हर साल अक्टूबर का पहला शुक्रवार वर्ल्ड स्माइल डे (World Smile Day) यानी मुस्कुराहट के नाम है…और यह दिन हर सुबह का स्वागत मुस्कुराकर करने के संदेश से भरा है। मुस्कान और जिंदगी के रिश्ते को खंगालते जानते हैं इस दिन से जुड़ी कुछ रोचक बातें…
मुस्कुराइए कि हम जिंदा हैं!
रोजाना चैटिंग में हम स्माईल वाली इमोजी का न जाने कितनी बार इस्तेमाल करते हैं। आज इमोजी पूरी दुनिया में सद्भावना और खुशी जाहिर करने का प्रतीक भले ही हो, पर इस गलाकाट युग में, वास्तविक जिंदगी में, हमारी मुस्कुराहट कितनी शुद्ध रह गई है, यह प्रश्न मन में यदा कदा आ ही जाता है, जब आए दिन नकली दुनिया से वास्ता पड़ता है। आबो हवा दूषित हुई तो शुद्ध भोजन पर प्रश्न चिन्ह लगा। चहुंओर मिलावट ही मिलावट का बोलबाला…तो चलो पहले इस बात पर मुस्कुराएं कि हम जिंदा है। इस मुफ्त की नेमत, स्वास्थ्य वर्धक टानिक को अपनी जिंदगी का जरूरी हिस्सा बनाएं और हंसे-हंसाए।
दिलचस्प स्माइली इमोजी का किस्सा
साल 1963 में एक कंपनी ने अमेरिकी कमर्शियल आर्टिस्ट ‘हार्वे रोस बॉल (Harvey Ross Ball) से कुछ ऐसा स्केच करने को कहा, जिसे बटन पर लगाया जा सके। तब हार्वे ने पीले रंग के ऊपर हंसता हुआ स्माइली चेहरा बनाया। हार्वे को इसे बनाने में सिर्फ 10 मिनट लगे, जिसके लिए उन्हें 45 डॉलर मिले। हार्वे को इस बात का कहां अंदाजा था कि डिजिटल दुनिया में यह इतना फेमस हो जाएगा। उन्होंने इसका पेटेंट भी नहीं करवाया। सन 1999 में होर्वे बॉल ने वल्र्ड स्माइल कॉर्पोरेशन का गठन किया था। कॉर्पोरेशन हार्वे बॉल वल्र्ड स्माइल फाउंडेशन (NGO) Corporation Harvey Ball World Smile Foundation के जरिए जरूरतमंद बच्चों की मदद की जाती है।
2001 में दुनिया को अलविदा
आर्टिस्ट हार्वे बॉल का साल 2001 में निधन हो गया, पर उनके बनाए स्माइली इमोजी से आज दुनिया अपने इमोशन शेयर कर रही है…करती रहेगी।