह। कैसे चित्र बनते होंगे इनके भीतर?, लेकिन ये आहट से पहचानते हैं हमें। इनकी कोई अलग दुनिया नहीं। अलग था तो हमारा दृष्टिकोण, जो बदला आधारशिला ने। मैं चाहता हूं ये बन जाए तक्षशिला।
भविष्य संवार रही है एचडीआई-गुप्ता
समद्ध भारत अभियान के निदेशक सीताराम गुप्ता ने पॉजिटिव कनेक्ट को बताया कि एचडीआई स्पेशल बच्चों की सेवा के साथ उनका भविष्य संवारने का काम कर रही है। वर्षों से इनके काम को देख रहा हूं। उन्होंने बताया कि जब वे लुपिन में अधिशाषी निदेशक थे, तब यहां के बच्चों की सहूलियत के लिए वर्षों पहले एक साधन भी एचडीआई को भेंट कराया था।