By – राजेश खण्डेलवाल
09 October 2024
मूक बधिर, दृष्टिबाधित, मंदबुद्धि और मानसिक पक्षाघात (Cerebral Palsy) बच्चों को प्यार की दरकार रहती है, लेकिन ज्यादातर समाज में इन विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (Children With Special Needs) को अनदेखा किया जाता है। राजस्थान में ह्यूमन डवलपमेंट इंस्टीट्यूट Human Development Institute (HDI) ऐसे विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को भरपूर प्यार ही नहीं करती, बल्कि उनका वास्तविक आंकलन कर उन्हें सही दिशा भी दिखाती है। संस्था में बच्चों के लिए सभी सुविधाएं नि:शुल्क हैं और यहां कभी भी प्रवेश लिया जा सकता है। नतीजन, इस संस्था से जुड़कर एक दर्जन से ज्यादा बच्चे अब सरकारी नौकरी कर रहे हैं और खुशहाल जीवन जी रहे हैं। यह संस्था कैसे काम करती है, ऐसे बच्चों के जीवन में किस तरह से बदलाव लाती है और उसका बच्चों व उनके अभिभावकों पर क्या प्रभाव पड़ा है जैसे बिन्दुओं पर केन्द्रित है यह ग्राउण्ड रिपोर्ट, जिसे हम तीन चरणों में प्रसारित कर रहे हैं। पेश है हमारी पहली रिपोर्ट…
ह्यूमन डवलपमेंट इंस्टीट्यूट, झालाटाला
अलवर (राजस्थान)। राजस्थान के अलवर जिले के लक्ष्मणगढ़ ब्लॉक के झालाटाला की संस्था ह्यूमन डवलपमेंट इंस्टीट्यूट (HDI) मूक बधिर और दृष्टि बाधित बच्चों के लिए राजगढ़ ब्लॉक के डाबला मेव गांव में आधारशिला के नाम से तथा मंदबुद्धि और मानसिक पक्षाघात (Cerebral Palsy) बच्चों के लिए गढ़ी सवाईराम में उत्कर्ष के नाम से नि:शुल्क अपने कार्यक्रम चलाती है। आधारशिला और उत्कर्ष दोनों में ही बच्चों के लिए आवासीय व्यवस्थाएं भी एकदम फ्री हैं, जो बिजली-पानी के साथ ही सौर ऊर्जा से सुसज्जित है।
संस्था एचडीआई झालाटाला के अध्यक्ष आर.सी. मीणा (70) पॉजिटिव कनेक्ट को बताते हैं कि भारतीय आर्थिक सेवा (IES 1981 बैच) में अधिकारी रहते हुए देश-विदेश भ्रमण के दौरान विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (Children With Special Needs) के इंस्टीट्यूटों का अवलोकन करने का मौका मिला। दक्षिण भारत के बेंगलूरु, हैदराबाद व चैन्नई के साथ ही मुम्बई में ऐसे इंस्टीट्यूटों से बहुत कुछ सीखा भी।
पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में मूलत: झालाटाला निवासी मीणा बताते हैं कि इसी दौरान ऐसे बच्चों के लिए कुछ काम करने की प्रेरणा मिली तो मन बनाया और दिल्ली में ही कार्यरत अलवर, भरतपुर, सवाईमाधोपुर व करौली जिले के अन्य अधिकारियों से सम्पर्क कर चर्चा की। सभी को सुझाव पसंद आया और इस तरह से ऐसे बच्चों के लिए काम करने का विचार सशक्त हुआ। फिर ह्यूमन डवलपमेंट इंस्टीट्यूट, झालाटाला नामक संस्था बनाई, जिसमें सभी ने क्षमतानुसार आर्थिक सहयोग भी दिया। इस तरह बनी संस्था से जुड़ी पूरी टीम ने काम का क्रियान्वित किया, जो सभी के सामूहिक प्रयास व सहयोग से ही संभव हो सका।
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ऐसे काम करती है संस्था की टीम
संस्था की टीम सबसे पहले ऐसे बच्चों का सर्वे करती है। फिर इन बच्चों का आंकलन किया जाता है, जिससे उनको शिक्षा, कौशल विकास के साथ ही चिकित्सकों की सलाह पर विभिन्न प्रकार की थैरेपी की सुविधा दी जाती है। यहां ब्रेललिपि एवं सांकेतिक भाषा भी सिखाई जाती है। ऐसे बच्चों को इंटीग्रेटेड एज्यूकेशन (Integrated Education) दी जाती है यानि उन्हें सामान्य बच्चों के साथ स्कूलों में पढ़ाया जाता है। यह इंटीग्रेटेड एज्यूकेशन नवोदय विद्यालय खैरथल, केन्द्रीय विद्यालय अलवर व राज्य सरकार की स्कूलों में दिलाई जाती है। उच्च शिक्षा के लिए इन बच्चों को दिल्ली विश्वविद्यालय तथा जोधपुर, जयपुर, करौली व अजमेर के कॉलेज में भेजा जाता है। इन विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के कौशल विकास में इन्हें कम्प्यूटर शिक्षा, खेलकूद, दीया बनाना, पेंटिंग करना, पौधशाला बनाने के साथ ही केंचुआ खाद बनाना भी सिखाया जाता है। वहीं इन्हें जरूरत के हिसाब से फिजियो थैरेपी, ओकापेशनल थैरेपी, स्पीच थैरेपी, सेंसरी इंटीग्रेशन थैरेपी, हाइड्रो थैरेपी, सेन्ड थैरेपी, श्वान थैरेपी जैसी सुविधाएं सुलभ कराई जाती है।
संस्था ने इस तरह जुटाएं साधन-संसाधन
संस्था ने राजगढ़ के डाबला मेव में आधारशिला की शुरूआत वर्ष 2001 में तो गढ़ी सवाईराम में उत्कर्ष की वर्ष 2009 में शुरूआत की। दोनों ही जगह भवन निर्माण विभिन्न कम्पनियों के सीएसआर प्रोग्राम, एमपी व एमएलए फण्ड, मुख्यमंत्री फण्ड से हुआ है। भामाशाहों द्वारा कमरों का निर्माण कराया है। खैरथल की मंडी के व्यापारी संयुक्त रूप से वर्ष 2005 से लगातार गेहूं उपलब्ध करा रहे हैं।
चिकित्सा सुविधा भी कराते हैं सुलभ
इन बच्चों के लिए जरूरी चिकित्सकीय परामर्श एम्स दिल्ली, एसएमएस हॉस्पीटल जयपुर, जेकेलोन अस्पताल जयपुर से भी लिया जाता है और इन्हें आवश्यक चिकित्सा सुविधा दिलाई जाती है। सीएचसी मण्डावर, गढ़ी सवाईराम, माचाड़ी और राजगढ़ के चिकित्सकों की सहायता भी ली जाती है।
सरकारी योजनाओं का दिलाते लाभ
इन सभी बच्चों को राज्य सरकार की विभिन्न लाभकारी योजनाओं में पेंशन, छात्रवृति, पालनहार, रोडवेज पास, यूआईडी नम्बर, चिकित्सा प्रमाण पत्र बनवाया जाता है। सरकारी योजनाओं का पैसा सीधे ही लाभान्वित बच्चों के खाते में ही पहुंचता है, जिससे संस्था का कोई लेना-देना नहीं है।
बच्चों से लगाव, बढ़ रहा सामाजिक जुड़ाव
आधारशिला व उत्कर्ष का सामाजिक जुड़ाव भी बढ़ रहा है और आसपास के गांव-कस्बों के लोग त्योहार, जन्मदिन, शादी की सालगिरह जैसे शुभ अवसर पर इन बच्चों के बीच पहुंचते हैं और सामाजिक सरोकार निभाते हुए इन्हें फल, मिठाई, खाना आदि वितरित करते हैं। संस्था का नियम है कि ऐसा आयोजन करने वाले को अपने बच्चों को साथ लाना होगा और उन्हें यहां रह रहे बच्चों के साथ कम से कम एक घंटे का समय बिताना ही होगा।
हर समय सेवा को तत्पर रहते हैं वालिंटयर
संस्था से अनेक स्वयंसेवक (Volunteer) भी जुड़े हैं। 15-20 वालिंटयर आधारशिला व उत्कर्ष में अपनी सेवाएं देते हैं तो कुछ वालिंटयर अजमेर, जोधपुर, अलवर, जयपुर, दिल्ली में भी हैं, जो चिकित्सकीय कामों के लिए जरूरत पडऩे पर वहां इन बच्चों की मदद करते हैं। वालिंटयर बच्चों को विविध काम, कॉलेजों में प्रवेश कराने संबंधी सलाह व सहायता और खेल खिलाने में भी सहयोगी बनते हैं।
स्वेच्छा से भिजवाते हैं खाद्यान
खैरथल मण्डी के व्यापारी दयाराम महावर ने पॉजिटिव कनेक्ट को बताया कि वर्ष 2005 से स्वेच्छा से मण्डी के 20-25 व्यापारी हर साल 40 से 50 कट्टे गेहूं आधारशिला व उत्कर्ष को भिजवाते हैं। इसके अलावा दाल, तेल व चावल आदि भी भेजे जाते हैं। वहां मूक बधिर, दृष्टिबाधित व अन्य विशेष बच्चों के लिए बहुत अच्छा काम हो रहा है।
हो रहा है बेहतरीन काम-रविकांत
पॉजिटिव कनेक्ट से बातचीत में अलवर जिला बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक रविकांत बताते हैं कि पहले मैं समाज कल्याण विभाग में था। उस दौरान आधारशिला व उत्कर्ष दोनों का काम ही नहीं देखा, बल्कि उनके साथ मिलकर गांवों में दृष्टिबाधित बच्चों को चिह्नित कर उनके लिए ब्रेल लिपि की ट्रेनिंग भी दिलाई। अलवर के तत्कालीन जिला कलक्टर डॉ. जितेन्द्र सोनी (IAS) ने भी इन केन्द्रों की विजिट की और उन्होंने यहां हो रहे कामकाज को काफी सराहा। इसमें कोई दोराय नहीं है कि आधारशिला व उत्कर्ष में बेहतरीन काम हो रहा है। (क्रमश:)
(अगले अंक में पढ़े : इनसे जुडकऱ तो किस्मत ही बदल गई)